पंजाब में ‘बेअदबी’ की घटनाएं और ‘अलगाववाद’
punjabkesari.in Wednesday, Oct 15, 2025 - 05:53 AM (IST)
7 अक्तूबर, 2025 को, मंजीत सिंह उर्फ बिल्ला ने जम्मू और कश्मीर के सांबा जिले के कौलपुर गांव में गुरुद्वारा सिंह सभा में श्री गुरु ग्रंथ साहिब के एक स्वरूप को कथित तौर पर आग लगाने का प्रयास किया। पुलिस ने अगले दिन उसे गिरफ्तार कर लिया लेकिन गुस्साए स्थानीय सिखों ने उसके घर को जलाकर और ध्वस्त करके जवाबी कार्रवाई की। अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गडग़ज्ज ने घटनास्थल का दौरा करने के बाद सभी गुरुद्वारा पदाधिकारियों और प्रबंधन समिति के सदस्यों पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया और दो अतिरिक्त कथित अपराधियों की गिरफ्तारी की मांग की।
भारत और विदेशों में सिख अलगाववादी समूहों द्वारा सांप्रदायिक तनाव भड़काने और खालिस्तानी एजैंडे को आगे बढ़ाने के लिए बेअदबी की अवधारणा का तेजी से फायदा उठाया जा रहा है। कौलपुर की घटना उसी पैटर्न का अनुसरण करती है, जो 2015 में पंजाब के फरीदकोट में बरगाड़ी बेअदबी मामले से शुरू हुआ था, जहां श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के बाद बहबल कलां में पुलिस की गोलीबारी में 2 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। इसके बाद बेअदबी के मामलों की बाढ़ आ गई। 2015 के बाद से, बरगाड़ी मामले के 2 दर्जन से ज्यादा आरोपियों में से 4 विदेश में खालिस्तानी समर्थक समूहों या उनसे जुड़े गैंगस्टरों द्वारा लक्षित हमलों में मारे जा चुके हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े पंजाब में बेअदबी की लगातार जारी समस्या को रेखांकित करते हैं। 2018 और 2023 के बीच, पंजाब में भारतीय दंड संहिता की धारा 295-297 के तहत सबसे अधिक अपराध दर दर्ज की गई, जिसमें 2018 में 202 मामले, 2019 में 180, 2020 में 165, 2021 में 189, 2022 में 205 और 2023 में 194 मामले दर्ज किए गए।
जवाब में, पंजाब विधानसभा ने 15 जुलाई, 2025 को पवित्र धर्मग्रंथों के विरुद्ध पंजाब अपराधों की रोकथाम विधेयक, 2025 पारित किया, जिसमें बेअदबी के लिए 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रस्ताव रखा गया। हितधारकों से परामर्श करने और 6 महीने के भीतर रिपोर्ट देने के लिए 15 सदस्यीय समिति का गठन किया गया। बेअदबी के मामलों में अपर्याप्त प्रतिक्रिया के लिए पंजाब की एक के बाद एक सरकारों को आलोचना का सामना करना पड़ा है। कई जांचें अधूरी रह गई हैं, जिनमें आरोपियों को ‘मानसिक रूप से विक्षिप्त’ करार देकर जानबूझकर जांच को कमजोर करने के आरोप लगे हैं। कई मामलों में, भीड़ या आपराधिक गिरोहों ने मुकद्दमे से पहले ही अभियुक्तों की हत्या कर दी। ऐसे कृत्यों को अक्सर ‘तत्काल न्याय’ कहकर उचित ठहराया जाता है और कभी-कभी गुरुद्वारों या पंथक संगठनों द्वारा अपराधियों को सम्मानित किया जाता है, जिससे यह चक्र और भी मजबूत होता है।
कट्टरपंथी राजनीतिक समूहों ने अपने एजैंडे को आगे बढ़ाने के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाया है। बेअंत सिंह (पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे) के बेटे सरबजीत सिंह ने पिछले आम चुनाव में 2015 के बेअदबी मामले पर अपना अभियान केंद्रित करके, न्याय में देरी से जनता की निराशा का फायदा उठाकर फरीदकोट संसदीय सीट जीती थी।खालिस्तान समर्थक गुट बेअदबी की घटनाओं का इस्तेमाल ‘ङ्क्षहदू आधिपत्य’ के तहत सिखों के पीड़ित होने का आख्यान प्रचारित करने के लिए करते हैं। ये समूह, ऐसे कृत्यों को भारतीय राज्य द्वारा सिख धर्म को कमजोर करने के जानबूझकर किए गए प्रयासों के रूप में चित्रित करते हैं। यह बयानबाजी, जो 1980 के दशक के खालिस्तानी विद्रोह की याद दिलाती है, डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल घेराबंदी की मानसिकता को बढ़ाने के लिए करती है, हर बेअदबी के मामले को प्रतिद्वंद्वी समुदायों या राज्य की साजिश के रूप में पेश करती है।
इस तरह के आख्यान विशेष रूप से सिख प्रवासी समुदाय के एक हिस्से के साथ गूंजते हैं, जो अपनी भौगोलिक दूरी के बावजूद इन घटनाओं से भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं। इससे उत्पन्न आक्रोश बाहर विरोध प्रदर्शन और विदेशी सरकारों की पैरवी करने के प्रयासों को बढ़ावा देता है, अक्सर बिना सत्यापित तथ्यों के। खुद को सिख धर्म के रक्षक के रूप में पेश करने वाले खालिस्तानी प्रवासी समूह अक्सर विदेशों में सिखों के खिलाफ भेदभाव या पाकिस्तान जैसे देशों में सिख अल्पसंख्यकों के जबरन धर्मांतरण जैसे व्यापक मुद्दों की अनदेखी करते हैं। उनका ध्यान भारत-विरोधी आख्यान पर रहता है, धार्मिक स्वतंत्रता के वैश्विक उल्लंघनों को दरकिनार करते हुए, जैसे कि हाल ही में अमरीकी सेना द्वारा दाढ़ी रखने पर प्रतिबंध।
सिख पहचान से छेड़छाड़ करने और सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए बेअदबी की घटनाओं का फायदा उठाना बाहरी रणनीतियों, खासकर पाकिस्तान की ‘भारत को हजार घाव देकर खून बहान’ की नीति से मेल खाता है। इसका मुकाबला करने के लिए पंजाब के राज्य संस्थानों को सक्रिय कार्रवाई, पारदर्शी जांच और त्वरित न्याय को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि निगरानी ङ्क्षहसा और अलगाववादी दुष्प्रचार को रोका जा सके। हर बेअदबी मामले में विभाजनकारी आख्यानों को ध्वस्त करने और क्षेत्र को स्थिर करने के लिए कठोर, साक्ष्य-आधारित जांच की आवश्यकता होती है।-निजीश एन
