लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में...

punjabkesari.in Wednesday, Aug 09, 2023 - 05:27 AM (IST)

‘जैसा बीजोगे, वैसा ही फल पाओगे’ महान वाक्य में समाया सदीवी सच का फलसफा मणिपुर तथा हरियाणा की धरती पर उजागर हो रहा है। जिस तरह का अत्यंत संकीर्ण तथा साम्प्रदायिक सोच से ओत-प्रोत माहौल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत के राजनीतिक तथा वैचारिक क्षेत्रों में बनाया गया, उसी की देन हैं मणिपुर की दिल दहला देने वाली घटनाएं, जहां बलात्कार करने के बाद नग्र महिलाओं को सरे बाजार घुमाया गया। 

यह सब कुछ ‘सत्ता’ पर कब्जे को यकीनी बनाने के लिए किया जा रहा है। सारे संसार को परिवार (कुटुम्ब) कहने वाले, ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के अनुयायी होने का दावा करने वाले सभी नेता, धर्मगुरु तथा समाज सेवा का मुखौटा पहने बाजारों में घूम रहे लोग मणिपुर में होने वाले अनर्थ को देखकर मौन धार गए। सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों को  लताडऩे के सिवाय और कर भी क्या सकती है। 

जब शासकों ने कानों में ‘कड़वा तेल’ डाल लिया हो तथा आंखों पर पट्टियां बांध ली हों तो कोई आवाज तथा अनहोनी घटना भी दिलों को पिघला नहीं सकती। सोशल मीडिया या किसी अन्य तरीके से सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को जिस तरह हुड़दंगी धमकियां दे रहे हैं वह हमारे लोकतांत्रिक इतिहास का एक नया पन्ना बन गया है। फासीवादी माहौल में सच बोलना, सच लिखना, सच पर अमल करना सभी कुछ खतरनाक बनता जा रहा है। कमाल तो यह है कि फिर भी कहा जा रहा है कि भारत ‘अमृतकाल’ से गुजर रहा है। 

जब कोई राजनीतिक दल या नेता मणिपुर व हरियाणा में घटित दुखद घटनाओं बारे आवाज उठाता है, तो उस पर सरकारी पक्ष ‘राजनीति करने’ का आरोप लगा देता है। क्या राजनीति लोगों से धोखा करने या धन इकट्ठा करने के लिए होती है? यदि समाज में हो रहे अत्याचारों तथा नाइंसाफियों के विरुद्ध आवाज ही नहीं उठानी तो राजनीतिक किस बला का नाम है? असल में शासक सच को लोगों के सामने नहीं आने देना चाहते। अभी मणिपुर घटनाओं के संदर्भ में लोगों के आंसू थमे भी नहीं थे कि नूंह (हरियाणा) में साम्प्रदायिक घटनाओं का दौर चल पड़ा। एक ‘जन रक्षक’ ने 3 मुसलमानों तथा 1 अपने सहयोगी की गोलियां मारकर दिन-दिहाड़े हत्या कर दी। इसी शृंखला के अगले पड़ाव में एक धार्मिक जलूस में हिंसा का दौर शुरू हो गया। हरियाणा में कुछ जगहों पर कफ्र्यू, 6 जिलों में धारा-144 लागू करना स्थिति की गम्भीरता को समझने के लिए काफी है। 

हरियाणा के मुख्यमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि ‘सरकार हर व्यक्ति की रक्षा नहीं कर सकती।’ ऐसा सच बोलने पर खट्टर साहिब को शाबाश मिलनी चाहिए। संभव है कुछ लोग सहमत न हों मगर हकीकत यह है कि देश गत कुछ वर्षों से बड़े सामाजिक तनाव, साम्प्रदायिक नफरत, असहिष्णुता तथा अविश्वास के दौर से गुजर रहा है। प्रतिदिन धर्म तथा जाति के नाम पर दंगे हो रहे हैं व निर्दोष लोगों की मौतों का सिलसिला लगातार चल रहा है। एक ओर यह वृतांत रचा जा रहा है कि देश की 80 प्रतिशत हिन्दू आबादी का धर्म बड़े खतरों में घिरा हुआ है। किस से? 20 प्रतिशत मुस्लिम भाईचारे से, आजादी तथा लूट-खसूट रहित समाज बनाने के लिए संघर्षरत ताकतों से? 

इस माहौल में धार्मिक अल्पसंख्यकों में भी स्थिति का लाभ उठाने के लिए ऐसे लोग सिर उठा लेते हैं जो सामाजिक तनाव बढ़ाने के लिए उत्तेजित बयानबाजी शुरू कर देते हैं। हर रंग के साम्प्रदायिक गुटों तथा संगठनों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। देश में धर्म, जाति या आस्था के आधार पर कोई भी हिंसक कार्रवाई या तमगा जिस पक्ष के लिए लाभदायक हो सकता है वही पक्ष यह कुकर्म करेगा या करवाएगा। पीड़ित पक्ष तो बकरे की तरह किसी दूसरे का शिकार करने की बजाय अपनी जान बचाने के लिए ही चिंतित रहता है। ऐसी स्थिति के लिए लाजमी तौर पर वही लोग जिम्मेदार हैं जो देश के मौजूदा संविधान द्वारा स्थापित धर्म निरपेक्षता, लोकतंत्र तथा संघवाद के ढांचे की बजाय एक ‘धर्म आधारित’ गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने के लिए प्रयत्नशील हैं, जहां अल्पसंख्यक धार्मिक भाईचारों तथा विरोधी विचार रखने वालों को ‘गुलामी तथा कष्ट’ झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए। 

यह व्यवहार देश के 140 करोड़ लोगों के अस्तित्व के लिए घातक है। साथ ही ऐसा उन सभी लोगों के लिए खतरे की घंटी है जो अपनी सच्ची-सुच्ची किरत से खुशी/गमी भरी जिंदगी बिता रहे हैं। यह व्यवहार हमारे देश के उन महान धार्मिक तथा सामाजिक नेताओं, बुद्धिजीवियों, समाज सुधारकों तथा इंकलाबियों की विरासत से धोखा है, जिन्होंने अंधेरे पलों में भी चिराग जलता रखा। खतरा सांझा है, चिंताओं के उपाय भी सांझे होने चाहिएं क्योंकि : लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में,यहां पे सिर्फ हमारा घर थोड़ी है।-मंगत राम पासला


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