महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों में हुई वृद्धि

Sunday, Mar 10, 2024 - 05:54 AM (IST)

योजनाओं को शुरू करके महिलाओं को सशक्त बनाएं ताकि महिलाएं विभिन्न विषयों में अपनी जगह बनाने में सक्षम हो सकें, जिसके लिए केंद्र सरकार उनकी बेहतरी के लिए रास्ते बनाकर हरसंभव प्रयास कर रही है, लेकिन प्राथमिकता अच्छी शिक्षा प्रदान करने पर होनी चाहिए। किसी भी चीज से पहले घर, बाहर और कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाना चाहिए। जब तक लड़कियां/ महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करेंगी तब तक वे कुछ नहीं कर पाएंगी। 

आजकल हर दूसरे दिन दुष्कर्म की घटनाएं हो रही हैं और अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं। दुख की बात है कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, हरियाणा की ‘आपकी बेटी, हमारी बेटी’ योजना, सभी कागजों में हैं। लड़कियों के खिलाफ क्रूरता की खून जमा देने वाली घटनाएं रोजाना सामने आती हैं और हर मामला दूसरे से कम भयानक नहीं होता। जहां तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी का सवाल है, उनका प्रतिनिधित्व बेहद कम है। वर्तमान में प्रतिनिधित्व नाममात्र का है। संसद ने हाल ही में विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण का बिल पारित किया है जिसे सभी ने स्वीकार कर लिया है। 

इसके अलावा महिलाएं समुदाय की जरूरतों को बेहतर ढंग से जानती हैं और कोई भी समाज जो महिलाओं को बाहर कर देता है, वह आधी से ज्यादा प्रतिभा, क्षमता और उसके पास मौजूद संसाधनों को बाहर कर देता है। लेकिन महिलाओं द्वारा आगे बढ़ाए गए हर कदम को पुरुष उन्हें आधा कदम पीछे धकेलने में कामयाब हो जाते हैं। शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर लैंगिक समानता को सुनिश्चित करने और बढ़ावा देने के लिए अभी भी काफी काम करने की जरूरत है। इन सबके बावजूद घरेलू ङ्क्षहसा के मामलों में वृद्धि हुई है और महिलाओं के खिलाफ अपराध में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो कि एक बड़ी समस्या प्रतीत होती है। 

घरेलू हिंसा एक ऐसा विषय है जिसे बहुत कम लोग स्वीकार करना या इसके बारे में बोलना पसंद करते हैं। हमारे घरों में पितृसत्ता व्याप्त है और महिलाओं को घर में क्रूरता, दुव्र्यवहार और अधीनता का सामना करना पड़ता है। हमें एक समतामूलक समाज बनाने की जरूरत है। पुरुषों और महिलाओं दोनों को नारीवादी होने की जरूरत है क्योंकि नारीवादी वह व्यक्ति है जो पुरुषों और महिलाओं की समानता में विश्वास करता है। अपनी ही महिलाओं को कमजोर और अक्षम बताना दुखद है। कोई राष्ट्र अपनी जनसंख्या के लगभग आधे अनुपात को अपने अधीन करके कैसे प्रगति कर सकता है?-राज कुमार कपूर, रोपड़

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