राजनीति में अपराधीकरण का बढ़ता रुझान चिंताजनक

punjabkesari.in Thursday, Feb 17, 2022 - 07:24 AM (IST)

प्रत्येक चुनावों से पूर्व विभिन्न राजनीतिक दल तथा उम्मीदवार बड़े-बड़े वायदे करते हैं। ऐसे अधिकांश वायदे तथा आश्वासन बिना पूरे हुए रह जाते हैं तथा अब आम लोगों ने ऐसे वायदों को गंभीरतापूर्वक लेना शुरू कर दिया है। यहां तक कि राजनीतिक दलों द्वारा इस दावे के बावजूद कि ऐसे उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिए जाएंगे जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि है अथवा जो आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे हैं, यह तर्क दिया जाता है कि ‘जीतने की योग्यता’ प्रमुख मानदंड है। बिना किसी अपवाद के यह बात सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के बारे में सच है। 

उम्मीदवारों द्वारा दाखिल शपथ पत्रों की समीक्षा से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार उनमें से कुछ हत्याएं तथा डकैैतियों जैसे जघन्य आपराधिक मामलों में मुकद्दमे झेल रहे हैं। कुछ उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले दावे संभवत: सच हो सकते हैं कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित हैं या आरोप इतने गंभीर नहीं हैं। कुछ मामलों में प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक स पत्ति को नुक्सान पहुंचाने का परिणाम भी आपराधिक आरोप तय करने के रूप में निकल सकता है। यद्यपि गंभीर अथवा जघन्य आपराधिक आरोपों वाले उ मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए कोई बहाना नहीं हो सकता। 

चुनावों पर नजर रखने वाली संस्थाएसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ए.डी.आर.) द्वारा की गई व्यापक समीक्षा में हाल ही में यह बताया गया है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ रहे लगभग 25 प्रतिशत उ मीदवार आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे हैं। राज्य के चुनावों में अभी तक पहले तीन चरणों के लिए शपथ पत्र दाखिल किए गए हैं लेकिन एक चौथाई उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि का रुझान लगभग तीनों चरणों में एक जैसा है। 

विधानसभा चुनावों के लिए जा रहे 4 अन्य राज्य भी बेहतर स्थिति में नहीं हैं। ए.डी.आर. तथा पंजाब इलैक्शन वाच के अनुसार पंजाब में आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की सं या लगभग 3 गुणा बढ़ गई है जिसमें शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने सबसे अधिक संख्या में ऐसे नामांकितों को मैदान में उतारा है। दोनों संगठनों ने मैदान में कुल 1,304 उम्मीदवारों में से 1276 के शपथ पत्रों की समीक्षा करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। 

ए.डी.आर. के ट्रस्टी जसकीरत सिंह द्वारा पंजाब इलैक्शन वाच के परविंद्र सिंह किटना तथा हरप्रीत सिंह के साथ जारी की गई रिपोर्ट में यह कहा गया है कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे उ मीदवारों की सं या इस बार उछल कर 25 प्रतिशत पर पहुंच गई है जो 2017 के चुनावों में 9 प्रतिशत थी। ऐसी पृष्ठभूमि वाले 315 उ मीदवारों में से 65 शिअद, 58 ‘आप’, 27 भाजपा, 16 कांग्रेस, 4 शिअद (संयुक्त) तथा  तीन-तीन बसपा तथा पंजाब लोक कांग्रेस (पी.एल.सी.) से संबंधित हैं। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि कम से कम 2018 उम्मीदवार गंभीर अपराधों के साथ केसों का सामना कर रहे हैं। उनमें से 60 शिअद, 27 ‘आप’,  15 भाजपा, 9 कांग्रेस, तीन-तीन शिअद (संयुक्त) तथा बसपा और 2 पी.एल.सी. से संबंधित हैं। कम से कम 15 उम्मीदवारों ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों की घोषणा की है जिनमें  दो दुष्कर्म के शामिल हैं। चार उम्मीदवारों पर हत्या से संबंधित मामले हैं जबकि 33 के खिलाफ हत्या के आरोप मामले हैं। राज्य में लगभग आधे निर्वाचन क्षेत्र ‘रैड अलर्ट’ श्रेणी में हैं। ये वे निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां 3 या अधिक उम्मीदवार आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। 

आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव मैदान में उतारने का बढ़ता रुझान चिंताजनक है। यह न केवल राज्यों के मामलों में सच है, यही रुझान संसद में भी देखा गया है। एसोसिएशन ऑफ डैमोक्रेटिक रिफॉ र्स की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार कुल 363 सांसद तथा विधायक आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं तथा सजा मिलने के मामले में जन प्रतिनिधित्व कानून के अंतर्गत वे अयोग्य घोषित कर दिए जाएंगे। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र व राज्यों में 39 मंत्रियों ने आपराधिक मामलों की घोषणा की है जो अयोग्यता के लिए जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 में शामिल हैं। 

एसोसिएशन तथा नैशनल इलैक्शन वाच ने 2019 से 2021 के बीच 542 लोकसभा सदस्यों तथा 1953 विधायकों के शपथ पत्रों की समीक्षा की है। 2,495 सांसदों तथा विधायकों में से 363 (15 प्रतिशत) ने घोषित किया है कि उनके खिलाफ अदालतों ने कानून के अंतर्गत सूचीबद्ध अपराधों के सिलसिले में आरोप तय किए हैं। इनमें 2096 विधायक तथा 67 सांसद हैं। पार्टियों में, भाजपा में ऐसे सांसदों अथवा विधायकों की संख्या 83 के साथ सर्वाधिक है, जिसके बाद कांग्रेस के 47 तथा टी.एम.सी. के 25 हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि लोकसभा के 24 पदासीन सदस्यों के खिलाफ 10 या अधिक वर्षों से कुल 43 आपराधिक मामले तथा 111 पदासीन विधायकों के खिलाफ कुल 315 आपराधिक मामले लबिंत हैं। 

दुर्भाग्य से विभिन्न संस्थाएं इस बुराई पर नियंत्रण पाने में असफल रही हैं। सर्वोच्च अदालत ने अपराधीकरण के खिलाफ अपनी नाखुशी जाहिर की है लेकिन उसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। हाल ही में इसने इस तथ्य के लिए अफसोस जताया कि विधायिका ने राजनीति में अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिए कार्य नहीं किया है। यहां तक कि भारत का चुनाव आयोग भी कोई जि मेदारी लेने से बच रहा है। ऐसी स्थिति के लिए खुद राजनीतिक दलों को दोष दिया जाना चाहिए। संभवत: केवल मतदाता ही ऐसे नेताओं को खारिज करके एक कड़ा संकेत दे सकते हैं।-विपिन पब्बी
 


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