कैंसर के शुरूआती लक्षणों की पहचान करें

punjabkesari.in Sunday, Feb 04, 2024 - 03:30 AM (IST)

कैंसर मुक्त दुनिया की सोच निश्चित रूप से अपने आप में बेहद अहम है। विश्व कैंसर दिवस मनाए जाने की मूल वजह यही है। वास्तव में यह वह मौका है जब सारी दुनिया एक मंच से इसकी रोकथाम और इसके फैलाव के बारे में विचार करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए साथ जुटती है। ये कोशिशें उन लोगों के लिए बड़ी मदद होती है जो इस घातक बीमारी से पीड़ित हैं। सबको पता है कि यह कितनी भयंकर बीमारी है। इससे हर साल लाखों लोग बेमौत मरते हैं। कैंसर को लेकर इतनी समझ आ जाए कि यह जानलेवा बीमारी बहुत तकलीफ देती है और समय रहते इसके लक्षण और उपचार से जंग जीती जा सकती है। 

2050 तक इस बीमारी के 77 फीसदी बढ़ जाने की आशंका बेहद डरावनी है। यह चिकित्सा जगत के लिए बेचैनी वाली बात है। हालांकि दुनिया भर में इससे निपटने की खातिर अनेकों शोध हुए जो लगातार जारी भी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) की इसके मामलों पर शोध करने वाली अंतर्राष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान संस्था नियमित रूप से कारणों, पीड़ितों की संख्या के साथ रोग निगरानी डाटा प्रकाशित करती है जो बेहद मददगार भी है। लेकिन यह सब तब फायदेमंद होगा जब लोग कैंसर की भयावहता को समझेंगे। 

वर्ष 2022 में 115 देशों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर, कैंसर की देखभाल और वैश्विक स्वास्थ्य कवरेज की जानकारी बताती है कि आर्थिक तंगी और असमानताओं के चलते प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। अकेले वर्ष 2022 में, 2 करोड़ नए मामलों की जानकारी मिली और 97 लाख मौतें हुईं। मौत का अनुपात मरीजों का लगभग आधा है जो, बहुत चिंताजनक है। केवल 39 प्रतिशत देशों में ही, कैंसर मरीजों की देखभाल वहां की स्वास्थ्य सेवाओं का हिस्सा है। यह बहुत कम है। चिंता इस बात की भी है कि 10 प्रकार के कैंसर से दो-तिहाई मौतें हुईं जो हैरान, परेशान करने वाला है। यह आंकड़ा 185 देशों के डाटा से निकला है जो कैंसर के 36 प्रकारों पर आधारित है। परेशान करने वाली बात इसमें तीन प्रकार के कैंसर रोगी सबसे ज्यादा थे जो फेफड़े, स्तन और आंत से संबंधित थे। 

इसे प्रतिशत के लिहाज से देखें तो दुनिया में सबसे ज्यादा करीब 25 लाख फेफड़े संबंधित मामले आए जो कुल मरीजों का 12.4 प्रतिशत है। इसके बाद महिलाओं के स्तन कैंसर की संख्या रही जो 23 लाख के साथ 11.6 प्रतिशत है। तीसरे नंबर पर आंतों का कैंसर रहा जिसके 19 लाख मामले दर्ज हुए जो 9.6 प्रतिशत है। इसी तरह प्रोस्टैट कैंसर के 7.3 प्रतिशत मामले दर्ज हुए जिससे 15 लाख लोग प्रभावित हुए। वहीं पेट के कैंसर के शिकार लोगों की संख्या 9.70 लाख के साथ 4.9 प्रतिशत रही। विशेषज्ञों का मानना है कि फेफड़ों का कैंसर अब आम बीमारी-सा फैल रहा है जिसकी वजह एशियाई देशों में तम्बाकू का अत्यधिक सेवन है। निश्चित रूप से कैंसर दुनिया में बीमारियों से होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। 

सवाल यह है कि इसे पहचानें कैसे? शुरुआती लक्षण समझना आसान है। अचानक से थकान, वजन घटना, चमड़ी का रंग बदलना या बदरंग होना, खाना निगलने में कठिनाई, बेवजह का रक्त स्राव, असामान्य गांठें आदि को गंभीरता से बिना झिझक तुरंत चिकित्सकीय परामर्श करने से इलाज की राहें आसान होती हैं। अमूमन शरीर के किसी हिस्से में असामान्य कोशिकाओं की वृद्धि और इसका अनियंत्रित ढंग से बढऩा या बंटना भी इसकी वजहें हो सकती हैं। 

कोई भी चिकित्सक कैंसर के लक्षण तुरंत समझ जाता है जिससे बिना घबराए सही इलाज से इससे निपटा जा सकता है। अब तो पूरे देश में नि:शुल्क इलाज की अनेकों व्यवस्थाएं हैं। यह सबके बस में हंै। सरकारी अस्पतालों सहित कई योजनाओं में बीमारी कवर है तो हर कहीं स्वयंसेवी संगठन भी आगे आ चुके हैं। बस जरूरत है तो स्वयं के जागरूक होने की। कभी अनुवांशिकता भी वजह होती है तो प्राय: प्रदूषित पर्यावरण भी जिम्मेदार होता है। प्रदूषण के साथ जीने का बेढंगा रवैया और बदला लाइफस्टाइल भी इसके कारक हैं। मौजूदा माहौल में रसायनों के अत्यधिक संपर्क में और उपयोग से भी कैंसर बहुत तेजी से फैल रहा है। इसके लिए जाने-अनजाने हम खुद जिम्मेदार हैं।-ऋतुपर्ण दवे 
         


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