चुनौतियों की अनदेखी ने पंजाब को सामाजिक-आर्थिक संकट में धकेला

punjabkesari.in Wednesday, Sep 27, 2023 - 05:01 AM (IST)

यह चिंताजनक है कि पंजाब को केंद्र के टैक्स खजाने में दिए प्रत्येक एक रुपए के बदले केवल 45 पैसे मिलते हैं। चुनौतियों से घिरे सीमांत राज्य पंजाब की चिंता ऐसे में वाजिब है, जब यू.पी. जैसे तेजी से आगे बढ़ते राज्य को एक रुपए के बदले 1.80 रुपए मिलते हों। सैंट्रल टैक्स पूल में भी पंजाब की चुनौतियों की अनदेखी राज्य में गहराते सामाजिक-आर्थिक संकट के बड़े कारणों में से एक है। 

‘लैंड लॉक्ड’ बॉर्डर स्टेट होने के नाते पंजाब को आर्थिक संकट से उबारना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि वाघा-अटारी सड़क मार्ग के जरिए भारत-पाकिस्तान के बीच दोतरफा व्यापार बंद होने का असर भी केवल पंजाब की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। इस मार्ग से भारत का कारोबार सीधे यूरोप से जुड़ता तो पंजाब की अर्थव्यवस्था भी समुद्री पोर्ट के नजदीकी पश्चिमी-दक्षिणी राज्यों की तरह मजबूत होती।

समुद्री पोर्ट से दूर होना पंजाब के औद्योगिक विकास की कड़ी चुनौतियों में से एक है। संवेदनशील पाकिस्तान सीमा से सटे होने का खामियाजा भी पंजाब भुगत रहा है। सीमा पार से अवैध हथियारों की सप्लाई व ड्रग्स का आतंक पंजाब के सामाजिक ताने-बाने और कानून व्यवस्था के लिए खतरा है। इन तमाम भौगोलिक चुनौतियों से आहत पंजाब को आज तक केंद्र की किसी सरकार ने राहत पैकेज लायक नहीं समझा। जबकि 1990 के दशक में केंद्र सरकार ने भौगोलिक चुनौतियों के आधार पर ही पहाड़ी राज्यों में औद्योगिक निवेश को टैक्स माफी का बड़ा पैकेज दिया था। तब भी पंजाब की अनदेखी हुई। 

परिणामस्वरूप, पंजाब से सैंकड़ों उद्योगों ने पड़ोसी राज्य हिमाचल का रुख किया। पंजाब के हालात जस के तस हैं। न तो केंद्र के टैक्स पूल से उचित हिस्सा मिल रहा है और न ही लंबे समय से रूरल डिवैल्पमैंट फंड व मंडी फीस के 5500 करोड़ रुपए मिले। पहले से ही आर्थिक संकटग्रस्त पंजाब ऐसे में विकास व कल्याणकारी योजनाओं को कैसे आगे बढ़ाए? जब किसी राज्य की अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ती है, तब उसके लोगों के साथ राज्य की तरक्की को भी नुक्सान होता है। भारत-कनाडा के संबंधों में गहराए ताजा तनाव से ही सबक लें। पंजाब के सामाजिक-आर्थिक संकट के कारण ही यहां के बहुत से लोग सुनहरी भविष्य की तलाश में कनाडा जाने को मजबूर हुए, पर दुर्भाग्य से इस प्रवास ने कनाडा की धरती पर भारत के खिलाफ  खालिस्तानी गतिविधियों की जमीन तैयार की। 

80 के दशक में बड़े पैमाने पर पंजाबी युवाओं का कनाडा में पलायन हुआ। प्रतिभा व प्रतिबद्धता के दम पर कई पंजाबी कनाडाई सरकार में सांसद, मंत्री बने। तीन-चार पीढिय़ों से वहां रह रहे जिन पंजाबियों ने अपने खून-पसीने से कनाडा को भी खुशहाल किया, आज वही कनाडा खालिस्तान समर्थक चरमपंथियों को मोहरा बना पंजाब में अशांति फैलाने की फिराक में है। संकटग्रस्त खेती व असंतुलित औद्योगिक आधार के कारण बेरोजगारी की विकट समस्या का सामना कर रहे पंजाब का सामाजिक-आर्थिक विकास लंबे समय से घुटनों पर है। वित्त वर्ष 2022-23 में पंजाब की जी.डी.पी. विकास दर 6 प्रतिशत रही, जबकि राष्ट्रीय विकास दर 7.24 प्रतिशत थी। 1947 में भारत के विभाजन, 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1966 में हरियाणा के गठन और 1980 से 1990 के दशक में 13 साल आतंक का संताप झेलने वाले पंजाबी इन तमाम चुनौतियों से पार पा गए, तभी 1981 में पंजाब की जी.डी.पी. देश में पहले पायदान पर थी और 2001 में चौथे पर। चिंता की बात है कि पंजाब की आर्थिक विकास दर आज देश में 19वें स्थान पर है। 

यू.पी. व बिहार जैसे राज्य (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश), जिन्हें कभी ‘बीमारू’ कहा जाता था, आज देश के तेजी से आगे बढ़ते राज्यों में शुमार हैं। इसका बड़ा कारण इन राज्यों में कानून-व्यवस्था में हुए सुधार से सामाजिक-आर्थिक ढांचा भी तेजी से सुधरना है। वित्त वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड 20.48 लाख करोड़ रुपए की जी.डी.पी. के साथ यू.पी. ने 20.48 प्रतिशत बढ़ौतरी से प्रभावशाली विकास दर्ज किया, वहीं 10.98 प्रतिशत विकास दर के साथ बिहार की 7,45,310 करोड़ रुपए की जी.डी.पी. ने पंजाब को भी बहुत पीछे छोड़ दिया है। आज पंजाब में बेलगाम बेरोजगारी की समस्या लोगों में मानसिक निराशा, अपराध व ड्रग्स संकट को बढ़ा रही है। कानून व्यवस्था के चिंताजनक हालात और ‘चिट्टे’ की चपेट में हजारों परिवारों की तबाही के लिए सीधे तौर पर बेरोजगारी जिम्मेदार है। 

बड़ी जनसंख्या व बड़े क्षेत्रफल के आधार पर यू.पी. व बिहार केंद्रीय टैक्स पूल से अतिरिक्त लाभ हासिल कर रहे हैं। 2022-23 में सैंट्रल टैक्स पूल से राज्यों को दिए 8,16,649 करोड़ रुपए में से उत्तर प्रदेश को देश में सबसे अधिक 18 प्रतिशत यानी 1,46,525 करोड़ रुपए मिले व बिहार को 10 प्रतिशत, जबकि इस पूल में बिहार का योगदान एक प्रतिशत से भी कम व यू.पी. का 4 प्रतिशत रहा। पंजाब को सिर्फ 14,756 करोड़ रुपए (1.8 प्रतिशत) मिले, जबकि पंजाब ने सी.जी.एस.टी., इंकम टैक्स, कार्पोरेट टैक्स, वैल्थ टैक्स,एक्साइज ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी व सर्विस टैक्स के 32,800 करोड़ रुपए (3 प्रतिशत) सैंट्रल टैक्स पूल के लिए उगाहे। 

इस भेदभावपूर्ण नीति  के चलते पंजाब समेत उन तमाम राज्यों की बेबसी यही है कि केंद्र के खजाने में अधिक योगदान के बावजूद उन्हें उनका सही हिस्सा नहीं मिल रहा। सात पश्चिमी-दक्षिणी राज्य केंद्रीय खजाने में 67 प्रतिशत योगदान देते हैं, जबकि बदले में उनमें से प्रत्येक को केवल 3 से 4 प्रतिशत वापस मिलता है। गौरतलब है कि देश की 53 प्रतिशत फैक्ट्रियां पश्चिमी-दक्षिणी राज्यों में हैं, समुद्री पोर्ट के करीब होने से इन राज्यों का आर्थिक विकास इसलिए दूसरे राज्यों की तुलना में कहीं आगे है, तभी केंद्रीय खजाने में भी इनका योगदान बाकी राज्यों से अधिक है। इन राज्यों की तुलना में पंजाब की अपार संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। तमाम चुनौतियों से घिरा होने के बावजूद सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था मजबूत करने को पंजाब को मौका और मुकाबले का माहौल चाहिए। 

आगे की राह : देश की खाद्य सुरक्षा व सीमाओं की रक्षा में भारत मां के शूरवीर पंजाबी सपूतों के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। इसलिए आज उनके पंजाब को निराशा व हताशा के माहौल से बाहर निकाल इसका गौरवशाली इतिहास हकीकत में दोहराने की जरूरत है। राजनीति से ऊपर उठकर एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए केंद्र्र व राज्य सरकार ईमानदारी, जिम्मेदारी व जवाबदेही से पंजाब की सामाजिक-आॢथक खुशहाली की बहाली के लिए मिलकर कदम उठाएं।(लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एंव प्लाङ्क्षनग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं)-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)
 


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