महाराष्ट्र में विलय होता तो गोवा एक ‘उपेक्षित जिला’ बनकर रह जाता

Thursday, Mar 15, 2018 - 01:41 AM (IST)

इस वर्ष हम ‘ओपिनियन पोल’ की स्वर्ण जयंती मना रहे हैं। गोवा की मुक्ति के बाद इसकी हैसियत को लेकर दो विपरीत दृष्टिकोण सामने आए थे। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एम.जी.पी.) चाहती थी कि गोवा का महाराष्ट्र में विलय हो जबकि यूनाइटेड गोआंज पार्टी (यू.जी.पी.) एवं कांग्रेस का मत था कि गोवा को अलग रहना चाहिए। 

विलय के पक्षधरों द्वारा दलीलें दी जाती थीं कि गोवा का आकार इतना छोटा है कि यह प्रभावी ढंग से अपना प्रशासन नहीं चला पाएगा तथा इसका प्रभावी शासन केवल तभी संभव होगा जब यह किसी बड़े राज्य का अंग बन जाएगा। यह दलील भी दी जाती थी कि महाराष्ट्र के साथ गोवा के मजबूत सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंध हैं। विलय के विरोध में यह दलील दी जाती थी कि गोवा की अपनी एक विशिष्ट पहचान है तथा कोंकणी एक स्वतंत्र भाषा है न कि मराठी की उपभाषा। उनका यह भी कहना था कि विलय की स्थिति में गोवा महाराष्ट्र के बिल्कुल दूरदराज के उपेक्षित जिले से बढ़ कर कुछ नहीं बन पाएगा। 

प्रदेश सरकार का गठन करने वाली एम.जी.पी. यह महसूस करती थी कि इस मुद्दे का फैसला विधानसभा के अंदर होना चाहिए। यू.जी.पी. और कांग्रेस इस बात का जोरदार विरोध करती थीं। 16 जून 1967 को श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में गोवा ‘ओपिनियन पोल’ करवाया गया। यह सम्पूर्ण देश में करवाया गया प्रथम ओपिनियन पोल था। यह ओपिनियन पोल विलय के विरुद्ध था। यदि गोवा का महाराष्ट्र में विलय हो गया होता तो यह उस प्रदेश के सबसे छोटे जिलों में से एक होता। महाराष्ट्र के अधिकतर जिलों की जनसंख्या आज भी गोवा की तुलना में कहीं अधिक है। विलय की स्थिति में गोवा का प्रभारी कोई जिला कलैक्टर होता न कि इसके अपने प्रतिनिधि। राज्यों को उपलब्ध अनेक महत्वपूर्ण लाभ भी तब गोवा को उपलब्ध नहीं होते। आज गोवा एक सम्पूर्ण राज्य है जिसकी प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. देश में सबसे अधिक है। महाराष्ट्र में विलय होने की स्थिति में ऐसा कदापि संभव नहीं होता। 

ओपिनियन पोल का फैसला आने के बाद कांग्रेस और यू.जी.पी. ने गोवा को सम्पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की। एम.जी.पी. ने भी इस मांग का समर्थन किया। मार्च 1971 में यू.जी.पी. के नेता ए.एन.नाइक ने गोवा विधानसभा में प्राइवेट सदस्य प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए गोवा के लिए सम्पूर्ण राज्य की मांग की। इस मांग को सर्वसम्मति से स्वीकार्य किया गया। कुछ समय बाद कांग्रेस से संबद्ध पुरुषोत्तम काकोदकर ने लोकसभा में गोवा के लिए सम्पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग करते हुए एक विधेयक प्रस्तुत किया और अक्तूबर 1976 में एम.जी.पी. के आर.एल. पनकड़ ने इसी मांग को लेकर गोवा विधानसभा में प्राइवेट सदस्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव को भी सर्वसम्मति से पारित किया गया। इस पर हुई चर्चा में डा. जैक डी. सीक्वेरा, कानून मंत्री प्रताप सिंह राणे, ए.एन. नाइक, डा. एल.पी. बारबोसा, चन्द्रकांत चोडऩकर, रॉकी संताना फर्नांडीज, पूणाजी अचरेकर, तियोतोनियो परेरा, लूता फरारो, लियो वेल्हो, डा. सिलवरियो डिसूजा, जगदीश राव तथा इस स्तंभ के लेखक ने हिस्सा लिया। 

इस अवसर पर बोलते हुए मुख्यमंत्री श्रीमती शशिकला काकोदकर ने कहा था: ‘‘गोवा की स्वतंत्रता के बाद प्रारम्भिक वर्षों दौरान एम.जी.पी. महाराष्ट्र के साथ विलय की पक्षधर थी और इसने लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांग के लिए ओपिनियन पोल के माध्यम से संघर्ष किया था लेकिन इस पोल का नतीजा विलय के विरुद्ध आया था। तब एम.जी.पी. ने जनता के फैसले को स्वीकार कर लिया क्योंकि इसे मतदाताओं की बुद्धिमता पर भरोसा था। गोवा, दमन और दीयू को यहां के लोग जिस अवस्था में चाहते हैं और जैसा इन्हें बनाना चाहते हैं, ये वैसे ही रहने चाहिएं।’’ गोवा को सम्पूर्ण राज्य का दर्जा मई 1987 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में मिला था। 

वर्तमान में गोवा विधानसभा परिसर में डा. जैक सीक्वेरा की प्रतिमा स्थापित किए जाने की मांग की जा रही है। डा. जैक सीक्वेरा यू.जी.पी. के अध्यक्ष, गोवा विधानसभा में विपक्ष के प्रथम नेता तथा ओपिनियन पोल एवं राज्य के दर्जे के लिए चलने वाले आंदोलन के जाने-माने नेता थे। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री एवं एम.जी.पी. के अध्यक्ष दयानंद बंदोदकर की प्रतिमा पहले ही इस परिसर में स्थापित है। पुरुषोत्तम काकोदकर ने जनमत संग्रह करवाने के लिए केन्द्रीय नेतृत्व के साथ बातचीत करवाने के मामले में लॉबिंग करने हेतु नेहरू परिवार के साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों का बहुत कुशल सदुपयोग किया। 

उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में हिस्सा लिया था और जेल की सजा भी काटी थी। उन्होंने गोवा मुक्ति आंदोलन एवं राम मनोहर लोहिया द्वारा 1946 में शुरू किए गए नागरिक असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। पुर्तगाली साम्राज्यवादी शासन ने उन्हें गोवा से निष्कासित कर दिया था और हिरासत में भी रखा था। हिरासत से रिहा होने के बाद वह पुर्तगाल से 1956 में गोवा लौटे थे और मडग़ांव में अपना आश्रम स्थापित किया था। इस आश्रम के पर्दे तले वास्तव में गोवा का स्वतंत्रता संग्राम चलाया जा रहा था और बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने शरण ले रखी थी। पुलिस को जल्दी ही आश्रम के वास्तविक उद्देश्य की भनक लग गई और इसे बंद करवा दिया गया। गोवा की मुक्ति के बाद काकोदकर कांग्रेस पार्टी की गोवा इकाई के अध्यक्ष बने थे। 

डाक्टर अल्वारो लोयोला फुर्तादो, उॄमदा लीमा लीताओ, रविंद्र केलकर, शाबू देसाई, चंद्रकांत कैनी एवं उदय भेंवरे सहित कई अन्य नेता ओपिनियन पोल तथा राज्य के दर्जे के लिए चले आंदोलन में अग्रणी थे। 2011 में मैंने गोवा मुक्ति आंदोलन के पितामह के रूप में विख्यात डाक्टर टी.बी. दा कुन्हा की आदमकद तस्वीर लगाने की व्यवस्था की और मेरी पहलकदमी पर 19 दिसम्बर 2011 को गोवा मुक्ति की स्वर्ण जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रियों, लोकसभा तथा राज्यसभा में विपक्ष के नेताओं, कांग्रेस अध्यक्ष तथा गोवा के सभी सांसदों की उपस्थिति में संसद के केन्द्रीय हाल में डाक्टर कुन्हा की तस्वीर का अनावरण हुआ। अब भारत के अन्य अग्रणी नेताओं के साथ-साथ उनकी तस्वीर भी संसद भवन में स्थायी रूप में प्रदर्शित है। संसद भवन में गोवा से संबंधित किसी नेता की यह इकलौती तस्वीर है। 

मैंने गोवा विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष को निवेदन किया था कि गोवा विधानसभा में डाक्टर कुन्हा के साथ-साथ गोवा मुक्ति आंदोलन के अन्य नेताओं की तस्वीरें लगाई जानी चाहिएं। उन्होंने मुझे पत्र लिखकर सूचित किया था कि इस संबंध में जरूरी कदम उठाए जाएंगे। यह बहुत ही उचित होगा कि गोवा विधानसभा के परिसर में जितने भी पैनल मौजूद हैं उनमें 1510 में उपनिवेशक शासन शुरू होने के समय से लेकर 1962 में गोवा की स्वतंत्रता तक के सम्पूर्ण मुक्ति संघर्ष को चित्रित किया जाए। 

डा. टी.बी. दा कुन्हा की चयनित रचनाएं 1961 में कुन्हा स्मारक समिति द्वारा पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाई गई थीं। अब इस पुस्तक का स्टॉक खत्म हो चुका है। इसलिए इसे न केवल दोबारा छपवाया जाना चाहिए बल्कि इसे स्कूलों और कालेजों के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि हमारे समाज को दिशाबोध मिल सके। गोवा ने गत 5 दशकों दौरान उल्लेखनीय प्रगति की है- खास तौर पर शिक्षा के मामले में। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवाओं एवं विकास अधोसंरचना में भी काफी प्रगति हुई है लेकिन कुछ त्रुटियां अभी भी स्पष्ट रूप में दिखाई देती हैं जिन्हें दृढ़ता और दिलेरी से दूर करना होगा।-एडुआर्डो फ्लेरो

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