शांति चाहते हैं तो ‘युद्ध’ के लिए तैयार रहें

Saturday, Jul 18, 2020 - 04:49 AM (IST)

अमरीका के संस्थापक एवं प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वॉशिंगटन ने कहा था कि यदि आप शांति चाहते हैं तो युद्ध के लिए तैयार रहें। जनसाधारण के लिए यह कहावत बड़ी अजीबो-गरीब, दुविधाजनक और हैरतअंगेज हो सकती है। परंतु बादशाहों, राजा-महाराजाओं, शासकों-प्रशासकों, फौजी जरनैलों और राजनीतिज्ञों के लिए बड़ी पाएदार, कारामद और महत्वपूर्ण संदेश प्रदान करती है। 21वीं शताब्दी में सीमा विवाद युद्ध द्वारा हल किया जाना शासकों के नाम पर बद्दनुमा धब्बा है। जो संस्कृतियां ऐसा काम करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं वह मानवता की दुश्मन हैं। 

भारत और चीन की संस्कृतियां अति समृद्धिशाली रही हैं, चीन हमेशा आक्रामक, विस्तारवादी नीति, घुसपैठ द्वारा पड़ोसी देशों के इलाकों पर कब्जा करता आया है। जिसके परिणामस्वरूप चीन का क्षेत्रफल 95$96 लाख किलोमीटर बन चुका है। 1949 के बाद चीन ने 6 देशों जिनमें पूर्वी तुर्कीस्तान, तिब्बत, इनर मंगोलिया, ताइवान, हांगकांग और मकाऊ पर कब्जा कर लिया है। इन सभी देशों का क्षेत्रफल 4113709 वर्ग किलोमीटर से अधिक है और चीन के कुल क्षेत्रफल का करीब-करीब 43 प्रतिशत है। चीन तिब्बत को हथेली मानता है, लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान और उत्तरांचल को उगलियां। चीन की युद्ध नीति के निर्माता सनयू ने 2500 वर्ष पहले युद्ध की कला नाम की पुस्तक लिखी, जिसे चीन आज तक अपनाए हुए है। सनयू का कहना था कि अपने पड़ोसियों को अशांत रखा जाए, उनके इलाकों में घुसपैठ की जाए,  दो कदम आगे और फिर एक कदम पीछे आने की नीति अपनाई जाए। जबकि भारत ने हमेशा सुरक्षावादी और संतोषवादी नीति को अपनाया है। 

2400 वर्ष पहले भारत के महान दार्शनिक चाणक्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में हरेक क्षेत्र से संबंधित नीतियों का वर्णन किया है। महात्मा विदुर का नीति शास्त्र भी बड़ा महत्व रखता है। परंतु भारतीयों ने अक्सर इन महान विद्वानों के विचारों को हमेशा नजरअंदाज किया। जिसके परिणामस्वरूप भारत जो कभी हिंदू-कुश पर्वत से शुरू होकर म्यांमार तक था आपसी मतभेदों और स्वार्थों के कारण छोटा होता चला गया। 11वीं शताब्दी में अफगानिस्तान अलग हो गया, 1937 में बर्मा, 1947 में पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान, बंगलादेश। आज का इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाइलैंड, कम्बोडिया, बाली, बोर्नियो तथा अन्य इलाकों में 14वीं शताब्दी तक भारतीयों का बोलबाला था। उसके बाद यह भारत से अलग हो गए। तो क्या भारत चीन की तरह इन इलाकों पर पुन: कब्जा कर सकता है। 

चीन ने पिछले कुछ वर्षों से भारत को घेरने के लिए घेराववादी नीति अपना रखी है, उसने चीन से बर्मा में सड़क का निर्माण करके जो सीधे अंडेमान सागर में खत्म होती है, जो बंगाल की खाड़ी के नजदीक है, भारत के लिए एक नया खतरा पैदा किया है। चीन ने बंगलादेश और श्रीलंका को निवेश के तहत हबनटोटा बंदरगाह को करीब-करीब अपने कब्जे में कर लिया है और पाकिस्तान के बलोचिस्तान में ग्वादर में बंदरगाह का निर्माण कर रहा है और काशगर से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होती हुई पाकिस्तान पंजाब और सिंध से ग्वादर तक सी-पैक नाम की सड़क का निर्माण कर रहा है। उसने पिछले 20 सालों में भारत के इर्द-गिर्द कई स्थानों को अपने नियंत्रण में लिया है, ताज्जुब यह है कि नेपाल और भारत का सदियों से रोटी-बेटी का रिश्ता है। 

60 लाख के करीब नेपाली भारत में काम करते हैं और 6 लाख भारतीय नेपाल में काम करते हैं। चीन ने दक्षिण चीन सागर में ही नहीं, बल्कि लैटिन अमरीका और कैरेबियन देशों में भी निवेश करके अपना प्रभाव स्थापित कर लिया है। 10 वर्ष पहले जहां केवल  35 हजार करोड़ का निवेश था, अब 1$87 लाख करोड़ रुपया  हो चुका है। 2017 से पहले इन देशों में अमेरिका और यूरोपियन देशों का दबदबा था, परंतु अब केवल चीन का निवेश ही 42 प्रतिशत हो चुका है। इस तरह अमरीका और यूरोपियन देशों का दबदबा करीब-करीब खत्म होता जा रहा है और चीन ने अधिग्रहण और विलय की गतिविधियों को बढ़ा दिया है। पाकिस्तान चीन का पूरी तरह कठपुतली बन चुका है। यही हाल रहा तो एक दिन पाकिस्तान चीन का गुलाम देश बन जाएगा। 

भारत ने पिछले 30 वर्षों से अपने उद्योगों को प्रफुल्लित करने की बजाय, चीन के निर्मित सामान पर निर्भर होना शुरू कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप भारत औद्योगिक क्षेत्र में पिछड़ता चला गया। चीन ने अपने विनिर्माण के कारण समूची दुनिया में अपने माल की खपत करनी शुरू कर दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का उद्घोष किया है। यह तभी पूरा हो सकता है, जब सरकार विदेशी निवेशकों को हर तरह की सहूलियतें मुहैया करे। सस्ती जमीन, सस्ती बिजली, प्रशिक्षित कामगार, टैक्सों में कमी और आवश्यकता अनुसार सहूलियतें प्रदान की जाएं। भारतीयों को भी कारखाने लगाने और इन चीजों के निर्माण के लिए हर तरह की सहूलियत दी जाए। जब तक भारत आर्थिक तौर पर चीन के मुकाबले नहीं आ जाता, तब तक भारत प्रतिस्पर्धात्मक युग में पीछे रह जाएगा। यदि भारत के इंजीनियर दूसरे देशों में जाकर उनको शिखर पर ले जा रहे हैं, तो भारत में रह कर भी वह उससे अधिक कामयाबी हासिल कर सकते हैं। इसलिए सबसे पहले भारत को अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए अपनी फौज को हर तरह के साधनों से संपन्न करना होगा और आर्थिक खुशहाली के लिए उद्योगों को प्रोत्साहित करके राष्ट्र में एक नई क्रांति को जन्म दिया जा सकता है।-प्रो. दरबारी लाल (पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा) 
 

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