ऐसे तो भाजपा को चुनौती नहीं दे पाएगा ‘इंडिया’

Thursday, Jan 25, 2024 - 06:23 AM (IST)

यह सच है कि हर चुनाव अलग होता है, पर वह लडऩा तो पड़ता है। सच यह भी है कि हर चुनाव के लिए समयानुसार अलग रणनीति बनानी पड़ती है। ऐसे में अप्रैल-मई में होने वाले 18वीं लोकसभा के चुनाव के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष की चुनावी रणनीति और तैयारियों पर निगाह डालें तो 28 विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडिया’ भाजपा की अगुवाई वाले 38 दलों के गठबंधन एन.डी.ए. के विरुद्ध फिलहाल कहीं टिकता नजर नहीं आता। 

सवाल सिर्फ गठबंधनों में शामिल दलों की संख्या का नहीं है क्योंकि दोनों ही ओर कई ऐसे दल भी हैं, जिनका संसद में कोई सदस्य नहीं या फिर एक-दो सदस्य ही हैं। बेशक बैठकें ‘इंडिया’ की ज्यादा हुई हैं, पर कोई ठोस परिणाम अभी तक नजर नहीं आया। हां, ‘इंडिया’ गठबंधन में अनबन की चर्चाएं अक्सर चलती रहती हैं, जिनकी सच्चाई का दावा अगर नहीं किया जा सकता तो बहुत विश्वसनीय खंडन भी नहीं किया जाता। अब जबकि लोकसभा चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं, ‘इंडिया’ न तो संयोजक का नाम तय कर पाया है, न ही किसी भी राज्य में सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दे पाया है। अगर घटक दलों के नेता वर्चुअल मीटिंग तक में शामिल होने का समय नहीं निकाल पाते, तब गठबंधन के प्रति उनकी गंभीरता पर सवाल उठेंगे ही। 

अभी तक सपा और रालोद के बीच उत्तर प्रदेश में सीट बंटवारे का ही विवरण सामने आया है। जयंत चौधरी के रालोद को मिली 7 सीटों के नाम भी सामने आए हैं। हालांकि सीटों और उनकी संख्या में कुछ फेरबदल अंतिम समय तक संभव है, लेकिन कम से कम इतनी जानकारी सार्वजनिक हुए बिना सकारात्मक चर्चा और सही दिशा में आगे बढऩे जैसे राजनीतिक जुमलों का जनता तो दूर, कार्यकत्र्ताओं पर भी कोई असर नहीं होता। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में जीत के बाद भाजपा ने 3 दिसंबर, 2023 को ‘400 पार’ और नरेंद्र मोदी सरकार की ‘हैट्रिक’ का नारा दिया। बेशक जमीनी राजनीतिक समीकरणों में वह लक्ष्य आसान नहीं लगता, पर प्रधानमंत्री मोदी समेत पूरी भाजपा उसे हासिल करने की दिशा में जुट अवश्य गई है। 

दक्षिण भारत, भाजपा की राजनीति की सबसे कमजोर कड़ी है। वहां की कुल 131 लोकसभा सीटों में से 2019 में भाजपा सिर्फ 29 ही जीत पाई थी यानी कांग्रेस से सिर्फ एक ज्यादा। फिर इस बीच कांग्रेस ने भाजपा से दक्षिण भारत में उसके एकमात्र दुर्ग कर्नाटक की सत्ता भी छीन ली, जहां से पिछली बार भाजपा 24 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही थी। कांग्रेस तेलंगाना में भी सरकार बनाने में सफल हो गई, जहां से भाजपा ने पिछली बार 4 सीटें जीती थीं। 

जाहिर है, पिछले लोकसभा चुनाव में अपने दम पर 303 सीटें जीतने वाली भाजपा के 400 पार के लक्ष्य की राह में चुनौतियां अपार हैं। फिर भी खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह दक्षिण भारत को मिशन बना कर जुट गए हैं वह चुनावी राजनीति करने वाले किसी भी दल और नेता के लिए मिसाल है। अयोध्या में राम मंदिर में राम लला की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा उत्तर भारत में हुई, पर उससे बने माहौल का लाभ उठाने के लिए ही सही, मोदी ने 11 दिन के विशेष अनुष्ठान के दौरान ही मंदिर-मंदिर पूजा-अर्चना कर दक्षिण और पश्चिम भारत की भी परिक्रमा कर ली। इस दौरान उन्होंने बड़ी-बड़ी परियोजनाओं की सौगात भी दी। 

दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन के घटक दल अभी तक संयोजक और सीटों के बंटवारे पर ही अटके हैं सांझा न्यूनतम कार्यक्रम और संयुक्त चुनाव प्रचार की रणनीति तो बहुत दूर की बात है। विपक्षी गठबंधन बने सात महीने हो गए, पर इस बीच नामकरण तथा चंद निष्क्रिय समितियों के गठन के अलावा अगर कुछ देखने में आया है तो वह है 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में घटक दलों में परस्पर तल्खी और अभी भी जारी सेंधमारी। कांग्रेस, विपक्षी गठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल है, पर उसके सबसे बड़े नेता राहुल गांधी की प्राथमिकता भारत जोड़ो न्याय यात्रा है। मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, पर गठबंधन से जुड़े मुद्दों पर वह अपेक्षित सक्रियता नहीं दिखा रहे। 

एन.डी.ए. और ‘इंडिया’ की चुनावी तैयारियों का यह अंतर तब और ज्यादा बड़ा नजर आता है, जब आप देखें कि एन.डी.ए. की देश के 16 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में सरकारें हैं, जबकि ‘इंडिया’ की मात्र 7 राज्यों में। वैसे 7वें राज्य केरल में वाम मोर्चा की सरकार है और दावे से नहीं कहा जा सकता कि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी के विरोध के चलते वाम दल, ‘इंडिया’ गठबंधन में रह भी पाएंगे या नहीं। दिल्ली और पंजाब में सरकार वाली आम आदमी पार्टी के साथ भी कांग्रेस के गठबंधन को ले कर अभी तक असमंजस बना हुआ है। बिहार में तो जद यू-राजद-कांग्रेस महागठबंधन पुराना है, पर वहां भी सीटों का बंटवारा अभी नहीं हो पाया है। 

जिस भाजपा को चुनावी टक्कर देने के लिए विपक्ष के 28 दलों ने नया गठबंधन बनाया है, उसकी अकेले 12 राज्यों में सरकार है, जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की अपनी सत्ता सिर्फ तीन राज्यों-हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना तक सिमट गई है। हिमाचल से मात्र चार लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं और पिछले चुनाव में चारों सीटें भाजपा ने जीती थीं। कर्नाटक और तेलंगाना से क्रमश: 28 और 17 लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं। बेशक ‘इंडिया’ शासित पश्चिम बंगाल, बिहार और तमिलनाडु से क्रमश: 42, 40 और 39 लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं, पर इस सच को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि लोकसभा की कुल 543 सीटों में से आधी जिन राज्यों में हैं, वहां एन.डी.ए. की सरकारें हैं। 

इनमें से कई राज्यों में एन.डी.ए. को पिछली बार 50 प्रतिशत से भी ज्यादा वोट मिला था। ऐसे में ‘इंडिया’ की चुनावी तैयारियों की सुस्त चाल उसके घटक दलों की नीति और नीयत, दोनों पर ही सवालिया निशान लगाती है, क्योंकि हर सीट पर सांझा उम्मीदवार उतारे बिना एन.डी.ए. का मुकाबला मुमकिन नहीं लगता और सीट बंटवारे में हो रहा विलंब उसकी संभावनाओं को क्षीण ही कर रहा है।-राज कुमार सिंह

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