आधुनिकता की दौड़ में पर्यावरण को खतरे में धकेलता समाज

punjabkesari.in Wednesday, Jun 05, 2024 - 05:24 AM (IST)

हमारी धरती, जनजीवन को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण का सुरक्षित रहना बहुत जरूरी है। विश्व के देश आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन इस राह में दिनों-दिन दुनियाभर में ऐसी चीजों का इस्तेमाल बढ़ गया है और इस तरह से लोग जीवन जी रहे हैं, जिससे पर्यावरण खतरे में है। इंसान और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं। ऐसे में प्रकृति के साथ इंसानों को तालमेल बिठाना होता है। लेकिन लगातार वातावरण दूषित हो रहा है जिससे कई तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं, जो हमारे जनजीवन को तो प्रभावित कर ही रही हैं, साथ ही कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं की भी वजह बन रही हैं। सुखी-स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है। इसी उद्देश्य से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोगों को पर्यावरण के प्रति सचेत और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। 

हम देशवासियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक होना चाहिए और इस दिन प्रत्येक व्यक्ति एक पौधा अवश्य लगाए, ताकि पर्यावरण को बचाया जा सके। आज देश भर में युवा पीढ़ी अपना जन्मदिन और मैरिज एनिवर्सरी होटल और रैस्टोरैंट में मानती है, उसका दायित्व बनता है कि इस आधुनिकता की दौड़ को छोड़कर वह अपने गांव में, शिक्षा संस्थानों या कार्यालयों में इस दिन पौधा अवश्य लगाएं, ताकि वह पर्यावरण को तो स्वच्छ और साफ-सुथरा रखे ही, आपकी यादगार भी बनी रहे। दुनिया में लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है जिसके कारण प्रकृति पर खतरा बढ़ रहा है, जिसे रोकने के उद्देश्य से पर्यावरण दिवस मनाने की शुरूआत हुई। भारत भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीर है इसी कारण भारत ने एक कानून बनाया है। इसके तहत 19 नवंबर 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया था। जब पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा था तो भारत में भी मनाया गया। 

हर वर्ष इस दिन के लिए एक थीम जारी किया जाता है। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का थीम है ‘लैंड रेस्टोरेशन, डैजर्टीफिकेशन एंड ड्राउट रीसीलिएंस’। पर्यावरण को साफ-सुथरा रखना हम सब नागरिकों का कत्र्तव्य है लेकिन मनुष्य अपने निजी स्वार्थ हेतु पर्यावरण को लंबे समय से प्रदूषित तथा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है। मनुष्य के इस कृत्य के कारण प्रकृति विनाश की तरफ बढ़ रही है और मनुष्य को पर्यावरण संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जंगलों में आग लगना या आग लगाना पर्यावरण को जहां दूषित कर रहा है, वहीं जीव-जंतु या वन्य प्राणी विलुप्त हो रहे हैं, जिसके चलते जंगलों में जड़ी-बूटियां भी नष्ट हो रही हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि एक देश, जो अपने इतिहास को खत्म कर देता है, वह अपने आप को नष्ट कर देता है। जंगल हमारी जमीन के फेफड़े हैं, जो हमें शुद्ध हवा प्रदान करते हैं। अगर जंगल नहीं होंगे तो हम सब खत्म हो सकते हैं। 

आज हमें पर्यावरण आंदोलनकारियों को भी नहीं भूलना चाहिए, जिन्होंने पर्यावरण की रक्षा करते-करते अपना बलिदान दे दिया। राजस्थान में बिश्नोई पंथ के लोगों का बहुत बड़ा योगदान रहा है, जिसके सैंकड़ों लोगों ने अपनी जान देकर पेड़ों की रक्षा की थी। उसी तरह से चिपको आंदोलन भी पर्यावरण का एक हिस्सा है, जहां महिलाएं पेड़ों से चिपक गई थीं और ठेकेदार को पेड़ों को काटने के लिए मना कर दिया था। हमें उनके योगदान को नहीं भूलना चाहिए। आओ मिलकर पर्यावरण दिवस मनाएं, इस धरती को सबके जीने योग्य बनाएं। अगर हम पेड़ों को ऐसे ही काटते रहे तो वह दिन दूर नहीं, जब तापमान 60 डिग्री तक पहुंच जाएगा और मनुष्य झुसलने लग पड़ेगा। इसलिए हमें सरकारों पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए कि वह कोई कानून बनाए, हम खुद पेड़ों की रक्षा करें और अधिक से अधिक पौधारोपण करें।-प्रो. मनोज डोगरा
 


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