लगातार बढ़ते अपराध : स्मार्ट पुलिसिंग की जरूरत

Tuesday, Sep 06, 2022 - 06:29 AM (IST)

किसी भी देश की कानून-व्यवस्था की नींव उसकी पुलिस होती है। सच तो यह है कि कानून-व्यवस्था की अच्छी स्थिति में ही देश का आर्थिक विकास हो पाता है। लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हम अभी तक ब्रिटिशकालीन पुलिस व्यवस्था में देश की मांग के अनुरूप सुधार करने में विफल रहे हैं। भारतीय समाज के परिवर्तित स्वरूप के अनुरूप पुलिस अथवा कानून का ढांचा न बन पाने से आपराधिक ग्राफ दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। 

हाल ही में आई राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) की ताजा रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि देश में अपराधों और अपराधियों की संख्या में कमी की बजाय लगातार बढ़ौतरी हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 से 2021 अर्थात एक वर्ष के बीच अपहरण के मामलों में 20 फीसदी की वृद्धि के साथ महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के खिलाफ अपराध क्रमश: 15 फीसदी, 16 फीसदी और 5 फीसदी बढ़े हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में हर दिन औसतन 82 लोगों की हत्या हुई, देश में हर घंटे 11 से ज्यादा लोगों का अपहरण हुआ। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं कि अब समय की मांग है कि हमारे पास एक बेहतर प्रशिक्षित पुलिस व्यवस्था होनी चाहिए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की नई रिपोर्ट कहती है कि पिछले वर्ष की तुलना में 2021 में देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 15.8 फीसदी की वृद्धि हुई। 

एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में महिला अपराधों के 3,71,503 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2021 में यह आंकड़ा बढ़ कर 4,28,278 हो गया। ग्यातव्य है कि बढ़ते अपराध के मामलों में शीर्ष राज्यों में ओडिशा, हरियाणा, तेलंगाना और राजस्थान शामिल हैं। राजस्थान में असम की तरह ही मामलों की संख्या में मामूली कमी देखी गई, जबकि 3 अन्य राज्यों में ऐसे मामलों में वृद्धि देखी गई। केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली शीर्ष पर रही। यहां महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर 2021 में सबसे अधिक 147.6 फीसदी थी। बता दें कि दर्ज हुए मामलों में भी दिल्ली शीर्ष पर रही। 

एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले सभी 19 महानगरों की श्रेणी में कुल अपराधों का 32.20 प्रतिशत हैैं। इसी तरह अगर बच्चों पर होने वाले अपराधों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि 2021 के दौरान बच्चों के खिलाफ अपराध के कुल 1,49,404 मामले दर्ज किए गए, जो 2020 (1,28,531 मामले) की तुलना में 16.2 प्रतिशत की वृद्धि है। प्रतिशत के संदर्भ में, 2020 के दौरान ‘बच्चों के खिलाफ अपराध’ के तहत प्रमुख अपराध अपहरण और बाल दुष्कर्म सहित यौन अपराध थे। 

गौरतलब है कि वर्ष 2020 में 28.9 की तुलना में वर्ष 2021 में प्रति लाख बच्चों की आबादी पर दर्ज अपराध दर बढ़ कर 33.6 हो गई। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर हमारा पुलिस तंत्र कैसा है 

और कैसी है हमारी न्याय व्यवस्था? भारत को एक ऐसी पुलिस व्यवस्था की आवश्यकता है, जो जवाबदेह हो। उसके लिए हमें यह जानने की जरूरत है कि अक्सर समाज के मध्यम और निचले वर्गों से आने वाले अधिकारी भी पुलिस अकादमी के कड़े प्रशिक्षण के बाद पथभ्रष्ट क्यों हो जाते हैं। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने स्मार्ट पुलिस का सपना देखा था, जिसके हर अक्षर में पुलिस में सुधार का एक संदेश छुपा है। 

स्मार्ट यानी ऐसी पुलिस व्यवस्था जो कठोर लेकिन संवेदनशील, आधुनिक, सतर्क, जिम्मेदार, विश्वसनीय, तकनीकी क्षमता युक्त एवं प्रशिक्षित हो। लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट ही बताती है कि अभी तक वह सपना हकीकत का रूप नहीं ले सका। बहरहाल, स्मार्ट पुलिस के सपने को साकार करने के लिए पुलिस नेतृत्व को पूरी शक्ति देनी होगी, जिससे वह अपने तंत्र में सुधार लागू कर सके। यह नेतृत्व ऐसा हो जो इन सुधारों के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी भी ले सके। इसका एक उदाहरण कमिश्नरेट प्रणाली में दिखाई देता है। पुलिस को राजनीति और नौकरशाही के चंगुल से भी बाहर निकालना होगा। रोज-रोज के स्थानांतरण एवं पुलिस कार्रवाई में राजनीतिक दखल नेे पुलिस व्यवस्था को बहुत तोड़ा है, जिससे पुलिस अधिकारियों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।


कम पुलिस बल  : बता दें कि 1 लाख नागरिकों के लिए 222 पुलिसकर्मियों के न्यूनतम मानदंड की तुलना में देश में करीब 144 पुलिसकर्मी ही मौजूद हैं। यही कारण है कि करीब 90 प्रतिशत पुलिसकर्मियों को हर रोज 12 घंटे से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता है और उनमें से तीन-चौथाई कर्मी साप्ताहिक अवकाश भी नहीं ले पाते। इससे उन पर दबाव भी होता है लेकिन फिर भी वे अपने कत्र्तव्य पर डटे रहते हैं। 


पुलिस व्यवहार को बदलना होगा : भारत ने कोरोना काल में पुलिस का मानवीय चेहरा स्पष्ट देखा था। अत: स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस के व्यवहार में परिवर्तन लाना कठिन कार्य नहीं। 
केवल पुलिस तकनीक को उन्नत करने-जैसे गश्त करने वाले पुलिसकर्मियों पर बॉडी कैमरे की अनिवार्यता और पुलिस थाने की कार्रवाई की वीडियो रिकाॄडग आदि से बात नहीं बन सकती। इसके लिए मानसिकता में पर्याप्त बदलाव लाना होगा। संभव है कि इस तरह के बदलाव लाने में दशकों लग सकते हैं लेकिन असंभव तो नहीं है। खैर, इन प्रयासों के साथ-साथ ईमानदार राजनीतिक नेतृत्व और दृढ़ इच्छा शक्ति की भी आवश्यकता होगी।-लालजी जायसवाल     
 

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