मुंबई में एक बार फिर ...

punjabkesari.in Sunday, Oct 27, 2024 - 05:28 AM (IST)

महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी ने सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया है। उनकी हत्या उन वर्षों की याद दिलाती है जब संगठित आपराधिक गिरोहों ने शहर को आतंकित किया था। संगठित आपराधिक गिरोह की संलिप्तता 1990 के दशक की याद दिलाती है। तब ऐसे गिरोहों की खुली मौजूदगी बहुत आम थी। अमीर और मशहूर लोग गैंगस्टरों की जबरन वसूली के डर से कोई भी त्यौहार नहीं मना पाते थे। जिसके बाद उन्हें पुलिस अधिकारियों द्वारा गोली मार दी गई या महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। यह कानून विशेष रूप से गिरोहों की हिंसक, नापाक गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए लाया गया था। 

न्यायिक जांच के कारण मुंबई में पुलिस द्वारा एनकाऊंटर की हत्याएं धीरे-धीरे कम होती गईं। हालांकि, अपराध सिंडीकेट से जूझ रहे अन्य राज्यों ने विवादास्पद ‘एनकाऊंटर’ संस्कृति का अनुकरण करना शुरू कर दिया जो न्याय प्रणाली की विफलता का संकेत है। एक कुशल, तकनीकी रूप से उन्नत पुलिस, फोरैंसिक प्रयोगशालाओं और न्यायिक बुनियादी ढांचे को शामिल करने की बजाय, उन्होंने ‘एनकाऊंटर’ के तेज लेकिन निश्चित रूप से हानिकारक विकल्प को चुना। मुंबई के अपराधी गिरोहों की शुरूआत शराब की तस्करी और जुए से हुई और धीरे-धीरे वे चांदी, सोना, रसायन और नशीले पदार्थों की तस्करी करने लगे। नागरिकों की सद्भावना को भुनाने के लिए, वे आधुनिक समय के रॉबिन हुड की तरह काम करते थे। गणपति पूजा का आयोजन करते थे, बीमार और विकलांगों को चिकित्सा सहायता प्रदान करते थे और जरूरतमंदों को वित्तीय सहायता प्रदान करते थे। 

80 के दशक की शुरूआत में मुंबई में मिलों की हड़ताल के कारण अभूतपूर्व बेरोजगारी के साथ, युवा, बेरोजगार पुरुष आसान तरीके से पैसा कमाने के लिए गिरोहों में शामिल हो रहे थे। हाजी मस्तान, करीम लाला, वरदराजन मुदलियार, इकबाल मिर्ची, दाऊद इब्राहीम ने फैसले लिए। लोकल लड़के भी अरुण गवली और अश्विन नाइक  जैसे उभरते गिरोहों में शामिल हो गए। ये गिरोह जल्द ही जमीन की कमी से जूझ रहे मुंबई में रियल एस्टेट के बेहद मुनाफे वाले कारोबार में लग गए। जमीन विवाद को निपटाने में सिविल अदालतों में लगभग 20 साल लग जाते हैं, लेकिन गैंगस्टरों की कंगारू अदालतों में 20 दिन से भी कम समय लगता है। व्यवसायी, बिल्डर और राजनेता उनके पास अपना हिसाब चुकता करने के लिए आते थे, जिससे संगठित अपराध में तेजी आई। अगर विवादित पक्ष बातचीत के लिए तैयार नहीं होता तो वे बंदूक उठा लेते थे। जल्द ही, सुरक्षा राशि आम हो गई। मशहूर हस्तियों और उद्योगपतियों को अपनी और अपनी संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से एक राशि का भुगतान करने के लिए कॉल आते थे। 

हिंसक गैंगस्टरों का डर, कानून लागू करने वाली एजैंसियों पर कम भरोसा और विवादित मामलों का बहुत ज्यादा लंबित होना जैसी बातों से त्वरित विवाद निपटान तंत्र की बाढ़ सी आ गई। संगठित आपराधिक गिरोह शिथिल रूप से कॉर्पोरेट संरचनाओं की नकल करते हैं। एक सदस्य को उसके शामिल होने के आधार पर मासिक भुगतान का आश्वासन दिया जाता है, आपराधिक गतिविधियां और विशिष्ट ‘ऑपरेशन’ किए जाते हैं। वफादारी सबसे मजबूत सामान्य गुण है और इसे कानूनी मदद प्रदान करके और पुलिस मुठभेड़ों में गिरफ्तार या मारे गए लोगों के परिवारों की देखभाल करके विकसित किया जाता है। गिरोह का नेता अपने चारों ओर एक मुख्य वफादार टीम रखता है जो फील्ड ऑपरेटरों को निर्देश देता है जो शायद ही कभी अपने ‘स्वामी और मालिक’ को देख पाते हैं। एक सख्त पदानुक्रम बनाए रखा जाता है और एक जरूरत-जानने की नीति सुनिश्चित करती है कि जब गिरोह का कोई सदस्य गिरफ्तार होता है, तो वह बहुत सीमित जानकारी ही बता सकता है। इन अपराध सिंडीकेट में शामिल होने की प्रेरणा वित्तीय लाभ से लेकर धर्म और राष्ट्र के नाम पर अच्छा महसूस कराने वाले कारकों तक होती है। 

लारैंस बिश्नोई का गिरोह सक्रिय है, जबकि उसका मुखिया करीब एक दशक से जेल में है, जिससे यह बात पुख्ता हो गई है कि उसे ताकतवर राजनेताओं का आशीर्वाद प्राप्त है और उसके कनाडा कनैक्शन उसे भारत में स्वतंत्र रूप से खेलने की अनुमति देते हैं। क्या मुंबई पुलिस सबूत इकट्ठा करने और यह साबित करने में सक्षम होगी कि बाबा सिद्दीकी की हत्या की साजिश साबरमती जेल के भीतर रची गई थी, यह अभी देखा जाना बाकी है। इस संबंध में, दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 268 (1)/ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बी.एन.एस.एस.) की धारा 303 के तहत गृह मंत्रालय का आदेश विवादास्पद है क्योंकि यह राज्य पुलिस को पूछताछ के लिए बिश्नोई को अपने मुख्यालय में ले जाने की अनुमति नहीं देता है। इसने गैंगस्टरों के राजनीतिक संरक्षण के बारे में अटकलों को और हवा दी है। अपराध सिंडीकेट की गतिविधियों का अध्ययन करने के लिए 1993 में स्थापित वोहरा समिति ने निष्कर्ष निकाला था कि उन्होंने ‘काफी ताकत और धन शक्ति विकसित की है और सरकारी अधिकारियों, राजनीतिक नेताओं और अन्य लोगों के साथ संबंध स्थापित किए हैं ताकि वे दंड से मुक्त होकर काम कर सकें।’ 

मुंबई और भारत में हिंसक अपराध सिंडीकेट के फिर से उभरने का अंत करने का समय अब आ गया है। इसे मुठभेड़ों के जरिए नहीं, बल्कि एक प्रभावी आपराधिक न्याय प्रणाली में निवेश करके इसका अंत किया जा सकता है। (लेखिका  मुंबई क्राइम ब्रांच की पूर्व प्रमुख हैं)साभार एक्सप्रैस न्यूज-मीरान चड्ढा बोरवंकर 


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