कर्नाटक और जालंधर चुनावों के महत्वपूर्ण संकेत

punjabkesari.in Wednesday, May 17, 2023 - 05:23 AM (IST)

पहली बात तो यह कि कर्नाटक चुनाव से राहुल गांधी की छवि में सुधार आया है। संभव है यह सुधार सिर्फ जीत से लगता हो, परन्तु सुधार जरूर आया है। कर्नाटक चुनाव से पहले राहुल गांधी को नेहरू-गांधी परिवार का ‘कोरा वारिस’ कहा जाने लगा था, जिसकी कांग्रेस संगठन में देन ‘शून्य’ है। उसकी निजी प्राप्ति ‘पप्पू’, ‘शहजादा’ या ‘राहुल बाबा’ ही थी। पता नहीं कब क्या कह दें कि जनता की हंसी का पात्र बन जाएं। परन्तु कर्नाटक चुनाव की विजय से न केवल कांग्रेस, बल्कि साधारण जनता भी उनकी भूमिका को गम्भीरता से लेने लगी है। हिमाचल और कर्नाटक विजय ने राहुल की कैम्प में दो पंख और जड़ दिए हैं। अब राहुल गांधी मैच्योर नजर आने लगे हैं। कांग्रेस उन्हें अपना नेता मानने लगी है। 

दूसरा बड़ा संकेत यह है कि नरेंद्र मोदी अपराजेय नहीं। यदि विपक्ष दिल से एक होकर कोई चुनाव लड़े तो मोदी को हराया जा सकता है। देश के चुनावी माहौल में चुनाव जीतने की जिस आंधी को नरेंद्र मोदी ने चलाया, वह रुक नहीं रही। 2014 से 2023 के बीच चुनाव चाहे लोकसभा के या विधानसभा के, सभी में मोदी प्रतिद्वंद्वियों को चित्त करते गए हैं। केवल पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी या आज कर्नाटक में राहुल गांधी उसे रोक सके। 

तीसरा संकेत, जिसे जालंधर (पंजाब) के उपचुनाव से जोड़ा जा सकता है, वह यह कि पंजाब में आज भी यदि भाजपा और शिरोमणि अकाली दल मिलकर लड़ें तो विरोधियों को हराया जा सकता है। तनिक कुल पड़े मतों का लेखा-जोखा देखें। विजयी रिंकू को वोट पड़े 3,02,279 जबकि अकाली दल को 1,58,445 और भारतीय जनता पार्टी को मत पड़े 1,34,800, यानी विजयी उम्मीदवार से 9034 कम। यदि यह दोनों दल मिल कर जालंधर का उपचुनाव लड़ते तो एक संगठित शक्ति बन कर सब को चुनाव में रौंदा जा सकता था। 2024 का लोकसभा चुनाव यदि दोनों दल मिल कर लड़ें तो पंजाब की 13 की 13 लोकसभा सीटें जीती जा सकती हैं। इस उपचुनाव ने सिद्ध कर दिया कि शहरों में भारतीय जनता पार्टी और देहात में शिरोमणि अकाली दल का वर्चस्व है। ये दोनों दलों को विचारना है। 

चौथा संकेत यह है कि कांग्रेस यदि संगठित होकर किसी चुनाव को लड़े तो हवा का रुख बदल सकती है। असल में कांग्रेस ऊपर से नीचे तक धड़ों में बंटी हुई है। चुनावों में ये धड़े वैसे ही खड़े रहते हैं। कार्यकत्र्ता धड़े के लीडर का कहा मानता है, संगठन का नहीं। अत: कांग्रेस चुनाव हार जाती है। इसके उलट भारतीय जनता पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़ती है। ऊपर से जो हुक्म आए, उसका इन-बिन पालन करती है। 

कर्नाटक में डी.के. शिवकुमार और सिद्धारमैया दो धड़े प्रत्यक्ष कार्यरत थे। इस चुनाव में दोनों धड़े मिलकर चुनाव लड़े। परिणाम कर्नाटक में आशानुकूल हुआ। दूसरी ओर सम्भव है एकता न हो। पांचवां संकेत, ‘बूथ मैनेजमैंट’ का मिथक टूटता दिखा। जालंधर लोकसभा के उपचुनाव में ‘बूथ मैनेजमैंट’ का ताना-बाना, जिसे भारतीय जनता पार्टी ‘रामबाण’ कहती है, टूटता नजर आया। ‘आप’ जिसे जालंधर लोकसभा चुनाव में 58,000 से अधिक की लीड मिली, उसके अनेक स्थानों पर बूथ ही नहीं लगे। वहां भी ‘आप’ जीतती नजर आई। इसका मतलब यह हुआ कि मतदाता बूथ-बाथ, पोलिंग एजैंट की परवाह नहीं करता। मतदाता पोङ्क्षलग स्टेशन पर जाएगा, अपना निशान ढूंढ कर बटन दबा देगा। बाहर आकर लाख पूूछते रहो कि किसको वोट डाला, कदापि नहीं बताएगा। 

यही हाल पिछले साल विधानसभा के चुनावों में बूथ को देखे बिना मतदाताओं ने आप पार्टी को 117 में से 92 पर विजय दिला दी। वोट डालने की दो दिन आंधी चलती है। सबसे बड़ा संकेत कर्नाटक विधानसभा में यह मिला कि जलसे-जलूसों, रोड शोज में असंख्य भीड़ उमड़ी। लगता था, भारतीय जनता पार्टी की आंधी आई हुई है। सबकी जमानतें इस भीड़ में जब्त हो जाएंगी। परन्तु जब चुनावी मशीनें खुलीं तो सब के होश उड़ गए। यह लोकतंत्र है, इसमें कोई भी कभी यह नहीं कह सकता कि अमुक पार्टी ही जीतेगी। 

कर्नाटक विधानसभा के चुनावों में एग्जिट पोलों की भविष्यवाणियां गलत सिद्ध हुईं। कई चुनाव विशेषज्ञ भाजपा की जीत का दावा ठोक रहे थे, परन्तु उनके सारे गणित गलत साबित हुए। विजय न कांग्रेस की, न भाजपा की हार, कर्नाटक में जीत जनता की हुई। लोकतंत्र में विजयी पार्टी यह भ्रम न पाले कि जीत हमेशा उसकी होगी। कल जनता का फैसला उसके विरोध में भी जा सकता है। जनता किसी भी पार्टी के साथ बंधी हुई नहीं। लोकतंत्र का यही शृंगार है, आज जो सत्ता सुख भोग रहे हैं, वे कल सत्ताविहीन हो जाएंगे। जनता-जनार्दन जीतती रहेगी। जालंधर में लोकसभा उपचुनाव और कर्नाटक का चुनाव लोकतंत्र में जनता की जीत का प्रतीक है। 

महत्व इस बात में रहेगा कि विजयी उम्मीदवार जीत का अभिमान न करे। हारने वाले उम्मीदवार दिल छोटा न करें। लोकतंत्र में हार-जीत चलती रहती है। हार-जीत को छोड़ सभी जनसेवक बनें। लोकतंत्र में विजयी यह न समझे कि वह राजा है और जनता उसकी सेवादार। तब तो लोकतंत्र हार जाएगा। हमें तो जीत कर संविधान की रक्षा करनी है।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब) 


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