इस तरह रुक सकती हैं ‘रेप’ की घटनाएं

Wednesday, Dec 04, 2019 - 01:22 AM (IST)

हैदराबाद रेप केस ने देश को दहला कर रख दिया है। इससे 7 साल पहले 2012 में दिल्ली के निर्भया रेप केस से देश थरथराया था। उससे भी पहले जाएं तो राजस्थान की भंवरी देवी रेप केस से भूचाल आया था। उससे भी पहले जाएं तो मथुरा रेप केस से यू.पी. की राजनीति कांपी थी। मायावती के साथ हुए गैस्ट हाऊस कांड पर भी भारी हंगामा मचा था। इतने उदाहरण देने का मतलब यही है कि हर बार क्या केवल विरोध प्रदर्शन, आरोप प्रत्यारोप, बहस, मोमबत्ती वॉक तक ही सब कुछ सिमट कर रह जाएगा। कुछ कानून बदल दिए जाएंगे। कुछ नए बना दिए जाएंगे। कुछ कानूनों को सख्त कर दिया जाएगा। क्या इतने सब से महिलाओं के खिलाफ अत्याचार होने रुक जाएंगे। क्या इतने सब से बलात्कार होने का सिलसिला थम जाएगा। 

उठते हैं कई सवाल
हैदराबाद रेप के बाद वहां की पुलिस ने एक एडवायजरी जारी की है। महिला घर से निकले तो बताकर जाए कि कहां जा रही है और कब तक लौटना होगा। आखिरी लोकेशन शेयर करे। सुनसान रास्तों पर न जाए, भीड़ भरे रास्तों से निकले और कहीं इंतजार भी करना है तो ऐसी जगह करे जहां लोग हों, जिस कार या आटो में बैठे उसका नम्बर नोट कर घरवालों को भेज दे। आदि-आदि। सवाल उठता है कि क्या ऐसा होने से महिला पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगी। क्या महिला का रेप नहीं होगा। क्या होने की दशा में पुलिस तत्काल मौके पर पहुंच जाएगी। क्या आरोपियों के खिलाफ जल्द चार्जशीट दाखिल हो जाएगी।

क्या फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन हो जाएगा। क्या फास्ट ट्रैक कोर्ट महीने भर में फैसला सुना देगा। आदि-आदि। लोकसभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैदराबाद रेप केस की कड़ी निंदा कर रहे थे। कह रहे थे कि निर्भया के बाद कड़े कानून बनाए गए और भी कड़े कानून बनाए जा सकते हैं। राजनाथ को कहना चाहिए था कि कड़े कानूनों की पालना क्यों नहीं हो रही है उसकी समीक्षा किए जाने की जरूरत है। 

राहत देने का एक मंच एक आधार एक संस्था होनी चाहिए
1974 में महिला आयोग का गठन किया गया था। सरकार को चिंता हुई थी कि महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है और महिलाओं को राहत देने का एक मंच एक आधार एक संस्था होनी चाहिए। तब रेप के मामलों में कन्विक्शन रेट 44 प्रतिशत था। आज सख्त से सख्त कानून है। सबूत तलाशने की उन्नत तकनीक है। डी.एन.ए. टैस्ट से लेकर अन्य हथियार आरोपी को घेरने के लिए मौजूद हैं लेकिन आज रेप मामलों का कन्विक्शन रेट 25 प्रतिशत ही है यानी जब कानून सख्त नहीं थे तब हर दूसरा आरोपी जेल जा रहा था। आज सख्त कानून हैं लेकिन चौथा आरोपी ही जा रहा है। तब रेप केस का फैसला होने में 6 साल के लगभग औसत रूप से लगते थे। आज एक रेप केस का फैसला आने में औसतन 8 से 10 साल लगते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण निर्भया रेप केस है जहां 7 साल बाद भी आरोपियों को फांसी पर चढ़ाया नहीं जा सका है। 

क्या हमारी संसद रेप के मामलों में सुप्रीम कोर्ट से जल्द फैसला सुनाने और राष्ट्रपति को दया याचिका लगाने के नियमों को सख्त करने का काम नहीं कर सकती। क्या इस बारे में कोई कानून नहीं बनाया जा सकता। चलिए मान लिया कि यह भारी काम है। तो कम से कम संसद एवीडैंस एक्ट में तो बदलाव कर सकती है। नया कानून बन सकता है कि पीड़िता बयान देने सिर्फ एक बार अदालत आएगी। वहां कैमरे के सामने सुना जाएगा और जितनी भी बहस, जितना भी क्रास एग्जामिनेशन करना है वह एक ही दिन हो जाए। क्या नया कानून नहीं बन सकता जिसमें रेप के मामलों में किसी वकील को दो बार से ज्यादा तारीख नहीं बढ़ाने दी जाएगी। तारीख भी 3 या 4 दिन तक ही बढ़ाई जा सकेगी। इससे ज्यादा बार आरोपियों के वकील ने तारीख लेने की कोशिश की तो बिना उनके पक्ष को सुने कोर्ट को आदेश पारित करने का अधिकार मिल जाएगा। 

रेप करने वाले को पता होना चाहिए कि पकड़े जाने के सात दिन के अंदर पुलिस चार्जशीट दायर कर देगी। उसे पता होना चाहिए कि मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट में जाएगा और रोज लगातार सुनवाई होगी। उसे पता होना चाहिए कि उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी और 2 महीने बाद वह जेल में होगा। 6 महीनों बाद उसे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा। वैसे बच्चियों से रेप के मामले में या सामूहिक रेप के मामलों में फांसी की सजा का जो प्रावधान किया गया है उसे लेकर विवाद है। सरकार का मानना था कि फांसी की सजा निवारक का काम करेगी। उधर महिला संगठनों का कहना था कि ऐसी सजा का प्रावधान होने पर रेप करने वाला पीड़िता को जान से मार देगा। इससे सबूत भी कुछ नष्ट होंगे जिसका फायदा आरोपी के वकील उठा सकेंगे। हम देख रहे हैं कि रेप पीड़िताओं को मारे जाने की घटनाएं बढ़ी हैं। फांसी के प्रावधान पर भी नए सिरे से बहस होनी चाहिए।-विजय विद्रोही

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