हरियाणा में हुए हिंसक उत्पात का ‘असल दोषी’ कौन

Sunday, Feb 28, 2016 - 01:30 AM (IST)

(वीरेन्द्र कपूर): जिस प्रकार एक के बाद एक संकटों का सिलसिला देखने को मिल रहा है, उसके मद्देनजर आम लोग यह सोचते हैं कि क्या सरकार सचमुच कोई काम कर रही है अथवा क्या इसका अस्तित्व भी है? तो उन्हें माफ किया जा सकता है। कम से कम हरियाणा राज्य में तो गत सप्ताह सरकार नाम की चीज पूरी तरह गायब हो गई और यहां तक कि आवारागर्द शराबियों के समूहों ने बड़े स्तर पर प्रदेश में गुंडागर्दी की। प्रदेश में से गुजरने वाले बच्चों और गरीब महिलाओं के साथ उन्होंने कथित रूप में जो व्यवहार किया, वह इतना भयावह था कि उसे देखकर खून भी जम जाता है। 

 
जब जाट उत्पात पर उतर आए और हर ऐरे-गैरे पर निशाना साध लिया तो हमारे सांसदों की आत्मा में किसी प्रकार का दर्द महसूस नहीं हुआ। प्रसिद्ध कहानी के तीन बंदरों की नकल करते हुए हमारे नेताओं ने कुछ न सुनने, कुछ न देखने का बहाना किया जिसके फलस्वरूप उन्हें कोई कदम उठाने की भी जरूरत महसूस नहीं हुई। यह निश्चय ही व्यवस्था (या अधिक उपयुक्त शब्दों में कहें तो लोकतंत्र) में जनता के बचे-खुचे विश्वास के भी धराशायी होने का पक्का तरीका है। 
 
मुरथल कस्बे में राष्ट्रीय राजमार्गों पर वाहनों में फंसी हुई बदकिस्मत और लाचार औरतों के प्रति खास तौर पर जो नंगी अमानवीयता उपद्रवी भीड़ों ने दिखाई, हम उस पर और अधिक चर्चा करने का इरादा नहीं रखते। इतना कहना ही काफी है कि राहुल गांधी कांग्रेस और सत्तारूढ़ भाजपा का सनसनीखेज मौन खुद ही सारी कहानी बयान कर देता है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने भूख हड़ताल पर बैठने की नौटंकी की, जबकि उनके भरोसेमंद सहायक उत्पात की अग्रि में घी डाल रहे थे और अपने सहोदर जाट बंधुओं को ताने दे रहे थे कि वे अधिक से अधिक आगजनी क्यों नहीं कर रहे। 
 
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बारे में कुछ शब्द कहना उचित होगा। लोग उन्हें ‘हरियाणा का मनमोहन सिंह’ कहते हैं। वैसे व्यक्तिगत रूप में वह पूरी तरह बेदाग हैं। फिर भी मनमोहन सिंह के पी.एम.ओ. में 10 वर्षों ने दिखाया है कि राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासन की मुकम्मल गैर-हाजिरी की कमी केवल ‘ईमानदारी’ का राग अलाप कर पूरी नहीं की जा सकती।
 
केन्द्रीय नेतृत्व के आशीर्वाद से यदि पहली बार किसी पंजाबी को हरियाणा की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला है, तो यह उसके आंतरिक गुणों का ही प्रमाण है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सत्तासीन होने के दिन से लेकर खट्टर ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि वह बढिय़ा और सशक्त प्रशासक के रूप में विकसित हो सकते हैं। हरियाणा के लोगों को भाजपा से बहुत बड़ी उम्मीदें हैं। बंसी लाल की अनेक खामियों के बावजूद हरियाणवी लोग आज भी उनका स्मरण बहुत चाव से सबसे सशक्त मुख्यमंत्री के रूप में करते हैं। 
 
इसी बीच किसी को भी इस बात पर हैरान होने की जरूरत नहीं कि हरियाणा में जाटों के नाम पर जो गुंडागर्दी हुई है, उसके पीछे असली दोषी कांग्रेस है। यह सिद्ध करने के लिए साक्ष्यों की कोई कमी नहीं कि यह पार्टी गैर- कांग्रेस सरकारों को अस्थिर करने के लिए कुछ भी कर सकती है। इसी सिलसिले का ताजा उदाहरण पेश करते हुए इसने अब ऐसे लोगों को राजनीतिक और नैतिक समर्थन देना शुरू कर दिया है जो भारत के अनेक भागों में अलगाववाद की आग भड़का रहे हैं। 
 
कांग्रेस पार्टी केवल एक ही मर्यादा का अनुसरण करना जानती है : किसी भी कीमत पर सत्तासीन होने की मर्यादा। क्योंकि नेहरू-गांधी खानदान ही फैसला करता है कि कांग्रेस पार्टी ने क्या करना है, इसलिए कांग्रेस सदा ही इस खानदान को फिर से सत्ता में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाती है, चाहे उसे राष्ट्रीय हितों के साथ गद्दारी ही क्यों न करनी पड़े। 
 
पाखंडी और शोशेबाज हमारा सदा ही यह मत रहा है कि पी. चिदम्बरम वास्तव में बहुत बड़े पाखंडी और शोशेबाज हैं। 80 के दशक के मध्य में मीडिया के विरुद्ध बहुत ही दमनकारी कानून पेश करने वाले वह प्रथम व्यक्ति थे। चिदम्बरम ने उस समय प्रैस की स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रताओं के बारे में इतना धुआंधार भाषण दिया था कि आज के दौर में आप विश्वास नहीं करेंगे कि चिदम्बरम के मुंह से ऐसे शब्द निकल सकते हैं। अपने पास आए मामले को आगे बढ़ाने के लिए बेशक उनके पास वकीलों वाला कौशल हो, लेकिन उनका ट्रैक रिकार्ड सदा ही उनके विरुद्ध भुगतता रहा है। 
 
अब वह हमें विश्वास दिलाना चाहते हैं कि उन्होंने बहुत सच्चे मन से जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम वापस लेना चाहा था। बिना कोई बड़ी आपत्ति उठाए आप उनसे केवल इतना ही पूछिए कि आप 10 वर्ष की लंबी अवधि तक सरकार के  वरिष्ठ सदस्य थे, तो आपने ऐसा किया क्यों नहीं? आज इस बात का सपना क्यों आ रहा है? केवल इसलिए कि अपने बाद आई सरकार के रास्ते में कांटे बिखेरे जाएं। 
 
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