बदनीयती और अहंकार हो तो धोखा होना तय
punjabkesari.in Saturday, Mar 01, 2025 - 05:28 AM (IST)

महत्व इस बात का है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक या राजनीतिक जीवन में विश्वास होना परम् आवश्यक है। इसके केवल 2 ही रूप हैं, पहला यह कि या तो जिस पर भरोसा किया, वह अपना वचन निभाएगा या नहीं भी कर पाया तो स्पष्ट कह देगा कि उससे नहीं हो पाया और क्यों नहीं हुआ उसके कारण भी बता देगा। दूसरा यह कि अगर विश्वास के मूल में उसकी यह भावना थी और रही है कि कसमों और वादों के बावजूद उसकी नीयत खराब है, ठगने की मंशा है और इतना गुरूर है कि उसका पकड़ में आना नामुमकिन है, तब धोखे का शिकार होना ही पड़ेगा क्योंकि यही कलयुग की व्याख्या की जाती है।
दुनिया करवट ले रही है : घर हो या बाहर एक विचित्र प्रकार की आपाधापी देखने को मिल रही है। कैसे भी हो, सबसे आगे निकलने की होड़ और मंजिल पता हो या न हो, बस दौड़ते जाना ही जिंदगी का हिस्सा बन गया है। धकियाना, टंगड़ी मारकर गिराना और चाहे अपना नुकसान हो जाए लेकिन दूसरा अवश्य लहूलुहान होना चाहिए, यह नजरिया बनता जा रहा है। बड़ों का लिहाज या छोटों की शर्म जैसा कुछ रह नहीं गया है। जिनके लिए आदर्शों का महत्व है, उनका अपमान करना आज की पीढ़ी के एक वर्ग के लिए बहुत आसान हो गया है। पैसा और पद पाने के लिए किसी भी सीमा का पार करना सामान्य बात है। यह सोचने का समय ही नहीं रह गया लगता है कि मैं कौन हूं,मेरे मूल्य क्या हैं, किन परंपराओं का पालन मुझे करना है और किन्हें छोड़ देना है। समाज के किस वर्ग का मैं प्रतिनिधि हूं। मेरी ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत क्या है? आज चाहे किसी भी आयु वर्ग में कोई भी हो, निश्छल विश्वास के स्थान पर तृष्णा, बेईमानी को आधार बनाकर संबंध बनाना और उस पर यह अहंकार करना कि यदि किसी ने समझाने की हिम्मत की तो उस पर ही गंदगी फैंक कर अपने को उजला सिद्ध करने की कला हमें आती है, इसलिए जो कहा मान लेने में ही भलाई है।
ऐसे में जिन्हें अपना मान सम्मान या जीवन भर जो अर्जित किया है, उस पर कोई दाग न लगे, ऐसी सोच के व्यक्ति हैं, वे ब्लैकमेलर के आगे झुक जाते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि वे गलत हैं या उन्होंने कोई अपराध किया है। विडंबना यह है कि व्यक्ति को भारी ठेस लगने के बावजूद वह कोई कदम नहीं उठाना चाहता क्योंकि उसे यह यकीन ही नहीं होता कि जिसने उस पर लांछन लगाया है, कभी वह उसका विश्वासपात्र था।
क्या यही बदलाव है?:यह 20वीं सदी की ही बात है जब एक ओर युद्ध के दौरान घातक आणविक और न्यूक्लियर हथियारों से बड़े पैमाने पर तबाही कर स्वयं को सुरक्षित और ताकतवर बनाने की मानसिकता पनप रही थी, उसी समय दूसरी ओर विश्व इस बात पर विचार कर रहा था कि सामाजिक और सामुदायिक सुरक्षा के लिए क्या किया जाए? क्या किसी ने सोचा था कि इसका परिणाम यह होगा कि भू-मंडलीकरण, आधुनिकीकरण, शहरीकरण और मास मीडिया के माध्यम से लोगों का जीवन बदलने की प्रक्रिया ऐसे मुकाम पर ला खड़ा कर देगी जहां एक ओर कुआं और दूसरी तरफ खाई है। पश्चिमी या अमरीकी सभ्यता के सामने एशियाई और विशेषकर भारतीय सभ्यता चुनौती है। टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल स्वास्थ्य सेवाओं को आधुनिक बनाने, परिवहन व्यवस्था को सुधारने, बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं को बेहतर बनाने और कृषि क्षेत्र को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए किया जाता है न कि अपने अभिमान को शांत करने के लिए। दु:ख इस बात का है कि केवल पढ़े लिखे और अमीर लोगों ने टैक्नोलॉजी को अपने घर की चाकरी करने तक सीमित कर दिया है और सामान्य जन के लिए इतना महंगा और कठिनाई से समझ में आने वाला बना दिया है कि आम नागरिक की उस तक पहुंच आसानी से हो ही नहीं पाती। यहां एक मित्र के साथ घटी घटना का जिक्र करना सटीक होगा ताकि लोग डरकर किसी की बात न मानें।
एक युवती ने पहले उनसे मित्रता की और फिर धन की मांग इस धमकी के साथ शुरू कर दी कि यदि उन्होंने उसकी बात नहीं मानी तो वह आज डिजिटल माध्यम से उसके द्वारा बनाई गई सामग्री से उन्हें इतना बदनाम कर देगी कि वे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। यह ठीक वैसा ही उदाहरण है जैसा कि आज डिजिटल गिरफ्तारी और साइबर क्राइम से जुड़ी ख़बरों का है।
प्रश्न जिसका उत्तर दिया जाना चाहिए : क्या कोई राजनीतिक पार्टी या संगठन या सरकार द्वारा इस बात की सही समीक्षा कर इस प्रश्न का उत्तर मांगा जा सकता है कि क्या कारण हैं कि जो देश हमारे देश के आसपास के वर्षों में विदेशी दासता से मुक्त हुए थे, वे हमसे कहीं अधिक शक्तिशाली और समृद्ध क्यों हैं? हमारा देश प्राकृतिक संसाधनों और खनिज संपदा से समृद्ध है लेकिन फिर भी हम गरीब, अविकसित या ज्यादा से ज़्यादा विकासशील देशों में गिने जाते हैं। होना तो यह चाहिए था कि भारत केवल नाम के लिए नहीं विश्व के प्रमुख उन देशों में शामिल होता जहां लोग शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में अग्रणी हैं। आंकड़े तो बहुत हैं लेकिन उन पर ध्यान दिए बिना इसी बात का ईमानदारी से जवाब मिल जाए तो वही बहुत है कि जनता के प्रति विश्वास की बात जब आती है तो उसके मूल में स्वार्थ, अविश्वसनीयता और अहंकार की बू क्यों आती है?-पूरन चंद सरीन