कई मायनों में अहम और बेमिसाल हैं यह चुनाव

Thursday, May 16, 2019 - 04:08 AM (IST)

अब आम चुनावों का अंतिम चरण बाकी है जिसमें 59 सीटों के लिए मतदान होगा। एक हफ्ते में चुनाव परिणाम घोषित हो जाएंगे। ऐसे में सबकी नजरें विभिन्न पाॢटयों के प्रदर्शन और नई सरकार के गठन पर हैं। यह चुनाव काफी लम्बे और कड़ी टक्कर वाले रहे जिनमें विभिन्न दलों के नेताओं ने पूरा जोर लगाया। सात चरणों में और लगभग डेढ़ महीने में सम्पन्न हो रहे इन चुनावों के नतीजों के बारे में हर कोई अनुमान लगा रहा है। एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि पिछले चुनावों के मुकाबले इन चुनावों के नतीजों के बारे में भविष्यवाणी करना बहुत कठिन है। 

कोई भी व्यक्ति किसी पार्टी या गठबंधन सहयोगियों को लेकर दावा करने से बच रहा है। इस बात को लेकर मतभेद हैं कि कौन-सी पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरेगी लेकिन अधिकतर लोग इस बात पर एक मत हैं कि अगली सरकार के गठन में सहयोगियों की अहम भूमिका रहेगी। कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं ने इन चुनावों को पिछले चुनावों के मुकाबले अलग और नया बना दिया है। 

उदाहरण के लिए, 70 के दशक अथवा एमरजैंसी के अंत तक कांग्रेस  सबसे बड़ी पार्टी थी और इसके पास  प्रधानमंत्री के पद के लिए स्पष्ट तौर पर एक चेहरा था। इसके बाद गठबंधन  का युग आया जिसमें सबसे बड़े  पद के लिए कोई चेहरा नहीं होता था। इस प्रकार हमारे यहां कई ऐसे नेता हुए जो प्रधानमंत्री बने लेकिन चुनाव प्रचार के समय उन्हें प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं किया गया। इन नेताओं में मोरारजी देसाई, वी.पी. सिंह, नरसिम्हाराव और मनमोहन सिंह शामिल हैं। इस मामले में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी तथा इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी अपवाद थे जिन्हें भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तुत किया गया था। 

2014 में आया बदलाव
भारतीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव 2014 में आया जब भाजपा  और उसके सहयोगियों ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया। दूसरी तरफ कांग्रेस ने यह चुनाव बिना किसी चेहरे के लड़ा क्योंकि वह यह निर्णय नहीं कर पाई कि राहुल गांधी को इस पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तुत किया जाए या नहीं। मोदी ने अपनी पार्टी और गठबंधन को एक बड़ी जीत दिलाई और तब से एक अजेय नेता के तौर पर अपनी छवि बनाने की कोशिश की। न केवल सहयोगी दल बल्कि भाजपा और आर.एस.एस. भी उनके काम में दखल देने से कतराते रहे। यहां तक कि मोदी भी अपने आप को तीसरे व्यक्ति के तौर पर संबोधित करने लगे। यह कहने की बजाय कि मैंने यह किया, वह किया वह कहते हैं, मोदी ने यह किया, वह किया। 

‘‘भाजपा-भाजपा’’ का नारा लगाने की बजाय ‘‘मोदी-मोदी’’ का नारा मशहूर किया गया। इससे व्यक्तिवाद का प्रचलन शुरू हुआ। ये चुनाव भी भाजपा और उसके सहयोगियों द्वारा मोदी को एक गैर विवादित नेता के तौर पर प्रस्तुत कर लड़े जा रहे हैं। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों तथा महागठबंधन के पास भी प्रधानमंत्री पद के लिए कोई चेहरा नहीं है। सपा और बसपा मुलायम सिंह यादव और मायावती को, तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी को इस पद पर देखना चाहते हैं जबकि क्षेत्रीय क्षत्रपों की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। कांग्रेस ने भी आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है लेकिन अब यह काफी हद तक स्पष्ट हो चुका है कि यदि कांग्रेस को अच्छी सीटें मिल जाती हैं और वह सहयोगियों की सहायता से सरकार बनाने का दावा पेश करती है तो राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री होंगे। पिछले कुछ महीनों में राहुल की स्वीकार्यता बढ़ी है। 

इन चुनावों का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि समाज में विभाजन  बढ़ा है। इस चुनाव प्रचार के दौरान जितनी कड़वाहट देखी गई उतनी पहले कभी नहीं देखी गई। ‘पप्पू’ बनाम ‘फैंकू’ से लेकर चौकीदार चोर है बनाम वंश की राजनीति तक सार्वजनिक संवाद का स्तर उम्मीद से ज्यादा नीचे आ गया है। इस तरह के मुद्दों पर चुनाव प्रचार के केन्द्रित होने से लोगों से जुड़े असली मुद्दे पीछे रह गए हैं। चुनावों में वंशवाद, मोदी, बालाकोट स्ट्राइक्स, भूतकाल में  हुए गलत कार्य, धर्म तथा जाति की राजनीति मुख्य मुद्दे रहे जबकि इनके स्थान पर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना, रोजगार पैदा करना, निवेश लाना, कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए कदम उठाना, व्यापार को बढ़ावा देना तथा मूलभूत ढांचे का विकास मुख्य मुद्दे होने चाहिएं थे। 

चुनाव परिणाम इस बात का फैसला करेंगे कि क्या देश पर गठबंधन सरकार के तौर पर देश की विभिन्न जरूरतों और हितों का ध्यान रखते हुए शासन होगा अथवा हम अध्यक्षीय सरकार की तरह एकीकृत प्रणाली की ओर बढ़ेंगे। अब जब देश की जनता का जनादेश सामने आएगा और वह भूतकाल से सबक लेते हुए निर्वाचित नेताओं में अपना विश्वास व्यक्त करेगी तो ऐसे में सभी नागरिकों को यह प्रार्थना करनी चाहिए कि देश विकास की दिशा में आगे बढ़े।-विपिन पब्बी
 

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