यदि गुजरात में भाजपा 100 से भी कम सीटें जीती तो इसे उसकी हार ही माना जाएगा

Friday, Dec 15, 2017 - 03:58 AM (IST)

गुजरात चुनाव के नतीजे बहुत महत्वपूर्ण होंगे- खास तौर पर कांग्रेस के लिए। यदि टक्कर कांटे की रहती है तो यह कांग्रेस के सुरजीत होने का संकेत होगा और वहीं भाजपा के मामले में इस बात का संकेत होगा कि वोट खींचने के लिए मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता अब मुख्य उपकरण नहीं रह गई क्योंकि अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार को लेकर मतदाताओं की ङ्क्षचताएं बढ़ती जा रही हैं। 

किसी भी चुनाव के बारे में भविष्यवाणी करना बहुत खतरे भरा काम होता है और इसमें सभी ‘विशेषज्ञ’ किसी न किसी समय औंधे मुंह गिर चुके हैं। मैंने जो राजनीतिक माडल प्रयुक्त किए हैं वे गत एक दशक दौरान काफी संतोषजनक सिद्ध हुए हैं और 2015 में बिहार में भाजपा की आश्चर्यजनक पराजय तथा यू.पी. में 2017 में उतनी ही आश्चर्यजनक जीत की भविष्यवाणी केवल मेरे विश्लेषण में ही की गई थी। फिर भी गुजरात चुनाव के नतीजों की सही-सही भविष्यवाणी करना मेरे लिए बहुत ही जोखिम भरा है। इसके बावजूद हमें तब तक अपने काम पर डटे रहना होगा जब तक चुनावी नतीजे हमें गलत सिद्ध नहीं कर देते। 

तो चलो चुनावी नतीजों के बारे में अनुमान लगाने का काम शुरू किया जाए। सबसे पहले तो हम यह देखेंगे कि ओपिनियन पोल क्या कहते हैं? गुजरात चुनाव के संबंध में 8 ओपिनियन पोल हुए हैं। दिसम्बर में किए गए 4 ओपिनियन पोल में से 2 ने भाजपा को 134 सीटों से जीतते हुए दिखाया है। यानी कि 182 सदस्यीय विधानसभा में वह 70 प्रतिशत से अधिक सीटें हथिया लेगी जबकि अन्य 2 पोल में भी भाजपा को जीतते दिखाया गया है लेकिन इसमें जीत का आंकड़ा केवल 102 सीटों का है। 

भाजपा के लिए सबसे बुरी स्थिति सी.एस.डी.एस. द्वारा करवाए गए उस ओपिनियन पोल में दिखाई गई है जिसमें  कांग्रेस और भाजपा दोनों के बराबर रहने का आकलन किया गया है। इस स्थिति में दोनों पाॢटयों की वोट हिस्सेदारी 43-43 प्रतिशत रहेगी लेकिन इसके बावजूद पांचवीं बार गुजरात में चुनाव का सामना कर रही भाजपा कांग्रेस से 11 सीटें अधिक लेकर यानी 95 सीटें हासिल करके जीत दर्ज करेगी। ओपिनियन पोल में एक संकेत स्पष्ट है कि भाजपा चुनाव हारती नहीं दिखाई गई। जो लोग चुनावी नतीजों का विश्लेषण करते रहते हैं वे जानते हैं कि यदि मतदान प्रतिशत में बढ़ौतरी होती है तो इसका लाभ चुनौतीबाज को मिलता है लेकिन इसमें कमी आती है तो इससे सत्तारूढ़ पार्टी ही लाभान्वित होती है।

9 दिसम्बर को पहले दौर के चुनाव में जो मतदान हुआ वह पिछले चुनाव (2012) की तुलना में 3 से 4 प्रतिशत कम था। इसका तात्पर्य यह है कि 2017 के चुनावी नतीजे भी भाजपा के पक्ष में जाएंगे। 31 अगस्त को अपने प्रथम चुनावी सर्वेक्षण में इसी सी.एस.डी.एस. संस्था ने यह उम्मीद व्यक्त की थी कि भाजपा 2014 के लोकसभा चुनावों वाली कारगुजारी दोहराएगी जब यह 120 विधानसभा हलकों में कांग्रेस पर हावी रही थी लेकिन दिसम्बर के पोल सर्वेक्षण में इसी सी.एस.डी.एस. ने उम्मीद व्यक्त की है कि भाजपा केवल 91-99 सीटें लेकर ही जीत पाएगी। बहुत अलग-अलग समय पर किए गए शेष 6 जनमत सर्वेक्षणों में भाजपा के लिए 115-130 सीटों की ही भविष्यवाणी की गई है। 

उल्लेखनीय है कि लोकनीति-सी.एस.डी.एस. ओपिनियन पोल में समय बीतने के साथ-साथ भाजपा की उपलब्धि में लगातार गिरावट दिखाई गई है। हालांकि सी.एस.डी.एस. एक बहुत सम्मानित सर्वेक्षण संस्था है लेकिन मोदी सरकार के गत 3 वर्षों के दौरान इसने जितने भी सर्वेक्षण किए हैं उनमें खास खूबी यह है कि भाजपा के विरुद्ध यह कुछ हद तक पूर्वाग्रह से ग्रसित दिखाई देती है। वैसे तो जनमत सर्वेक्षण करने वाले भी इंसान होते हैं इसलिए उनके भी अपने पूर्वाग्रह हो सकते हैं, तो भी यह एक तथ्य है कि घटिया चुनावी भविष्यवाणियों से सर्वेक्षण एजैंसियों की प्रतिष्ठा भी आहत हो जाती है। इसलिए सी.एस.डी.एस. के नवीनतम सर्वेक्षण को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। 

वैसे ऐतिहासिक आंकड़े भी आश्चर्यजनक रूप में भाजपा की जीत की ओर ही संकेत करते हैं। जहां तक एंटीइंकम्बैंसी की बात है, भाजपा यदि 2017 में गुजरात चुनाव जीत जाती है तो यह इस राज्य में इसकी लगातार छठी जीत होगी। दूसरा बिन्दू यह है कि भाजपा कितने फर्क से यह जीत दर्ज करेगी। 1995 से लेकर अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं उनमें अपनी प्रतिद्वंद्वी की तुलना में औसतन 10 प्रतिशत अधिक वोट हासिल करती रही है। 2012 में जब जीत का अंतर न्यूनतम था, तब इसने कांग्रेस से 9 प्रतिशत अधिक वोट लिए थे और 2017 में जब यह अंतर अधिकतम था तब यह आंकड़ा 11.1 प्रतिशत था। 2002, 2007 और 2012 के चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी ही प्रदेश भाजपा के नेता तथा मुख्यमंत्री थे। 

लेकिन सवाल पैदा होता है कि अब की बार जीत का अंतर कितने प्रतिशत रहेगा? मोदी सरकार के केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बाद जितने भी राज्यों में चुनाव हुए हैं वहां भाजपा की वोट हिस्सेदारी में औसतन 6 प्रतिशत वृद्धि हुई है। इस तरह हम देखते हैं कि ऐतिहासिक रिकार्ड यह संकेत देते हैं कि गुजरात में यदि मत प्रतिशत बढऩे का उदाहरण लागू न हो तो भी भाजपा लगभग 115 सीटें लेकर जीत जाएगी। ऐसे में 2017 में गुजरात में किस घटनाक्रम की संभावना हो सकती है? बेशक अमित शाह कहते हैं कि भाजपा 150 सीटें जीतेगी तो भी आंकड़ों का मेरा विश्लेषण यह है कि भाजपा बहुत आसानी से 120-130 सीटें जीत जाएगी लेकिन यदि 105 सीटों से कम हासिल करके जीतती है तो यह बहुत ही आश्चर्यजनक होगा। 

यदि भाजपा 100 से भी कम सीटों से जीतती है तो इसे भाजपा की पराजय ही समझा जाएगा। यदि ऐसा होता है तो चुनाव के बाद होने वाले विश्लेषणों में मीडिया, राजनीतिज्ञों तथा अर्थशास्त्रियों में अर्थव्यवस्था और विकास ही दो प्रमुख चर्चितविषय बन जाएंगे। यह भी संभावना है कि रिजर्व बैंक जैसी संस्थाएं कड़ी आलोचनाओं का निशाना बन जाएंगी। ये भी दलीलें दी जाएंगी कि नोटबंदी और जी.एस.टी. से अर्थव्यवस्था तो अस्थायी तौर पर पटरी से उतरनी ही थी लेकिन रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था के पतन में सहायक क्यों बना? और इसने उच्च ब्याज दर की नीति क्यों अपनाए रखी? 

यदि भाजपा बहुत आसानी से जीत दर्ज करती है तो राजनीतिक विरोधियों के पास सिवाय अर्थव्यवस्था के अन्य कोई मुद्दा नहीं रह जाएगा। नोटबंदी अब एक वर्ष से पुरानी हो चुकी है और अगली टैक्स वसूली में जी.एस.टी. निश्चय ही सुधर जाएगा। रिजर्व बैंक को विश्वास है कि अगले 3 महीनों में अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और यह फिर से 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल कर लेगी। यदि ऐसा हो गया तो प्रधानमंत्री की लोकप्रियता के विरुद्ध विपक्ष के पास जो सबसे अधिक विनाशक अस्त्र है उसे भी वह  खो बैठेगा। यदि ऐसा नहीं होता तो विपक्ष युद्ध की मुद्रा अपनाए रखेगा।-सुरजीत एस. भल्ला

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