अपराध का एहसास है तो क्षमा भी स्वयं से मांगनी होगी
punjabkesari.in Saturday, Sep 23, 2023 - 06:28 AM (IST)

भगवान महावीर ने कहा था कि सबसे पहले हमें अपनी आत्मा को क्षमा करना होगा, दूसरों को क्षमा करना है तो पहले स्वयं से शुरूआत करनी होगी। जिसे तुमने दुख दिया या उसकी हत्या की तो वह और कोई नहीं बल्कि स्वयं हो क्योंकि सभी जीवों की आत्मा एक जैसी ही है। ‘अहिंसा परमो धर्म:’ इसी का विस्तार है। क्रोध से केवल क्रोध उत्पन्न होता है। क्षमा और प्रेम का परिणाम क्षमा मांगने और क्षमा देने वाले दोनों ही के फायदे का है। अहिंसा का जन्म यहीं से होता है जिसका अगला पड़ाव सहिष्णुता है, अपने-पराए का भेद मिट जाना है जिससे दुर्भावना का अंत निश्चित है।
क्षमा अपने से ही क्यों? : जीवन में अक्सर ऐसे पल आते-जाते रहते हैं जब हमसे जाने-अनजाने कुछ ऐसा हो जाता है जिससे दूसरे की हानि होती है, चोट पहुंचती है और कभी-कभी उसके परिणाम बहुत घातक होते हैं। यदि जानबूझकर किसी का अहित किया तो यह गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है लेकिन अनजाने में और बिना किसी उद्देश्य के अचानक हो गया तो इसका एहसास पीछा नहीं छोड़ता। अपराध बोध तो जानते-बूझते किए काम का भी होता है और उसका क्या दंड मिल सकता है, इसकी भी जानकारी होती है और अपने बचाव के लिए दलील और वकील भी तैयार कर लिए जाते हैं। जो पीड़ित पक्ष है वह भी न्याय के द्वार खटखटाता है। यह ऐसी स्थिति है जिसमें कुछ निश्चित नहीं है कि क्या परिणाम होगा, कब होगा और न्याय मिलेगा या नहीं, कुछ भी हो सकता है। परंतु अपराध किया है इसका एहसास हमेशा रहता है। कानून सजा दे या न दे लेकिन अपने आप से क्षमा मांगनी जरूरी है, तब ही मन शांत हो पाता है।
इसके विपरीत उस व्यक्ति की मानसिक स्थिति बिल्कुल अलग होती है जिससे कुछ ऐसा अनजाने में हो गया है जिसे वह अपराध समझता है। जैसे कि बचपन या युवावस्था में सही या गलत संगत में पड़ कर कुछ कर बैठना या ऐसा करना जो परिवार या समाज की दृष्टि में तो अपराध हो लेकिन वह उसे ठीक समझता हो। इसमें सामान्य से लेकर यौन व्यवहार तक आता है। वह अपनी गलती की सजा भी भुगतने के लिए तैयार रहता है। उसे चैन नहीं मिलता। वह हर समय कुंठा से ग्रस्त रहता है कि उससे कसूर तो हुआ है, चाहे किसी ने उसे यह करते हुए देखा हो या न देखा हो, उस पर किसी ने आरोप लगाया हो या न लगाया हो, अपनी सोच में तो वह अपराधी बन ही जाता है। हो सकता है कि उसके किए कृत्य का किसी को पता न हो और जब कोई साक्ष्य या सबूत ही नहीं तो उस पर कोई दोष भी नहीं लगा सकता। अब यह उस व्यक्ति पर होता है कि उससे जो भूल हुई है, उसे सुधार ले और आगे कभी भूल न होने देने के प्रति होशियार रहे। जिसके साथ उसने यह किया, उसे जब यह ज्ञान ही नहीं कि किसने किया तो वह किसको दोष दे? पीड़ित के पास इसके अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं होता कि वह अपने साथ हुए या किए गए अन्याय का प्रतिकार नियति या ईश्वर पर छोड़ दे।
अपराध बोध से मुक्ति : यह वास्तविकता है कि अपराध का एहसास जीवन भर रहता है चाहे उसका दंड मिले या न मिले। बहुत से लोगों से कोई त्रुटि हो जाती है तो वह इस हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं कि वे कुछ ठीक कर ही नहीं सकते। उनसे जो होगा, गलत ही होगा। इसके लिए वे अपने भाग्य को जिम्मेदार मान लेते हैं कि कुछ भी सही न कर पाना उनकी भाग्य रेखा में लिखा है। वे एक तरह के अवसाद, निराशा या डिप्रैशन के शिकार हो जाते हैं। कई बार तो ऐसे लोगों को मानसिक और मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों की सहायता लेने की जरूरत पड़ जाती है। सही उपचार न होने से अनेक शारीरिक दोष होने की संभावना हो जाती है।
आमतौर से नींद न आने से इसकी शुरूआत होती है। कई बार तो बल्कि अधिकतर मामलों में यही पाया जाता है कि वे केवल किसी अपराध की कल्पना कर लेते हैं कि अवश्य ही उनसे यह गलती हुई है जबकि असल में ऐसा कुछ नहीं होता। ऐसे व्यक्ति की हालत तब और खराब हो जाती है जब घर परिवार या रिश्तेदारों के बीच वे अपने काल्पनिक अपराध बोध के कारण तानों और अवहेलना के शिकार होते हैं। अक्सर ऐसे लोग एकांत में रहना पसंद करने लगते हैं और कई मामलों में बिना बताए घर से दूर चले जाते हैं और कभी लौटकर नहीं आते।
गंभीर स्थिति से बाहर निकलना : अपराध बोध या कसूर का एहसास है तो उससे उबरने या मुक्त होने का एक ही उपाय है और वह यह कि व्यक्ति उससे नहीं जिसके साथ उसने गलत हरकत की है, बल्कि स्वयं अपने आप से यानी खुद से क्षमा याचना करे। बहुत से लोग क्या अधिकतर व्यक्ति अपने अपराधों की माफी के लिए धार्मिक स्थलों में जाकर याचना करते हैं या जिसके प्रति गलत किया है, उससे माफ करने के लिए कहते हैं। यदि मन में ईश्वर या पीड़ित के लिए कोई पीड़ा ही नहीं है तो यह क्षमा याचना केवल दिखावटी है। व्यक्ति वहां से हटते ही भूल जाता है कि उसने कोई गलती की है। उसमें यह अहंकार आ जाता है कि ठीक है माफी तो मांग ली, अब क्या उसके लिए मर जाए। इस प्रकार के लोगों को अनजाने में या जानबूझकर फिर से वही अपराध या गलती दोहराने में वक्त नहीं लगता। प्रायश्चित करना केवल एक कमलकांड बन जाता है और पश्चाताप अधिक समय तक नहीं रहता।
यदि स्वयं को अपराध के एहसास से मुक्त रखना है, अपने बारे दूसरे क्या सोचते हैं, इस सोच से मुक्त रखना है तो एक ही उपाय है कि शीशे के सामने खड़े होकर अपनी छवि से यह कहें कि मैं क्षमाप्रार्थी हूं और स्वयं को क्षमादान का इच्छुक हूं। इसके साथ ही जिस व्यक्ति के साथ गलत किया है, उसकी तस्वीर की कल्पना करें कि आईने में वह मौजूद है। तब ही माफीनामा कबूल होगा वरना यह ढोंग होगा। यह समझ में आ जाए कि गलती तो की है तो फिर दोबारा उसे दोहराने से बचा जा सकता है। क्षमा वाणी पवल का यही पालन है।-पूरन चंद सरीन