हरियाणा में I.N.D.I.A. के भविष्य पर ग्रहण

punjabkesari.in Monday, Sep 25, 2023 - 05:18 AM (IST)

चौधरी देवीलाल की जयंती पर 25 सितम्बर को कैथल (हरियाणा) में सम्मान दिवस रैली में विपक्षी दिग्गजों के जमावड़े के बीच इंडियन नैशनल लोकदल यानी इनैलो को I.N.D.I.A. में शामिल किए जाने की चर्चा पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की प्रतिक्रिया बताती है कि नए विपक्षी गठबंधन की असली चुनौतियां अभी शुरू होनी हैं। 

इनैलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला की मौजूदगी में जद (यू) के प्रधान राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी. त्यागी ने बताया कि पिछले साल सम्मान दिवस रैली में विपक्षी गठबंधन की नींव पड़ी थी और इस साल इनैलो को इंडिया में विधिवत शामिल कर लिया जाएगा। उसके बाद ही हुड्डा ने कहा कि हरियाणा में कांग्रेस अकेले दम पर भाजपा को हरा कर सरकार बनाने में सक्षम है, इसलिए किसी गठबंधन की जरूरत नहीं। हुड्डा ने यह राय मजबूती से कांग्रेस आलाकमान तक भी पहुंचा दी बताते हैं। बेशक हरियाणा उन राज्यों में है, जहां कांग्रेस आज भी मजबूत है, पर कितनी? लगातार 2 विधानसभा चुनाव कांग्रेस हार चुकी है। 2014 में तो उसे मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी नसीब नहीं हो पाया। इनैलो को वह हैसियत मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला, जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके पुत्र दीपेंद्र, दोनों चुनाव लड़े। फिर भी माना जा सकता है कि हरियाणा में कांग्रेस मजबूत विपक्षी दल है और हुड्डा बड़े जनाधार वाले नेता, पर यह तर्क तो अपने प्रभाव वाले राज्यों की बाबत ‘आप’, तृणमूल कांग्रेस, राजद और सपा भी दे सकते हैं। 

हर राज्य का राजनीतिक परिदृश्य और समीकरण अलग है। यह भी कि विपक्षी एकता का मुख्य लक्ष्य राज्य नहीं, केंद्र की सत्ता से भाजपा को बेदखल करना है। ऐसे में कमोबेश सभी राज्यों में सभी न सही, कुछेक दलों के बीच सीटों का बंटवारा होगा ही। ऐसा नहीं कि हुड्डा राजनीति की व्यावहारिकता नहीं समझते, पर उनकी भी अपनी मुश्किलें हैं। हुड्डा इस मुकाम तक देवीलाल और उनके परिवार का विरोध करते हुए ही पहुंचे हैं। 

1991 में रोहतक लोकसभा सीट से देवीलाल को हरा कर हुड्डा अचानक चर्चा में आए। एक नहीं, तीन बार उन देवीलाल को हुड्डा ने हराया, जो 1989 में देश के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे। 2005 में जब हुड्डा हरियाणा के पहली बार मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने सत्ता देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला से ही छीनी थी। बाद में कई  इनैलो नेता और कार्यकत्र्ता कांग्रेस में आ गए, लेकिन हुड्डा जानते हैं कि देवीलाल परिवार की कमजोरी से वह मजबूत हुए हैं। परिवार और पार्टी, दोनों टूटने के बाद ओमप्रकाश चौटाला और उनके छोटे बेटे अभय, इनैलो के जरिए अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने में जुटे हैं। अभय द्वारा सभी 90 विधानसभा सीटों की पदयात्रा का मकसद इनैलो को फिर से खड़ा करना है। 

बेशक I.N.D.I.A. के विस्तार का फैसला राष्ट्रीय नेतृत्व करेगा और उसमें सभी घटक दलों की भूमिका रहेगी। सम्मान दिवस रैली का निमंत्रण सोनिया गांधी को भी भेजा गया है। अगर वह या उनके प्रतिनिधि के रूप में कोई राष्ट्रीय नेता आता है, तब हुड्डा क्या करेंगे? अभय ने तो कह दिया है कि वह हुड्डा का स्वागत करने को तैयार हैं। इनैलो का दावा तीन का है, पर जो दल राज्य में कई बार सत्तारूढ़ रह चुका हो, उसे गठबंधन में शामिल होने पर एक भी लोकसभा सीट न मिले, यह संभव नहीं लगता। हुड्डा की बड़ी समस्या इनैलो होगी, पर ‘आप’ को भी कम नहीं आंका जा सकता, जो I.N.D.I.A. का प्रमुख घटक दल है और दिल्ली-पंजाब में सत्तारूढ़ भी। पिछला लोकसभा चुनाव ‘आप’ ने जजपा के साथ लड़ा था। उसके हिस्से तीन सीटें आई थीं। यह अलग बात है कि दोनों का ही खाता नहीं खुल पाया, पर कम से कम एक सीट तो ‘आप’ इस बार चाहेगी। आखिर हरियाणा अरविंद केजरीवाल का गृह राज्य है। 

अगर ऐसे ही बंटवारा होता रहा तो कांग्रेस के लिए बचेगा क्या? फिर भी हुड्डा की बड़ी चिंता विधानसभा चुनाव होंगे, जिन पर उनका सब कुछ टिका है। हरियाणा में तो विधानसभा चुनाव, लोकसभा के बाद होंगे, पर जिन राज्यों में पहले हैं, वहां ‘आप’ के दबाव से निपटना कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल होगी। कांग्रेस जानती है कि अभी तक उसकी जमीन खोदती रही ‘आप’ अब उसके जनाधार के सहारे अन्य राज्यों में खुद को खड़ा करना चाहेगी। तेलंगाना और मिजोरम में नदारद ‘आप’ का पूरा फोकस राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर है, जहां कांग्रेस-भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होता रहा है। इसीलिए कांग्रेस चाहती है कि सीट बंटवारे पर इन विधानसभा चुनावों के बाद बात हो, पर अन्य दल भी सत्ता के खेल में नौसिखिए नहीं हैं। वे इस काम को 30 सितंबर तक निपटाने का दबाव बना रहे हैं। 

जाहिर है, जब लोकसभा सीटों पर बात होगी तो जिन राज्यों में उससे पहले विधानसभा चुनाव हैं, वहां की बात भी करनी पड़ेगी। दबाव बढ़ाने के लिए ही ‘आप’ ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 10-10 उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है। राजस्थान में वह बड़ी संख्या में उम्मीदवार उतारना चाहती है। जानना दिलचस्प होगा कि मध्य प्रदेश में ‘आप’ ने जिन 10 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं उनमें से 5 पर कांग्रेस के सिटिंग विधायक हैं। छत्तीसगढ़ में तो उसने और भी कमाल किया है। कांग्रेस की जीती 9 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। आखिर भाजपा के बजाय कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटों पर दावा करने के पीछे ‘आप’ की रणनीति क्या है? यह स्थिति तब है, जब दिल्ली सरकार के अफसरों के तबादले-तैनाती के अधिकार छीन लेने वाले केंद्र के अध्यादेश का विरोध करने पर ‘आप’ ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की राह में रोड़ा न बनने की बात कही थी। ध्यान रहे कि मध्य प्रदेश और राजस्थान की कुछ सीटों पर सपा भी दांव लगाती रही है। रालोद का एकमात्र विधायक तो राजस्थान में कांग्रेस सरकार में मंत्री है।-राज कुमार सिंह 


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