पंजाब में ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपय्या’ वाली नीतियां रही हैं

Monday, Jan 30, 2023 - 04:24 AM (IST)

पंजाब भारत का सरहदी राज्य है जिसमें ज्यादातर लोग कृषि के धंधे में जुटे हुए हैं। खैबर दर्रे से अरब तथा अन्य देशों के साथ शुरू से व्यापार होता रहा है। एक नई खोज के अनुसार डा. आर्थर मैडीसन ने यह सिद्ध किया है कि 1000 वर्ष तक दुनिया का सबसे अमीर देश भारत था। फिर उसके बाद विदेशों की लूट ने इसे आहिस्ता-आहिस्ता कंगाल कर दिया। 

पंजाब में 1839 ईस्वी तक शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने यहां पर राज किया तथा एक बार फिर पंजाब दुनिया का सबसे खुशहाल राज्य बन गया। अमन, शांति तथा इंसाफ के कारण विदेशों से कारोबारी भी यहां आए तथा महाराजा रणजीत सिंह के आदेश के अनुसार कि किसी छोटे से छोटे कार्य करने वाले को भी परेशान न किया जाए, के कारण पंजाब में कारोबार खूब प्रफुल्लित होता रहा। अंग्रेज हिंदुस्तान से कोहिनूर हीरे सहित केवल हीरे-जवाहरात ही नहीं ले गए बल्कि गुरु साहिबान की अनेकों बहुमूल्य वस्तुओं सहित सभी ऐतिहासिक वस्तुएं भी लूट कर ले गए। शिक्षा नीति को बदल कर पंजाब को केवल सेवादार ही बना डाला। 

देश के विभाजन के समय ही पंजाब लहूलुहान हुआ। आबादी के विस्थापन ने सरकार के लिए एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी। भाषा के आधार पर नए-नए राज्य बनाने का फैसला भारत सरकार द्वारा लिया गया मगर यह फार्मूला पंजाबी तथा पंजाब पर लागू नहीं हुआ। सरकार के साथ टक्कर लेने का नुक्सान केवल लोगों का होता है तथा इसका लाभ राजनीतिक व्यक्तियों का ही होता है। ऐसा ही कुछ 1948 से 1950 तक फिर उसके बाद 1956 से लेकर 1958 तक हुआ। पंजाब की प्रमुख विपक्षी पार्टी शिरोमणि अकाली दल तो कांग्रेस पार्टी का हिस्सा बनी रही। जब संविधान का निर्माण हुआ तब केवल कांग्रेस ही एक बड़ी पार्टी थी। हरियाणा पार्टी भी कांग्रेस का हिस्सा बन चुकी थी मगर पंजाब में विकास के लिए वांछित अमन-शांति लागू नहीं हुई। 1966 ईस्वी में पंजाब को एक बार फिर से बांटा गया। पंजाबी भाषायी क्षेत्र, भाखड़ा डैम पर कंट्रोल, चंडीगढ़ तथा नहरी जल को बांटने के मुद्दे खड़े रहे जो आज भी वैसे ही हैं। 

1966 से लेकर 1967 तक कृषि पर पंजाब आत्मनिर्भर नहीं था। दूसरे देशों से गेहूं मंगवाना पड़ता था फिर कृषि वैज्ञानिकों की मेहनत के फलस्वरूप हरित क्रांति ने पंजाब को देश का पेट भरने योग्य तथा अमीर बनाने की ओर अपना कदम आगे बढ़ाया। मगर नक्सलवाद ने फिर से पंजाब की शांति को तबाह कर दिया। तभी मुफ्त की रेवडिय़ां बांट कर सरकारी खजाने को लुटाने का धंधा शुरू हुआ। करों को देकर कोई गरीब नहीं हो जाता मगर बूंद-बूंद से घड़ा भर भी जाता है और एक छोटी-सी दरार से यह खाली भी हो जाता है। यहीं से पंजाब का खजाना खाली होने का काम शुरू हुआ।

चीन तथा रूस की तर्ज पर बंदूक की नोक पर क्रांति तथा समाजवाद लाने वाली ट्रेड यूनियनों ने उद्योगों को काम-धंधा बंद करने के लिए मजबूर कर दिया। अमृतसर, बटाला, छहर्टा, वेरका इत्यादि के कारखाने बंद होने शुरू हो गए और बाकी की रहती कसर लम्बे आतंकवाद ने पूरी कर दी। बाबू रजब अली ने अपनी कविता ‘अकल दे बाग’ में आजादी से पहले पंजाब के हर कस्बे में कारखानों का ब्यौरा दिया था। नए कारखाने तो क्या लगने थे खेमकरण का कंबल उद्योग तथा अन्य चलते भी कारखाने बंद हो गए। 

व्यापारी पंजाब छोड़ दूसरे प्रदेशों में जाने शुरू हो गए और पंजाब खाली होने लग पड़ा। आज भी पंजाब के व्यापारियों ने 10,000 करोड़ रुपए मूल्य के कारखाने उत्तर प्रदेश में लगाने का करार किया है। निरंतर हो रही लूट-खसूट तथा कत्लेआम से प्रत्येक पंजाबी तथा पंजाबियत सहमी हुई है। आखिर यहां पर कारोबार कौन करेगा? पाकिस्तानी पंजाब की सीमा के साथ लगते शहर कसूर, लाहौर, सियालकोट आदि प्रमुख कारखाने तथा व्यापारिक केंद्र हैं। मगर यहां गुरदासपुर, बटाला, रामदास, अजनाला, खालड़ा, खेमकरण तथा फिरोजपुर इत्यादि के कारोबार तथा कारखानों पर कब का ताला लग चुका है। 

यदि कोई कारोबार नजर आता भी है तो वह है नशे का कारोबार। नशे के कारोबारी सरकार बदलने से पहले ही टोपी-पगड़ी बदल कर सरकारी हो जाते हैं। यदि पकड़े जाते हैं तो अमली या फिर पांडी। पंजाब को पिछले 60 वर्ष की सरकारों की नीतियों ने ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपय्या’ जैसी कहावत को चरितार्थ कर दिया है। इसे आर्थिक रूप में एक नंबर से आखिरी नंबर पर ला दिया है। कुल जी.डी.पी. पर पंजाब के सिर पर 53 फीसदी कर्जा है तथा कुल आमदनी का 21 फीसदी केवल ब्याज पर ही खर्च हो रहा है। 

शिक्षा पर खर्चा केवल 12 प्रतिशत है तथा 4 प्रतिशत डाक्टरी सहूलियतों पर खर्च होता है। शायद यह प्रतिशत देश में सबसे कम है। दिसम्बर 2022 में पंजाब की जी.एस.टी. की उगाही मात्र 1734 करोड़ रुपए, हरियाणा की 6678 करोड़ रुपए तथा दिल्ली की 4401 करोड़ रुपए थी। ऐसे में एक बड़े प्रदेश पंजाब में मुफ्त की रेवडिय़ां देने के लिए पैसा कहां से आएगा? पंजाब का वार्षिक बजट दिल्ली की दोगुनी मात्रा से अधिक है और इसकी आमदन तीसरा हिस्सा। पंजाब के भीतर अधिकारियों की फौज है जिस पर बहुत अधिक खर्चा होता है। पंजाब में 20 वर्षों से ज्यादा समय से अधिकारियों की ओर से ही सारा खेल खेला जा रहा है। ऐसे में विकास के लिए अमन, शांति, इंसाफ तथा दूरअंदेशी की जरूरत है।-इकबाल सिंह लालपुरा(चेयरमैन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, भारत सरकार)

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