रोजगार की कुंजी है शिक्षा में सुधार
punjabkesari.in Tuesday, Dec 21, 2021 - 05:04 AM (IST)

केंद्र सरकार का कहना है कि 2018 में प्रोविडैंट फंड की सदस्यता लेने वाले श्रमिकों में 70 लाख की वृद्धि हुई, लेकिन प्रोविडैंट फंड की सदस्यता में वृद्धि और रोजगार में वृद्धि दो अलग-अलग बातें हैं। 2018 का समय नोटबंदी और जी.एस.टी. का था। इन नीतियों के कारण छोटे उद्योग कम हुए थे और बड़े उद्योग बढ़े थे। छोटे उद्योग ही ज्यादा रोजगार बनाते थे, इसलिए यदि छोटे उद्योगों में 100 कर्मी बेरोजगार हुए तो हम मान सकते हैं कि बड़े उद्योगों में 50 रोजगार बने होंगे। कुल रोजगार में 50 की गिरावट आई।
इसीलिए केंद्र सरकार द्वारा किए गए सामयिक श्रम सर्वे में कहा गया कि 2012 एवं 2018 के बीच अपने देश में शहरी बेरोजगारी में 3 गुणा वृद्धि हुई है और गम्भीर विषय यह है कि यदि मान भी लें कि 2018 में 70 लाख नए रोजगार बने तो भी बेरोजगारी की समस्या का निदान नहीं होता क्योंकि अपने देश में हर वर्ष 120 लाख नए युवा श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। इनमें से यदि 70 लाख को रोजगार मिल भी गए तो भी 50 लाख युवा बेरोजगार ही रह जाएंगे। सर्वे के अनुसार 2018 में अपने देश में 15 से 24 वर्ष के लोगों में से 28.5 प्रतिशत बेरोजगार थे जो कि विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अधिकतम था।
इसी सर्वे के अनुसार 2012 से 2018 के बीच वेतन में भी गिरावट आई। जैसे मान लीजिए आपका 2012 में वेतन 100 रुपए प्रति दिन था, वृद्धि हुई और 2018 में आपका वेतन 110 रुपए प्रति दिन हो गया। वेतन में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई। लेकिन मान लीजिए इसी अवधि में जो टॉफी 2012 में 1 रुपए में मिलती थी, वह 2018 में 1.50 रुपए में मिलने लगी। ऐसा हुआ तो आपके वास्तविक वेतन में कटौती हुई। 2012 में आप एक दिन के वेतन में 100 टॉफियां खरीद सकते थे, 2018 में आपको केवल 55 टॉफियां मिलेंगी। इसलिए केंद्र सरकार के सर्वे में कहा गया कि 2012 से 2018 के बीच वास्तविक वेतन में 1.7 प्रतिशत की गिरावट आई है। अत: बेरोजगारी की समस्या को झुठलाने से काम नहीं चलेगा। इसके मूल कारणों का निवारण करना होगा।
बेरोजगारी की समस्या का प्रमुख कारण तकनीकी बदलाव है। जैसे पूर्व में बैंक में खाते क्लर्कों द्वारा लिखे जाते थे, अब यह कार्य कम्प्यूटर से होने लगा है। बैंक की कई शाखाओं में केवल 2 या 3 कर्मी काम करते हैं। कम्प्यूटर ने श्रमिकों की जरूरत को कम कर दिया है, लेकिन साथ ही बैंकों का प्रसार और शाखाओं की संख्या बढ़ी है। इनमें नए रोजगार उत्पन्न हुए हैं। इतिहास पर गौर करें तो किसी समय यातायात का प्रमुख साधन घोड़ा-गाड़ी हुआ करती थी। इसके बाद कार का आविष्कार हुआ जिसके कारण घोड़ा-गाड़ी चलाने वाले बेरोजगार हो गए। लेकिन कार के चलन का विस्तार हुआ, इनके उत्पादन और मुरम्मत में नए रोजगार बने। इनके लिए सड़क और फ्लाईओवर बनाने में भी रोजगार बने।
वर्तमान समय में आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस का खतरा हमारे सामने है। तमाम कार्य-जैसे हड्डी में फ्रैक्चर को पहचानना अथवा खून के रोग की जांच करना अब कम्प्यूटर द्वारा किए जाने लगे हैं। ऐसा होने से रेडियोलॉजिस्ट और पैथोलॉजिस्ट के रोजगार पर संकट आने को है, लेकिन कार की तरह आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस से तमाम नए उत्पाद बन सकते हैं, जैसे आपके मनपसन्द प्लॉट का सिनेमा बनाना अथवा वीडियो मिक्सिंग इत्यादि। अत: हमें अपने युवाओं को रोजगार की इन नई संभावनाओं को पकडऩे के लिए प्रशिक्षित करना होगा।
यहां प्रमुख समस्या हमारी शिक्षा व्यवस्था की है। वर्तमान में युवाओं का रुझान सरकारी नौकरियों की तरफ बना हुआ है, बावजूद इसके कि इनकी संख्या में कमी आई है। लेकिन सामान्य शिक्षा वाले प्राइमरी सरकारी स्कूल के टीचर को आज 50 से 70 हजार रुपए, जबकि एक ट्रेंड नर्स अथवा डाटा एंट्री ऑप्रेटर को बमुश्किल 15,000 रुपए प्रति माह मिलते हैं। इसलिए युवाओं को नर्स अथवा डाटा एंट्री ऑप्रेटर की क्षमता हासिल करने में रुचि नहीं है। उनका पूरा ध्यान मात्र सरकारी नौकरी हासिल करने की तरफ रहता है।
सरकार को चाहिए कि सरकारी कर्मियों और साधारण नागरिकों, जैसे नर्स के वेतन के बीच संतुलन स्थापित करे, ताकि सरकारी नौकरी का मोह कम हो और हमारे युवा व्यावहारिक पढ़ाई पर ध्यान दें। इस दिशा में सरकार को प्राइमरी स्तर पर ही अंग्रेजी भाषा और कम्प्यूटर शिक्षा को अनिवार्य कर देना चाहिए, ताकि युवा आने वाले समय में कम्प्यूटर आधारित रोजगार, जैसे पुस्तकों का अनुवाद करने अथवा वीडियो मिक्सिंग जैसे कार्य स्वयं कर अपनी जीविका अर्जित कर सकें।
हमें इस चिंता में नहीं रहना चाहिए कि अंग्रेजी अपनाने से हमारी संस्कृति की हानि होगी। हमें ध्यान देना चाहिए कि किसी समय हमारी संस्कृति सिन्धु घाटी की भाषा में समझी जाती थी। इसके बाद वही प्राकृत भाषा में परिवर्तित हुई और फिर देवनागरी में, लेकिन संस्कृति की निरन्तरता कायम रही। इसलिए हमें प्रयास करना चाहिए कि अंग्रेजी भाषा में उत्पन्न होने वाले रोजगार भी हासिल करें और साथ ही अपनी संस्कृति का वैश्वीकरण भी कर सकें। यदि हम अपने वेद, पुराण तथा विद्वानों के ग्रंथों को सुलभ अंग्रेजी में उपलब्ध करा दें तो हमारी संस्कृति का भी वैश्वीकरण होगा और युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। हमें भविष्य की ओर देखना चाहिए। इतिहास की उपयोगिता भविष्य को संवारने के लिए होती है।-भरत झुनझुनवाला