भारत-रूस को अपने पुराने संबंध और मजबूत करने चाहिएं

Thursday, Dec 09, 2021 - 04:28 AM (IST)

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का हालिया भारत दौरा काफी महत्व  रखता है और दोनों देशों के बीच संबंधों में एक नए युग की शुरूआत है जिनमें गत कुछ वर्षों के दौरान गिरावट दिख रही थी। 

दोनों देश पुराने तथा परखे हुए मित्र हैं लेकिन अतीत के हालिया वर्षों में भू-राजनीतिक कारणों से भारत का झुकाव अमरीका की ओर हो गया जबकि रूस चीन के पश्चिम से एक तरह से अलग-थलग होने के बाद उसके साथ संबंध बना रहा था। इसकी चीन के साथ बढ़ती नजदीकियां भी भारत के लिए चिंता का विषय थीं विशेषकर भारत चीन के बीच सीमा को लेकर बढ़ते तनाव के मद्देनजर। 

पुतिन का दौरा एक ऐसे समय में हुआ है जब अफगानिस्तान से अमरीका के निकल जाने के बाद की स्थिति से निपटने के लिए क्षेत्र में देश गठजोड़ बना रहे हैं। तालिबानियों द्वारा कब्जा करने के बाद अफगानिस्तान में स्थिति भारत तथा रूस दोनों के लिए गंभीर ङ्क्षचता का विषय है तथा दोनों ही देश इस परिदृश्य से उभर रही सुरक्षा चिंताओं को सांझा करते हैं। 

हालिया अतीत में दोनों देश एक-दूसरे से दूर हो रहे थे। भारत एक ऐसे समय में अमरीका के नजदीक जा रहा था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अब की बार ट्रम्प सरकार’ का नारा दिया और यहां तक कि ट्रम्प के उत्तराधिकारी के साथ भी नजदीकियां बनाए रखीं। इसी तरह रूस तथा चीन के बीच अतीत में संबंध खटासपूर्ण थे लेकिन पश्चिमी ताकतों पर नियंत्रण पाने के लिए हालिया वर्षों में वे एक-दूसरे के करीब आए हैं। 

इस तथ्य ने कि अमरीका तथा चीन ने अब एक-दूसरे के खिलाफ खंजर उठा रखे हैं, ने भारत के लिए परिस्थितियों को और पेचीदा बना दिया है। इसलिए भारत तथा रूस के बीच शिखर वार्ता का एक विशेष महत्व है तथा इसका परिणाम काफी हद तक सफल रहा है सिवाय प्रस्तावित पारस्परिक सैन्य लॉजिस्टिक सपोर्ट सिस्टम के जिसे फिलहाल लंबित रखा गया है। 

दोनों देशों ने करीब 6 लाख ए.के. 203 राइफलें बनाने के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं तथा भारत को एस-400 मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति भी एक ऐसे समय में हो रही है जब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन तथा भारत के बीच तनाव है। एस-400 मिसाइल प्रणाली व समझौता अमरीका द्वारा विरोध के बावजूद हुआ है जिसने एक समय धमकी दे दी थी कि यदि यह सौदा सिरे चढ़ा तो वह प्रतिबंध लागू कर देगा। दोनों देशों ने अगले 10 वर्षों के लिए 2021 से 2031 तक रक्षा के क्षेत्र में सहयोग के कार्यक्रम पर भी हस्ताक्षर किए हैं। नए ‘2+2’ तंत्र की स्थापना, जो दोनों पक्षों के विदेश तथा रक्षा मंत्रियों को एक ही मंच पर लाया, भी द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की ओर एक कदम है। 

इन समझौतों ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि भारत अमरीका के साथ अपने संबंधों के बावजूद रूस के साथ अपने लम्बे समय से चले आ रहे रक्षा संबंधों से पीछे हटने को तैयार नहीं था। यह निश्चित तौर पर अमरीकियों तथा चीनियों को खुशी नहीं देगा।

रूस के साथ गहरे हो रहे भारत के रक्षा संबंध वाशिंगटन तथा पेइचिंग में राजनीतिक भवें खड़ी करना जारी रखेंगे। दिल्ली-रूस तथा चीन के बीच बढ़ती सैन्य को लेकर सचेत है तथा इसने अपना विरोध हिंद-प्रशांत ढांचे में शामिल होकर जताया है। लेकिन जहां सूत्रों ने स्पष्ट संकेत दिए हैं, भारत तथा रूस के बीच संबंधों को लेकर सीमाएं भी हैं। निश्चित तौर में इनमें से एक है पश्चिम के साथ रूस के कड़वाहट भरे असहज संबंध। अन्य हैं भारत तथा रूस के बीच व्यापार तथा वाणिज्य की सीमित प्रकृति। वर्तमान में द्विपक्षीय व्यापार 10 अरब ड़ालर से नीचे अटका हुआ है। 

नवीनतम शिखर बैठक का उद्देश्य इन दोनों क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाना है जिसके अंतर्गत 2025 तक व्यापार 30 अरब डालर तक बढ़ाना तथा द्विपक्षीय निवेश में 50 अरब डालर तक वृद्धि करना शामिल है। दोनों देशों ने कुल मिलाकर 28 समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिसमें कई क्षेत्रों में सहयोग शामिल है। यह अच्छी बात है कि इस बात को लेकर समझ बढ़ रही है कि दोनों पक्षों को एक-दूसरे की जरूरत है तथा एक-दूसरे से दूर जाने को अवश्य रोका जाना चाहिए। इसने एक पुराने तथा विश्वसनीय संबंध में जान भी फूंकी हैं। दोनों देशों को आवश्यक तौर पर इस संबंध को और मजबूत करना चाहिए।-विपिन पब्बी 
 

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