वर्तमान राजनीति में हार-जीत के समीकरण भी बदलने लगे

Thursday, Jun 30, 2022 - 05:01 AM (IST)

3 माह पूर्व हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में 92 सीटों सहित अपनी अप्रत्याशित जीत दर्ज कराने वाली आम आदमी पार्टी की कार्यशैली को लेकर आम जनता में अविश्वास के बादल मंडराने लगे हैं। शायद यही कारण रहा कि संगरूर लोकसभा उप-चुनाव में ‘आप’ पार्टी के गुरमेल सिंह को अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी, शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान से हुई कड़ी टक्कर में मात खानी पड़ी।5,822 वोट के अंतर से वे पराजित हो गए।

पंजाब विधानसभा चुनाव-2022 में बहुमत से जीत दर्ज करवाने वाले वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा के विधानसभा क्षेत्र दिड़बा तथा शिक्षामंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर के विधानसभा क्षेत्र बरनाला में भी ‘आप’ अपनी पैठ बना पाने में नाकाम रही। अन्य 5 विधानसभा क्षेत्रों में अग्रणी रहने के बावजूद आम आदमी पार्टी का गढ़ ध्वस्त हो गया। 

राजनीतिक गलियारों की चर्चानुसार सिमरनजीत सिंह मान की स्थापित छवि एक अलगाववादी की रही है, जोकि ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के दौरान नौकरी छोड़ कर राजनीतिक क्षेत्र में आ गए थे। पूर्व आई.पी.एस. रहे सिमरनजीत सिंह को राजनीति विरासत में मिली। उनके पिता लैफ्टिनैंट कर्नल जोगिंद्र सिंह मान 1967 में विधानसभा स्पीकर रहे। बतौर एस.एस.पी. कार्यरत रहने के पश्चात, सिमरनजीत सिंह ने विजीलैंस के डिप्टी डायरैक्टर के आधार पर भी अपनी सेवाएं दीं। अपने राजनीतिक करियर में वे तीसरी बार सांसद चुने गए। सिमरनजीत सिंह मान 1989 में तरनतारन तथा 1999 में संगरूर क्षेत्र से मनोनीत लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। पुन: यह जीत उन्हें 23 वर्ष के लंबे अंतराल के पश्चात हासिल हुई। 

जितनी असंभावित आम आदमी पार्टी की विधानसभा विजय रही, उतनी ही आश्चर्यजनक हालिया लोकसभा उपचुनावी पराजय भी, वह भी ऐसे क्षेत्र से, जिसे आम आदमी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा। मुख्यमंत्री भगवंत मान स्वयं निरंतर दो बार इस सीट से जीत चुके हैं। प्रांत राजनीति में कदाचित् पहली बार ऐसा देखने में आया, जब लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी को शिकस्त खानी पड़ी। इससे पूर्व 2017 में अमृतसर तथा गुरदासपुर लोकसभा क्षेत्र में उपचुनाव हुए थे, तब दोनों ही क्षेत्रों में तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस को विजय श्री प्राप्त हुई थी। बहुमत से जीतकर पंजाब में पदार्पण करने वाली आप सरकार का लोकसभा प्रतिनिधित्व अब शून्य पर आ चुका है, चूंकि प्रदेश सरकार के पास लोकसभा में उपलब्ध यही एकमात्र सीट थी। 

इस पराजय का हिमाचल, हरियाणा, गुजरात में आसन्न विधानसभा चुनावों के मद्देनजर चल रहे आम आदमी पार्टी चुनाव प्रचार अभियान पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। विशेषत: हिमाचल में, जहां विजय दोहराव हेतु खासी मशक्कत चल रही है। मौजूदा परिस्थिति में, प्रांतीय छवि सुधारने की पहल के साथ, हिमाचल में भी प्रयासों को नई दिशा देनी आवश्यक हो गई है। वास्तव में यह हार आम आदमी पार्टी सहित सभी दलों के लिए एक बहुत बड़ा सबक है कि ‘काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती’। 

परिस्थितिवश अथवा लुभावनी घोषणाओं के बल पर यदि जीत का लड्डू चखने को मिल भी जाए तो उसकी मधुरिमा को संतुलित एवं संचालित बनाए रखने के लिए क्रियाशीलता नितांत आवश्यक है। हाल ही में संगरूर लोकसभा उपचुनाव परिणाम इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि आम आदमी पार्टी द्वारा, मतदान पूर्व की गई हवाई घोषणाओं का जमीनी स्तर पर मिलान काफी हद तक संभव नहीं हो पाया। प्रदर्शन में काफी पीछे छूट चुके कांग्रेस व भाजपा पर भी यह सीख समान रूप से लागू होती है। पंथक विचारधारा पर लौटी शिअद द्वारा मतदाता-विश्वास जीतने में नाकामयाब साबित होना तथा पहली बार पार्टी का किसी चुनाव में पांचवें स्थान पर आना, नि:संदेह बहुत कुछ कहता है। 

निश्चय ही, भगवंत सरकार को यह सोचना होगा कि एक सकारात्मक शुरूआत के पश्चात भी वह अपनी घोषणाओं को अपेक्षित आकार क्यों नहीं दे पा रही है? कहीं नीति निर्माण एवं संयोजन में प्रज्ञता एवं दूरदर्शिता का अभाव ही गतिरोध का मूल कारण तो नहीं? मतदान में जनता की उदासीनता स्पष्ट झलकती है। प्रतीत होता है, वर्षों से विकास की बाट जोहता मतदाता अब इस वायदा खिलाफी के विरुद्ध प्रतिक्रियात्मक संज्ञान लेने पर उतारू है। संभवत: यही कारण रहा कि वर्तमान उपचुनाव में 31 वर्ष पश्चात संगरूर सीट पर इस बार सबसे कम मतदान हुआ। 

कांग्रेस नेता व गायक सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड भी इस पराजय का बड़ा कारण कहा जा सकता है। कानून-व्यवस्था के प्रश्न पर सरकार को भारी रोष व आलोचना का सामना करना पड़ा। 300 यूनिट मुफ्त बिजली, सस्ती रेत व महिलाओं को प्रतिमाह 1000 रुपए उपलब्ध करवाने जैसे आश्वासन राहत की अपेक्षा कटाक्ष रूप मेंं अधिक चॢचत रहे। वायदों में नई शर्तों व तारीखों के जुड़ाव ने भी सरकार की साख गिराई। संगरूर लोकसभा सीट के अंतर्गत 3 प्रमुख विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिनमें धूरी, दिड़बा तथा बरनाला सम्मिलित हैं। सूत्रों के अनुसार, समयानुकूल आवश्यक एवं पर्याप्त प्रचार न हो पाना भी हार का सबब बना। 

अनेकानेक कारणों सहित, अनियोजित योजनाओं का अधर में लटकना पंजाब विकास मॉडल के प्रति संदेह उत्पन्न करने का कारक बनने लगा है। आम आदमी पार्टी के लिए गहन आत्ममंथन का विषय है कि आखिर क्या कारण रहे, 3 माह पूर्व बहुमत से सत्ता में आने वाली पार्टी का प्रत्याशी, एक ऐसी पार्टी के उम्मीदवार से पराजित हो गया, जिसका विधानसभा चुनावों में कोई वोट प्रतिशत ही न रहा हो? विषय गंभीर है एवं विचार, उपचार तथा सुधार अनिवार्य। विद्रोह की एक नन्हीं-सी ङ्क्षचगारी को भी यदि समय रहते गंभीरता से न लिया जाए तो कालान्तर में परिणाम घातक हो सकते हैं। 

आज का मतदाता कहीं अधिक सजग एवं जागरूक है, अपने अधिकारों और महत्व से सुपरिचित भी। इसी आधार पर वर्तमान राजनीति में जय-पराजय के समीकरण भी बदलने लगे हैं। भगवंत सरकार को शीघ्रातिशीघ्र समझना होगा कि मात्र घोषणाओं व आश्वासनों के दम पर जननायक बने रहने की संभावना दिवास्वप्न से अधिक कुछ नहीं। क्षेत्र भले ही छोटा हो, एक लंबी पारी के खिलाड़ी के लिए आवश्यक है कि वह अपनी हर पराजय को सूक्ष्मता से जांचते हुए स्वयं को संवारे, निखारे और सुधारे। इसके साथ ही केंद्र सरकार से यथासंभव सहयोग एवं जनता से भगवंत सरकार को समय देना भी अपेक्षित है क्योंकि इतिहास रातों-रात नहीं बदला करते।-दीपिका अरोड़ा 
 

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