अपनी संतान में ‘डिप्रैशन’ के इन संकेतों को पहचानें

punjabkesari.in Thursday, Sep 10, 2020 - 03:33 AM (IST)

2019  में, 93,000 युवा वयस्कों की मानसिक रोगों, पारिवारिक व रिश्तों की समस्याओं और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के कारण आत्महत्या करने से मृत्यु हुई। डब्ल्यू.एच.ओ. की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 57 मिलियन लोग अवसाद से पीड़ित हैं। अवसाद न केवल वयस्कों बल्कि बच्चों, किशोरों और युवा वयस्कों को भी प्रभावित करता है। 

2017 में किए गए एक सर्वेक्षण में बताया गया कि 22-25 वर्ष के मध्य के 65 प्रतिशत युवा वयस्कों में, जिन्होंने सर्वेक्षण का जवाब दिया था, शुरूआती अवसाद के लक्षण थे। 2012 में डब्ल्यू.एच.ओ. ने ‘मैंटल हैल्थ स्टेटस ऑफ अडोलसैंट्स इन साऊथ-ईस्ट एशिया : एवीडैंस फॉर एक्शन’ रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया था कि भारत में चार में से एक किशोर अवसादग्रस्त था। 

अवसाद एक जटिल बीमारी है जो जैविक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहित कई कारकों के कारण होती है। प्रारंभिक बचपन में होने वाले आघातकारी अनुभव, बार-बार स्थान परिवर्तन, जीवन की नकारात्मक घटनाओं, शैक्षिक असफलताओं, कम उम्र में रिश्ते बनाने से हुई  समस्याओं, मानसिक बीमारी के पारिवारिक इतिहास के साथ-साथ स्कूल और परिवार में तनाव बच्चों और किशोरों में अवसाद अलग-अलग मात्रा से जुड़े हुए हैं। 

बच्चों, किशोरों और युवा वयस्कों में अवसाद को विभिन्न प्रतिनिधित्व के कारण पहचानना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यहां कुछ संकेत दिए गए हैं जिन्हें आप अपने बच्चे और किशोर में देख सकते हैं :
* मित्रों से दूरी या संवाद में कमी
* उदासीनता, रुचि की कमी
* स्कूल में प्रदर्शन में गिरावट
* अत्यधिक भोजन करना या भूख का बिल्कुल न लगना अचानक वजन में बदलाव का कारण बनता है।
* दु:ख, चिड़चिड़ापन, चीखना, बिना किसी कारण के रोना या थोड़ी-सी आलोचना पर तीव्र प्रतिक्रिया करना
* शारीरिक दर्द की अस्पष्टीकृत शिकायतें-सिरदर्द, पेट दर्द, पीठ दर्द
* ध्यान केन्द्रित करने और निर्णय लेने में कठिनाई
* मृत्यु के प्रति अति व्यस्तता- आत्महत्या के बारे में बात करना या मजाक करना
* गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार, जिम्मेदारी की कमी
* शराब, ड्रग्स का इस्तेमाल
* सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग
आप कैसे मदद कर सकते हैं :
* इसके बारे में बात करें लेकिन अधिक सुनें!
* अवसाद एक घोर कलंक के साथ जुड़ा हुआ है, जो किसी व्यक्ति को इसके बारे में मदद लेना तो दूर, बात तक करने से रोकता है। एक बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन में, भारत में अवसाद के शिकार 20-37 प्रतिशत लोगों ने प्रत्याशित भेदभाव (‘प्रयत्न क्यों करें’ प्रभाव) के कारण कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को करने से खुद को रोक दिया था। यह वयस्कों पर किया एक अध्ययन था। 

एक अभिभावक खुले और स्वागतपूर्ण मन से अपने बच्चे को अपनी भावनाओं के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। वे अपनी चुनौतियों को सांझा कर सकते हैं। बिना विचलित हुए अपने बच्चे के साथ आमने-सामने बात करने के लिए प्रतिदिन एक समय निर्धारित करना उनके मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए लंबे समय तक सहायक होगा। उनकी भावनाओं को सुनना और स्वीकार करना व उन्हें सांझा करने के लिए प्रेरित करना अधिक महत्वपूर्ण है। उन्हें अवसाद से  ‘बाहर’ लाने का प्रयत्न या बात नहीं करनी है। आपका ध्यान उपदेश देने पर नहीं, सुनने पर होना चाहिए। 

*दयालु बनें-घर और स्कूल में एक खुला, प्यार भरा, उत्साहजनक माहौल बनाएं। सभी माता-पिता और अभिभावक अपने बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ चाहते हैं लेकिन बचपन के दौरान नकारात्मक अभिभावकीय प्रभावों के संपर्क में आने से, जैसे एक आलोचनात्मक और निंदा करने वाले माता-पिता या शिक्षण शैली अपने बारे में नकारात्मक भावनाओं को जन्म दे सकती है। इससे अवसाद हो सकता है। 

*अपने बच्चे के मित्रों को जानें और उनके मित्र बनें-मैंने सुना है कि गुरुदेव श्री श्री रविशंकर अक्सर उन माता-पिता को यह सलाह देते हैं जो अपने बच्चे के व्यवहार को बदलना चाहते हैं। वह कहते हैं कि अगर हम अपने बच्चे को प्रभावित करना चाहते हैं और उसके किसी व्यवहार को बदलना चाहते हैं, तो हमें उसके दोस्तों को जानना होगा और उन्हें भी प्रभावित करना होगा। 

* अपने किशोरों के प्रति प्रयास को जारी रखें-आपका किशोर या बच्चा आपको बार-बार दूर करने की कोशिश कर सकता है या आपके बार-बार किए गए प्रयासों के बावजूद संवाद नहीं करता है। वे आपके द्वारा दिए गए प्रयासों को अस्वीकार कर सकते हैं लेकिन आपको हार नहीं माननी है! घर पर आमने-सामने बैठकर वार्तालाप करने की दैनिक दिनचर्या को  स्थापित करना, स्क्रीन समय को सीमित करना और एक साथ कुछ गतिविधियां करना इन बाधाओं को तोड़ देगा। 

* उन्हें योग, ध्यान और श्वास से परिचित कराएं : अवसाद, मस्तिष्क और शरीर में एक जैव रासायनिक प्रक्रिया भी है। योग, ध्यान और श्वास की क्रियाएं जैसे सुदर्शन क्रिया को आर्ट ऑफ लिविंग ने सिखाया है जो न्यूरोकैमिकल्स और हार्मोन को रिलीज करने में मदद करता है जो अवसाद को कम कर सकता है। गहरी सांस लेने, अंगों को खींचने के व्यायाम और  विश्राम करने से एंडोफाइन, सैरोटोनिन और जी.ए.बी.ए. जैसे न्यूरोकैमिकल्स  मुक्त होते हैं जो किसी व्यक्ति को प्रसन्न और संतुष्ट बनाते हैं। इन शक्तिशाली समग्र विधियों से उन्हें परिचित कराकर, आप उन्हें उनके जीवनकाल के लिए एक उपहार भी दे रहे हैं। 

* अपना ख्याल रखें- अवसाद न केवल एक व्यक्ति बल्कि पूरे परिवार को प्रभावित करता है। भारत में एक औसत परिवार एक अवसादग्रस्त सदस्य का इलाज कराने के लिए कम से कम 1500 रुपए महीने खर्च करता है। वे अवसाद से गुजर रहे परिवार के सदस्य की देखभाल करने की प्रक्रिया में अत्यधिक मानसिक और शारीरिक दुर्बलता का भी अनुभव करते हैं। स्वयं का ध्यान रखना उतना ही आवश्यक है। याद रखें कि अवसाद एक ला-इलाज स्थिति नहीं है। मन और शरीर की उचित देखभाल और एक सकारात्मक सामाजिक वातावरण में आसानी से इसको ठीक किया जा सकता है। सुदर्शन क्रिया जैसे अवसाद के प्रबंधन के समग्र तरीके उतने ही प्रभावी हैं और इनका कोई नकारात्मक दुष्प्रभाव नहीं है। (लेखिका वरिष्ठ ध्यान शिक्षिका और श्री श्री इंस्टीच्यूट फॉर एडवांस्ड रिसर्च की कार्यकारी निदेशक हैं)-दिव्या कांचीभोतला


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