नस्लीय भेदभाव से सुरक्षा चाहते हो तो अधिक बच्चे पैदा करें

Monday, Mar 27, 2017 - 11:16 PM (IST)

यूरोप में फैले हुए तुर्क आप्रवासियों  को व्यापक रूप में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। इस मुद्दे पर यूरोपीय देशों और तुर्की के बीच जबरदस्त टकराव चल रहा है। तुर्क राष्ट्रपति एर्दोगण ने इस स्थिति को तब और भी बदतर बना दिया जब उन्होंने तुर्क लोगों से अनुरोध किया कि वे नस्लीय भेदभाव से सुरक्षा चाहते हैं तो अधिक संख्या में बच्चे पैदा करें। 

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि तुर्क आप्रवासी बढिय़ा बस्तियों में निवास करें। बेहतरीन कारें प्रयुक्त करें। शानदार मकानों में रहें और केवल 3 ही नहीं बल्कि 5-5 बच्चे पैदा करें। उन्होंने ये शब्द तुर्की के केन्द्र में स्थित एस्की शहर में एक रैली को सम्बोधित करते हुए कहे। राष्ट्रपति एर्दोगण अप्रैल में होने जा रहे जनमत संग्रह से पहले अभियान चला रहे हैं। इस जनमत के माध्यम से वह अपने लिए अधिक कार्यकारी शक्तियां चाहते हैं। 

4 बच्चों के बाप एर्दोगण को एक धर्मपरायण मुसलमान माना जाता है और वह अधिक बच्चे पैदा करने के विषय पर भी अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं। गत वर्ष उन्होंने यह कहकर उदारपंथियों और सैकुलरवादियों की नाराजगी मोल ली थी कि महिलाओं को कम से कम 3 बच्चे अवश्य ही पैदा करने चाहिएं लेकिन अबकी बार तो वह निश्चय ही राजनीतिक लाभ लेने के लिए ही यह नारा दे रहे हैं। 

जर्मनी, आस्ट्रिया और नीदरलैंड्स में भारी संख्या में तुर्क समुदाय के लोग रहते हैं। इन तीनों देशों सहित अन्य कई यूरोपीय देशों के साथ भी एर्दोगण इस बात को लेकर नाराज हैं कि उन्होंने अपने-अपने देशों में उनकी सरकार के सदस्यों को रैलियां करने की अनुमति नहीं दी। एर्दोगण  का यह बयान ऐन उस समय आया है जब ऐसा लग रहा था कि बैल्जियम और तुर्की के बीच आप्रवासियों को लेकर कोई समझौता शीघ्र ही हो जाएगा। 

तुर्क सरकार के मंत्री गत कुछ समय से यूरोपीय देशों की यात्रा करके वहां बसे हुए तुर्क लोगों के बीच अभियान चला रहे हैं कि वे संवैधानिक संशोधन के पक्ष में मतदान करें जिसके फलस्वरूप तुर्की की राजनीतिक व्यवस्था संसदीय लोकतंत्र से बदलकर कार्यकारी राष्ट्रपति शासन का रूप ग्रहण कर लेगी जबकि आलोचकों का कहना है कि ऐसा होने से एर्दोगण  को बेलगाम शक्तियां मिल जाएंगी। यूरोप में 46 लाख तुर्क बसे हुए हैं। इनमें से अधिकतर उन लोगों के वंशज हैं जिन्हें तेजी से विकसित हो रहे यूरोप में श्रमिकों की कमी पूरी करने के लिए 1960 के दशक में बुलाया गया था। इनमें से अधिकतर ने अपनी तुर्क नागरिकता भी बहाल रखी हुई है और उन्हें वहां के चुनाव में मतदान करने की भी अनुमति हासिल है। 

तुर्की के समाचार पत्रों में गत 9 दिनों से ऐसी सुॢखयां छाई हुई हैं जिनमें एर्दोगण सरकार के उच्च मंत्रियों ने जर्मनी और नीदरलैंड पर नाजियों जैसे हथकंडे अपनाने का दोष लगाया है। तुर्की उस समय और भी भड़क उठा जब जर्मन की विदेशी जासूसी एजैंसी के मुखी ने कहा कि उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं आ रहा कि तुर्की में गत वर्ष हुए राजपलटे की साजिश के पीछे अमरीका में निर्वासन की जिंदगी बिता रहे मौलवी फतेहउल्ला गुलेन का हाथ है। 

यूरोप और तुर्की के बीच रिश्ते और भी बेहतर हो गए जब नीदरलैंड्स ने तुर्की के विदेश मंत्री मैवलूत कावूसोगलू के रैली करने पर प्रतिबंध लगा दिया और साथ ही धमकी दी कि आप्रवासियों के संबंध में होने वाले समझौते को भी वह रद्द कर देगा। उल्लेखनीय यह है कि यूरोप में काम कर रहे तुर्क आप्रवासियों को वापस भेजने के लिए यूरोपीय देश तुर्की को वित्तीय प्रोत्साहन भी दे रहे हैं लेकिन इसके बावजूद इन देशों में तुर्क शरणाॢथयों की बाढ़ थमने का नाम नहीं ले रही। 

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