आज ‘मुस्लिम’ कर रहे हैं तो कल ‘दूसरे धर्म’ के लोग करेंगे

punjabkesari.in Sunday, Nov 08, 2020 - 04:38 AM (IST)

क्या कोई कार्टून इतना खतरनाक होता है कि पूरा इस्लाम ही खतरे में आ जाए। क्या राइट टू फ्री स्पीच का कोई मतलब नहीं रह गया है। क्या अभिव्यक्ति की आजादी के कोई मायने नहीं रह गए हैं। हम यह सवाल इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि फ्रांस में जो हो रहा है वह फ्रांस तक सीमित नहीं रहने वाला है। वह हमारे-आपके देश और शहर में भी असर दिखाने वाला है। फ्रांस में इतिहास पढ़ाने वाले एक स्कूल टीचर सैमुअल पैटी अपने छात्रों को अभिव्यक्ति की आजादी के मायने बता रहे थे। छात्रों को समझाने के लिए उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद साहब के कार्टून दिखाए। 

कक्षा में पैटी बता रहे थे कि कैसे चार्ली हैब्दो नाम की कार्टून पत्रिका कैथोलिक चर्च को लेकर भी कार्टून छापती रही है। कुल मिलाकर छात्रों को बताने की कोशिश हो रही थी कि फ्रांस में अभिव्यक्ति की आजादी है। इसका सम्मान किया जाना चाहिए। आप किसी की बात से सहमत हो सकते हैं। आप किसी की बात से असहमत भी हो सकते हैं लेकिन आप हथियार नहीं उठा सकते। आप किसी की जान नहीं ले सकते। एक सच्चे लोकतांत्रिक देश का यही तो सबसे बड़ा आधार है। यहां यह बताना जरूरी है कि टीचर पैटी ने कार्टून दिखाने से पहले क्लास में बैठे मुस्लिम छात्रों से कह दिया था कि अगर उन्हें कोई परेशानी है तो वह क्लास छोड़ कर जा सकते हैं। यह छात्र क्लास तो छोड़ कर नहीं गए लेकिन घर जाकर अपने घर वालों से कह दिया। एक दो घर वाले नाराज हुए। उन्होंने सोशल मीडिया पर इस मामले को लिखा, भड़काऊ पोस्ट डाली। इनमें से एक की बहन तो कुछ साल पहले आई.एस. के साथ काम करने सीरिया चली गई थी। 

खैर, 18 साल के एक लड़के ने इसे पढ़ा। वह चेचेन्या से आया इस्लामिक आतंकवादी था। चेचेन्या कभी सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था और अब रूस का एक हिस्सा है जो आजादी के लिए संघर्ष कर रहा है और वहां 90 फीसदी आबादी मुस्लिम है। तो उस 18 साल के लड़के का खून खौला, उसे लगा पैगम्बर साहब का अपमान हो रहा है। वह उस शिक्षक के घर पहुंचा और उसने चाकू से टीचर सैमुअल पैटी का गला रेत दिया। इस घटना का फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने विरोध किया। इसे इस्लाम के नियमों के खिलाफ बताया। आपको बता दें कि फ्रांस की दस फीसदी आबादी मुस्लिम धर्म मानती है (करीब साठ 65 लाख लोग) जबकि कुल आबादी साढ़े 6 करोड़ के आसपास है। 

फ्रांस ने हमेशा विचारों की आजादी को आगे रखा है। सीरिया, चेचेन्या और अन्य अरब देशों से आतंकवाद के शिकार शरणार्थी फ्रांस आए तो सरकार ने उनका स्वागत किया, रहने को जगह दी, खाना पीना दिया, नौकरी करने के मौके दिए। आपको फ्रांस की फुटबाल टीम में भी अश्वेत खिलाड़ी मिल जाएंगे, मुस्लिम मूल के लोग मिल जाएंगे। कहने का मतलब है कि इतने उदारवादी देश में एक कार्टून दिखाने पर अगर हत्या हो जाती है तो उसका विरोध होना ही था और हुआ भी। टीचर पैटी की हत्या का विरोध हुआ तो इस्लामिक आतंकवादियों  ने चर्च में तीन अन्य लोगों की हत्या कर दी। इस पर मैक्रों ने कहा कि कुछ नियम सख्त बनाए जाएंगे, धर्म को अलग रखने का कानून लाया जाएगा, शरण देने के तरीकों में बदलाव किया जाएगा। 

उन्होंने पैगम्बर साहब के कार्टून का समर्थन नहीं किया लेकिन साथ यह भी कह दिया कि अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा की जाएगी यानी वे हर हालत में फ्री स्पीच के पक्ष में हैं। उनका यह भी कहना है कि बदले में ङ्क्षहसा बर्दाशत नहीं की जाएगी। कायदे से तो इस बयान को पूरे संदर्भ में लिया जाना चाहिए था लेकिन इस्लामिक देश इसके एक हिस्से को ही मुद्दा बना रहे हैं जो सही बात नहीं है। इससे उन आम मुसलमानों को ही नुक्सान होगा जो यूरोप, अमरीका जैसे देशों में शरण लेना चाहते हैं। इस्लामी आतंकवाद से दुखी होकर वैसे भी अमरीका अपने यहां मुस्लिम देशों से आए लोगों को संदेह की नजर से देखता है और शरण नहीं देता है। अब दूसरे देश भी ऐसा ही करने लगेंगे तो इसका नुक्सान आम मुस्लिम को ही होगा। 

क्या वास्तव में इस्लाम खतरे में है। यह सवाल अब खड़ा हो गया है। इस्लाम में दो अरब से ज्यादा लोग अपनी आस्था रखते हैं। दुनिया में दूसरे नंबर का धर्म है। लेकिन इस्लाम का राजनीतिकरण होने लगा है। जहां-जहां लोकतंत्र है और जहां-जहां मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं वहां-वहां धर्मनिरपेक्षता का फायदा उनको मिलता रहता है। लेकिन फ्रांस जैसी घटनाएं ज्यादा हुईं तो ऐसे देशों में मुस्लिम ही नुक्सान में रहेंगे। मुस्लिम देश एक नहीं है। आपस में लड़ाइयां होती रहती हैं। ईरान ईराक के बीच युद्ध तो लंबे समय तक चला था। आपस में लड़ कर पूरा सीरिया बर्बाद हो गया है। इसराईल के साथ कुछ मुस्लिम देशों ने संबंध बना लिए हैं। ईरान यहां अकेला रह गया है। इसका नुक्सान भी इस्लाम को ही हो रहा है। 

क्या गरीब मुस्लिम देशों की आगे बढ़कर मदद की है। क्या ऐसे गरीब देशों के मुस्लिमों को अपने यहां शरण दी है। आप जानते हैं कि  एक तरफ अरब के शेख हैं तो दूसरी तरफ भुखमरी का शिकार गरीब मुस्लिम देशों के नागरिक। ये असमानता भी इस्लाम के लिए ठीक नहीं है। कुछ मुस्लिम देश अमरीका का विरोध करते हैं तो कुछ  अरब अमीर देश अमरीका को गले लगाते हैं। यह दोहरापन इस्लाम को कहां तक ले जाएगा यह देखने की बात है। आज मुस्लिम कर रहे हैं तो कल दूसरे धर्म  के लोग करेंगे। (वैसे ऐसा भी नहीं है कि तमाम दूसरे धर्म के लोग बहुत उदारवादी हैं। अब भारत में ही देख लें कि किस तरह से ङ्क्षहदूवादी ताकतें एक साथ सक्रिय होती रही हैं चाहे गौकशी का मामला हो या लव जेहाद का। इन ताकतों को राजनीतिक संरक्षण भी मिलता रहा है जो हाल के कुछ सालों में बढ़ा है।) लेकिन ऐसा दौर जारी रहा तो यह लोग ज्यादा ङ्क्षहसा करेंगे। हत्याएं करेंगे। ऐसे में दुनिया कहां जाएगी ...क्या लोकतंत्र बचेगा।-विजय विद्रोही


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