भारत-चीन में संवाद का जारी रहना दोनों के हित में

Thursday, Sep 07, 2017 - 03:35 AM (IST)

‘ब्रिक्स’ मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चूंकि अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग से मिलना था इसलिए इससे ऐन पहले भारत-चीन तनाव का कम होना एक स्वागत योग्य कदम था। डोकलाम को लेकर तनाव 2 महीने से अभी अधिक समय तक बना रहा और विवादित सीमा के साथ-साथ अन्य कुछ स्थानों पर भी तनाव के संकेत मिलने लगे थे। 

यह तो स्पष्ट था कि कुछ हद तक अपने अंदर की राजनीति के चलते चीन अपना बाहुबल प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहा था। कुछ ही महीनों में शी जिनपिंग दोबारा मौजूदा पद का चुनाव लडऩे जा रहे हैं। ऐसे में सीमा पर विवाद भड़काना उनके लिए हितकर है क्योंकि इससे वह चीनी लोगों को यह दिखाना चाहते हैं कि वह कितने सशक्त और कठोर नेता हैं। यह सच है कि चीन अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना और यह दिखाना पसंद करता है कि वह कितना महाबली है। दक्षिण चीन सागर में हाल ही में उसने ऐसा ही प्रदर्शन करने का प्रयास किया था लेकिन इसका अन्य देशों द्वारा भारी विरोध किया गया। ऊपर से इसका सहयोगी उत्तर कोरिया इसके हाथों में से निकलता जा रहा है। शायद इसी कारण चीन को भारत-चीन सीमा पर फोकस बनाना पड़ा। 

ऐसा लगता था जैसे चीन भारत की ओर से पहला कदम उठाए जाने का इंतजार कर रहा था। यही कारण था कि जैसे ही भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने वार्तालाप के लिए हाथ बढ़ाया चीनी नेतृत्व ने दोनों हाथों से यह मौका लपक लिया। संसद में बोलते हुए सुषमा स्वराज ने कहा था कि तनाव का समाधान वार्तालाप से हो सकता है, युद्ध से नहीं। ऐन अगले ही दिन कोलकाता स्थित चीनी महावाणिज्य दूत मा झानवू ने कहा, ‘‘दोनों देशों के बीच बेशक मतभेद मौजूद हैं लेकिन हितों का सांझापन इससे कहीं अधिक शक्तिशाली है।’’ उन्होंने आगे कहा कि दोनों देशों को विवादित मुद्दे ‘‘विवेकपूर्ण, वस्तुपरक और रचनात्मक ढंगों से सुलझाने होंगे।’’ 

ब्रिक्स मीटिंग के लिए मोदी के चीन पहुंचने तक दोनों देशों की सैन्य टुकडिय़ां डोकलाम से पीछे हट चुकी थीं और दोनों में इस बात पर सहमति बन गई थी कि कोई भी एकतरफा तौर पर ऐसी कार्रवाई नहीं करेगा। मोदी और शी जिनपिंग ने न केवल हंसी-मजाक में कहकहे लगाए बल्कि यह भी फैसला किया कि सेना के निचले स्तरों तक मीटिंगें अक्सर आयोजित होती रहेंगी ताकि भविष्य में डोकलाम जैसे प्रकरण की पुनरावृत्ति न हो। बेशक दोनों नेताओं की मीटिंग के लिए केवल 20 मिनट का समय आबंटित था, फिर भी वे दोनों काफी लम्बे समय तक बातें करते रहे। 

मोदी ने शृंखलाबद्ध ट्वीट करते हुए लिखा: ‘‘मैं राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिला। हमने भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों पर सार्थक वार्तालाप किया। ब्रिक्स शीर्ष वार्ता के दौरान विभिन्न चर्चाएं भी अत्यंत फलदायक सिद्ध हुईं जिन पर आने वाले समय में हम आगे कदम बढ़ाएंगे। ब्रिक्स शीर्ष वार्ता दौरान स्नेहपूर्ण चीन के लोगों और सरकार का शुक्रिया अदा करता हूं।’’ शी जिनपिंग का हवाला देते हुए समाचार एजैंसियों ने लिखा ‘‘भारत और चीन के बीच स्वस्थ और स्थायी संबंध दोनों देशों की जनता के हित में होंगे।’’ वास्तव में यह बात सभी के लिए हितकर है कि दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बने रहें क्योंकि दोनों ही देशों द्वारा रक्षा पर बहुत अधिकखर्च किए जाने के साथ-साथ दोनों की पहुंच परमाणु हथियारों तक भी है, इसलिए दोनों के बीच व्यापक युद्ध विश्व के विनाश का मार्ग प्रशस्त करेगा। इसके साथ-साथ विश्व की अर्थव्यवस्था भी इन दोनों देशों के टकराव के फलस्वरूप औंधे मुंह गिर सकती है। 

इस युद्ध के परिणाम चीन के लिए कहीं अधिक घातक हो सकते हैं क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था बहुत भारी हद तक भारत, यूरोप तथा अफ्रीका महाद्वीप को किए जाने वाले निर्यात पर निर्भर है। चीन के दुर्भाग्य की बात यह है कि यूरोप और अफ्रीकी देशों को जाने वाले मार्ग ङ्क्षहद महासागर में से गुजरते हैं और इसी कारण किसी बड़े युद्ध की स्थिति में भारत चीन के समुद्री व्यापार में व्यवधान पैदा करने की क्षमता रखता है, जिससे चीन को बहुत बड़ा वित्तीय आघात लगेगा। वर्तमान में दोनों देशों के बीच बहुत बड़ा वित्तीय असंतुलन है। चीन भारत से जितना माल मंगवाता है उससे कहीं अधिक माल निर्यात करता है। दोनों आंकड़ों में एक अनुमान के अनुसार 46.56 अरब डालर का अंतर है।

चीन चूंकि बहुत बड़े स्तर पर उत्पादन करता है और साथ ही इसे सस्ती श्रम शक्ति भी उपलब्ध है, ऐसे में कारखानों में माल तैयार करने और इसे निर्यात करने का खर्च इतना कम आता है कि भारत को इसे अपने यहां तैयार करने की तुलना में चीन से आयात करना अधिक सस्ता लगता है। उदाहरण के तौर पर लुधियाना पूरे देश में साइकिल उद्योग के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था लेकिन अब यहां की अधिकतर ईकाइयों ने अपना काम बंद कर दिया है और वे केवल चीनी कलपुर्जे मंगवाकर उन्हें असैम्बल करने का काम करती हैं। आजकल ये कम्पनियां केवल एक ही नया काम करती हैं कि इन साइकिलों पर अपने ब्रांड के स्टिकर चिपकाती हैं। जालंधर का खेल एवं हैंडटूल उद्योग भी सस्ते चीनी आयात के कारण बहुत भारी दबाव झेल रहा है। 

अंतर्राष्ट्रीय कारकों तथा अर्थव्यवस्था तथा व्यापार की भूमिका के चलते भारत के साथ तनाव भड़काना चीन के लिए सरासर बेवकूफी होगी। इसी बीच भारत किसी भी तरह अपनी चौकसी कम करना गवारा नहीं कर सकता। कई बार ऐसे मौके आते हैं जब कोई छोटी-सी घटना भी बहुत बड़े तनाव का रूप धारण कर लेती है और यह भी हो सकता है कि यह नियंत्रण से बाहर चली जाए। ऐसे में दोनों देशों के लिए सभी स्तरों पर वार्तालाप संवाद रचाते रहना बहुत महत्वपूर्ण है।     

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