मिलीभगत से होते हैं अवैध निर्माण

punjabkesari.in Saturday, May 07, 2022 - 05:15 AM (IST)

इन दिनों अवैध निर्माणों पर बुल्डोजर चलाए जाने की चर्चा जोरों पर है। कहा जा रहा है कि जिसने भी सरकारी भूमि पर कब्जा किया है, नक्शे से अलग कुछ बनाया है, उसे तोड़ दिया जाएगा। जब भी इस बारे में पढ़ती -सोचती हूं, तो तमाम तरह के दृश्य आंखों में घूम जाते हैं। वर्षों से देखती हूं कि कभी-कभी अवैध निर्माण गिराने वाले आते हैं। वे जिन हिस्सों को तोड़कर जाते हैं, उसके कुछ दिन बाद ही जैसा निर्माण पहले था, उससे भी कहीं आलीशान निर्माण कर लिया जाता है। 

एक दिन एक टी. वी. रिपोर्टर ने सड़क किनारे बनी एक जूस की दुकान वाले से पूछा कि अगर आपकी यह दुकान तोड़ दी गई, तो फिर आप क्या करेंगे। जूस वाले का जवाब दिलचस्प था। उसने कहा कि हम तो 15 साल से दुकान लगा रहे हैं। बहुत बार तोड़ जाते हैं, फिर बना लेते हैं। इस आदमी के बयान में सरकारी तोड़-फोड़ और उससे न डरने की कहानी भी छिपी हुई थी। क्योंकि तोडऩे वाले तो कभी-कभार ही आते हैं। 

जब वे चले जाएंगे, तो फिर जल्दी नहीं लौटने वाले। इसलिए फिर से पहले से भी अच्छा, वही बनाएंगे जिसे तोड़ा गया। आखिर जिस जमीन को खाली कराया जाता है, जिसमें तमाम तरह की सरकारी मशीनरी सक्रिय होती है, उस जमीन को फिर से वैसे ही क्यों छोड़ दिया जाता है। उसका संरक्षण क्यों नहीं किया जाता।

दिल्ली में तो लगभग हर कालोनी में ऐसा दिखाई देता है। कहीं-कहीं तो ऊपर की मंजिलों के छज्जों ने पूरी गलियों को ढंक लिया है। एक बार एक कालोनी में आग लग गई थी, तो इन छज्जों के कारण फायर ब्रिगेड की गाडिय़ां वहां नहीं पहुंच सकी थीं, जहां आग लगी थी। भारी जान-माल का नुक्सान भी हुआ था। आखिर बनाने वाले और इन्हें बनवाने वाले इन आपदाओं के बारे में कभी क्यों नहीं सोचते हैं। माना यह जाता है कि जब कुछ होगा, तब देखा जाएगा। 

आज हाल यह है कि सड़कों पर फुटपाथ तो छोडि़ए मामूली-सी वह जगह नहीं बची, जहां आप पैदल चल सकें। दुकानों की हालत यह है कि पहले दुकान, फिर आगे तक सामान से भरे चबूतरे, उससे आगे सामानों से भरी चारपाइयां या तख्त, और उससे आगे फल-सब्जियों या अन्य सामान के ठेले। कहीं भी ऐसी कोई जगह खाली नहीं, जहां पैदल चला जा सके। सड़क पर चलते हुए तेज ट्रैफिक से जान बचाना हर बार मुश्किल लगता है। लेकिन पैदल चलने वाले का जैसे न तो सड़क पर कोई अधिकार है और न ही किसी को उसकी चिंता भी है। 

जो अवैध निर्माणों को तोड़ता है, अगले चुनाव में उस नेता को कभी वोट नहीं मिलते। जो इनके पक्ष में खड़ा होता है, लोग उसे ही अपना सच्चा हितैषी मानते हैं। मजेदार है न कि जिस कानून को नेता लोग खुद बनाते हैं, संविधान की कसमें खाते हैं, उनमें से अधिकांश, इन्हें तोडऩे वालों के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं। कानून तोडऩा जैसे हमारी दिनचर्या का हिस्सा है। उसे भारी समर्थन नेताओं, पुलिस और प्रशासन की तरफ से मिलता है। वरना ऐसा कैसे हो जाता है कि कोई सरकारी जमीन को बेच दे, उसकी रजिस्ट्री करा दे, और किसी को कानों-कान खबर न हो। 

चुनावी सभाओं में नेता कई बार अपनी पीठ थपथपाते हुए देखे जाते हैं कि  उनके रहते कोई भी किसी अवैध निर्माण को नहीं तोड़ सकता, न किसी ठेले वाले को हटा सकता है। सोचें कि जब बड़े-बड़े नेता ऐसा कह रहे हों, तो लोगों की हिम्मत क्यों न बढ़े। पुलिस भी खुश कि जो भी अपने घर में एक कमरा बनाएगा,छज्जे निकालेगा, दुकान को आगे बढ़ाएगा, उससे भरपूर पैसे वसूलने का अवसर भी होगा। इसके अलावा जो सरकारी जमीन को अपनी बताकर बेच रहे हैं, उनके हौसले भी क्यों न बढ़ें। जब नेताओं से लेकर, अधिकारियों तक का खुला या मौन समर्थन प्राप्त हो। 

लेकिन अगर ध्यान से देखें, तो जब भी अवैध कालोनियों में मकान तोड़े जाते हैं , उन्हीं लोगों का नुक्सान होता है, जिन्होंने इन्हें खरीदा, बनाया। उन्हीं का माल-असबाब लुटता है। उन्हें कोई सजा नहीं मिलती जिन्होंने ऐसी जमीनों को बेचा, न ही वे बिल्डर या डीलर सजा पाते हैं, जो अवैध नक्शों के मकान बनाते हैं। कई बार गरीब लोग अपनी पाई-पाई ऐसे मकान-दुकानों को खरीदने में खर्च कर देते हैं, और उनका सब कुछ बर्बाद हो जाता है। उन्हें शायद ही कभी कोई मुआवजा मिलता है। बहुत से लोगों को तो यह पता ही नहीं होता कि जिस जमीन को उन्होंने जिससे खरीदा है, वह उसकी है भी या नहीं। 

आखिर ऐसा होने क्यों दिया जाता है। जिन अधिकारियों ने समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की उनके खिलाफ क्या एक्शन होता है, किसी को पता नहीं। उन लोगों से पैसे क्यों नहीं वसूले जाते, जिन्होंने ऐसी धोखाधड़ी की। क्योंकि मान लीजिए किसी डीलर, बिल्डर, सरकारी अधिकारी को आप जेल भेज भी दें, तो जिसका आर्थिक नुक्सान हुआ , उसे क्या मिलेगा। उसके नुक्सान की तो कभी कोई भरपाई नहीं होती।-क्षमा शर्मा   


 


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