लड़कियों की ‘शादी की न्यूनतम उम्र’ में वृद्धि से बदलेगी सूरत

Wednesday, Aug 26, 2020 - 03:30 AM (IST)

अब तक जिस बाल विवाह को खत्म करने की सोच को केवल किताबों और सैमीनारों तक ही सीमित समझा जा रहा था उस पर प्रधानमंत्री मोदी की गंभीरता ने एक बार फिर से विमर्श खड़ा कर दिया है। दरअसल, स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु पर पुनर्विचार करने की बात कही है। साफ तौर पर कहें तो प्रधानमंत्री ने शादी की न्यूनतम उम्र को 18 साल से बढ़ाकर 21 करने के संकेत दिए हैं। शादी की न्यूनतम आयु में बदलाव का संकेत देकर प्रधानमंत्री ने यकीनन एक ऐसी बहस को छेड़ा है जिसकी दशकों से जरूरत महसूस की जा रही थी। 

हालांकि, भारत में महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु हमेशा ही एक विवादास्पद विषय रहा है और जब भी इस प्रकार के नियमों में परिवर्तन की बात की गई है, तो सामाजिक और धार्मिक रुढि़वादियों का कड़ा प्रतिरोध देखने को मिला है। बात चाहे मातृत्व मृत्यु दर की हो या शिशु मृत्यु दर की, इसमें ग्राफ के बढऩे के पीछे कम उम्र में विवाह को भी एक वजह माना जाता रहा है। मौजूदा वक्त में कानूनी तौर पर लड़कों के लिए शादी की उम्र 21 साल है जबकि लड़कियों के लिए 18 साल। लेकिन, सरकार को महसूस हो रहा है कि लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल भी कम है। वहीं दूसरी ओर, 18 साल से कम उम्र में भी लड़कियों की शादी के मामले हमेशा ही प्रकाश में आते रहे हैं। 

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा इसी वर्ष 2 जुलाई को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक बाल विवाह पर लगभग संपूर्ण विश्व में प्रतिबंध के बाद भी व्यापक स्तर पर इस प्रथा को अमल में लाया जा रहा है। यूनिसेफ का अनुमान है कि भारत में हर साल कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में कर दी जाती है। दूसरे शब्दों में, भारत विश्व में सर्वाधिक बाल विवाह वाला देश है। भारत में बीते 5 सालों में 3 करोड़ 76 लाख लड़कियों की शादियां हुईं। इनमें से 1 करोड़ 37 लाख लड़कियों ने 18-19 साल की उम्र में शादी की। वहीं, 75 लाख लड़कियों ने 20-21 साल की उम्र में शादी की। 

ग्रामीण महिलाओं की बात करें तो 5 सालों में 61 फीसदी ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली लड़कियों ने 18-21 की उम्र के बीच शादी की। वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक 20-24 आयु वर्ग की महिलाओं में से 48 फीसदी का विवाह 20 वर्ष की उम्र में हुआ तो वहीं, 26.8 फीसदी की शादी 18 साल से पहले ही हो गई थी। 

आंकड़ों पर गौर करें, तो कुल शादियों के मुकाबले बाल विवाहों की संख्या ज्यादा बड़ी नहीं है। इसके बावजूद मातृत्व मृत्यु दर में भारत का प्रदर्शन बेहद खराब है। भारत सरकार के नीति आयोग की वैबसाइट से पता चलता है कि भारत में प्रति लाख जन्म देने वाली माताओं में 2014-2016 के दौरान 130 माताओं की मौतें हुईं। इस मामले में असम में सबसे ज्यादा (237) और केरल में सबसे कम(46) मौतें हुईं। 2017 में जब विश्व बैंक ने मातृत्व मृत्यु दर की रैंकिग जारी की तब भारत को 186 देशों की सूची में 130वां स्थान मिला था। 

लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को बढ़ाने के पीछे सुप्रीम कोर्ट का 2017 का जजमैंट तो एक फैक्टर  है ही जिसमें वैवाहिक बलात्कार से बेटियों को बचाने के लिए बाल विवाह को पूरी तरह से अवैध मानने की बात कही गई थी। लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी का निशाना कहीं और है जिसमें वह एक तीर से तीन जगहों पर निशाना लगाना चाह रहे हैं। दरअसल, लड़कियों की शादी की उम्र में इजाफे के पीछे सरकार की दूरगामी सोच काम कर रही है। बात चाहे 16 साल की हो या 18 की, इस उम्र में लड़कियां इतनी परिपक्व नहीं हो पातीं कि वे मां बन सकें। 

लिहाजा, छोटी उम्र में विवाह होने के बाद गर्भावस्था में जटिलताओं और बाल देखभाल के बारे में जागरूकता की कमी के कारण मातृ और शिशु मृत्यु दर में वृद्धि देखने को मिलती है। यही कारण है कि इसी साल जून में सामाजिक कार्यकत्र्ता जया जेतली की अध्यक्षता में केेंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मातृत्व की आयु, मातृत्व मृत्यु दर और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार से संबंधित मुद्दों की जांच के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया। यह टास्क फोर्स गर्भावस्था, प्रसव और उसके बाद मां और बच्चे के चिकित्सीय स्वास्थ्य एवं पोषण के स्तर के साथ विवाह की आयु और मातृत्व के सह संबंध की जांच करेगी और महिलाओं के लिए विवाह की वर्तमान आयु 18 को 21 साल तक बढ़ाने के विकल्प पर भी विचार करेगी।-रिजवान अंसारी 
 

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