मीडिया और बुद्धिजीवियों से बहुत ‘आहत और निराश’ हूं

Monday, Aug 17, 2020 - 01:22 AM (IST)

राजस्थान सरकार का संकट टल गया। 14 अगस्त को सरकार बच गई परन्तु यह संकट भारतीय लोकतंत्र के लिए कई प्रकार के प्रश्र छोड़  गया। कई दिनों तक राजस्थान में कोई सरकार नहीं थी। सचिवालय खाली था। सभी विधायक शानदार होटलों में थे। सत्ताधारी दल ही नहीं भाजपा को भी अपने विधायक संभालने पड़े। सचिन पायलट को रात के 12 बजे विधायकों को किसी दूसरे होटलों में ले जाना पड़ा।  भाजपा को भी अपने विधायक सोमनाथ भेजने पड़े। एक समाचार आया  कि उनमें से पांच विधायक बिना बताए कहीं चले गए। भाजपा कुछ वसुंधरा समर्थक विधायकों को भी किसी जगह भेजना चाहती थी। जहाज हवाई अड्डे पर खड़ा रहा। विधायकों ने जाने से इंकार कर दिया। 

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में आजादी के 72 वर्षों के बाद यह तमाशा होता रहा। मुख्यमंत्री ने कहा कि विधायक का भाव 25 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। देश के एक विद्वान  लेखक श्री वेद प्रताप वैदिक ने कहा कि अब भाव 30 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। बाद में मुख्यमंत्री बोले अब तो नीलामी बढ़ गई। मुंह मांगा भाव देना पड़ेगा। मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी ने जैसलमेर  से वापसी पर बड़े गर्व से घोषणा की कि भारत के इतिहास में पहली बार उनके 100 विधायक एक साथ आलीशान होटलों में इकट्ठे रहे। 

राजस्थान में लोकतंत्र का केवल मजाक नहीं बल्कि लोकतंत्र का जनाजा निकलता रहा। हर देश भक्त यह सब पढ़ कर आंसू बहाता होगा। जिस देश में विश्व के सबसे अधिक भूखे लोग रहते हैं। ग्लोबल हंगर इन्डैक्स के अनुसार जिस देश में 19 करोड़ लोग रात को लगभग भूखे पेट सोने पर विवश होते हैं, जिस देश में कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है, उस देश के एक बड़े प्रदेश के चुने हुए नेता कुछ महीने तक खरीदने बिकने से बचते छिपते रहे। जनता को यह जानने का अधिकार है कि सभी विधायकों के आलीशान पांच सितारा होटलों में रहने का कुल खर्च कितने करोड़ रुपए आया। चार्टर्ड हवाई जहाजों को मिला कर इतना धन कहां से किसने अदा किया। 

पूरे देश के और विशेष कर राजस्थान के बुद्धिजीवियों ने कोई प्रभावी प्रतिक्रिया नहीं की। मीडिया भी लगभग चुप रहा। किसी मनचले ने राजस्थान सरकार की गुमशुदगी का इश्तिहार भी नहीं लगाया। लोकतंत्र लुटता रहा, देश शर्मसार होता रहा और मीडिया बुद्धिजीवी लगभग चुप रहे। मैं प्रतिदिन प्रमुख समाचार पत्रों के संपादकीय पृष्ठ देखता था। मुझे प्रसन्नता है कि श्री विजय चोपड़ा जी ने पंजाब केसरी में एक संपादकीय लिखा था। इसे छोड़ गंभीरता से कोई बड़ी आलोचना ही नहीं हुई इसीलिए बड़ी नम्रता से कह रहा हूं-‘मीडिया के मित्रो और बुद्धिजीवियो’ मैं आपसे बहुत निराश हूं।’’ 

यह ठीक वैसा ही हुआ जैसा महाभारत में भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था और भीष्म पितामह समेत सभी चुपचाप तमाशा देख रहे थे। युद्ध समाप्त होने के बाद भीष्म पितामह शर-शैय्या पर पड़े थे। शाम के समय सभी उनके पास बैठ कर उनका उपदेश सुन रहे थे। भीष्म पितामह ने कहा कि अच्छे लोगों को सदा हर अन्याय के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए। सुनकर सामने बैठी द्रौपदी की हंसी निकल गई। सबको बहुत बुरा लगा। उससे पूछा तो द्रौपदी खड़ी होकर हाथ जोड़ कर कहने लगी-क्षमा करना-पितामह आप जब यह उपदेश दे रहे थे तो मुझे वह समय याद आया जब भरी सभा में दु:शासन मेरा चीरहरण कर रहा था और आप भी सबके साथ वहां चुप बैठे थे। द्रौपदी की बात सुनकर सन्नाटा छा गया। भीष्म पितामह बोले, ‘‘तुम ठीक कह रही हो, मैं तब गलती पर था। वास्तव में जब विद्वान लोग राज्य के सहारे जीने लगते हैं तो ऐसा ही होता है। मैं भी तब राज्य आश्रित था।’’

लोकतंत्र की द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था 
सच कहता हूं कि मुझे ऐसा ही लग रहा था कि राजस्थान में लोकतंत्र की द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था और सब चुपचाप बैठे थे। यदि सचिन पायलट को दलबदल का आश्वासन न होता तो वह कभी भी उप-मुख्यमंत्री व प्रदेश पार्टी अध्यक्ष पद तक को दाव पर न लगाते। यदि यह आश्वासन मेरी पार्टी भाजपा की तरफ से था तो मैं शर्मसार हूं। यह ठीक है कि विधायकों की मंडी नहीं लगी पर सारा खेल उसी के सहारे था।

भेड़ तो एक बार बिकती है और नेता कई बार
72 वर्षों की आजादी के बाद भी भारत में गरीबी, बेरोजगारी और आॢथक विषमता बढ़ रही है। भारत के बाद आजाद होने वाले कुछ बहुत छोटे देश हम से बहुत आगे बढ़ गए और खुशहाल हो गए। आजाद होते समय जितनी भारत की आबादी थी उतने लोग तो आज गरीबी की रेखा से नीचे हैं। भारत विश्व में सबसे अधिक गरीब और भूखों का देश बन गया। ट्रांसपेरेन्सी इंटरनैशनल के अनुसार विश्व के सबसे अधिक भ्रष्ट देशों में भारत का नाम आ गया। जरा गहराई से सोचें इस शर्मनाक स्थिति का सबसे बड़ा कारण क्या है? देश की व्यवस्था राजनीतिक है सबसे ऊपर राजनेता बैठा है वही पूरे देश को चलाता है और उसी के अनुसार पूरा देश चलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा था- ‘यद् यद् चरति श्रेष्ठा तत् तत् इतरो जन:’ 

अर्थात समाज के बड़े और श्रेष्ठ लोग जिस प्रकार आचरण करते हैं पूरा समाज उसी का अनुकरण करता है। लाखों लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि देश के नेता जब भेड़-बकरियों की तरह करोड़ों रुपए में बिकते हैं और भेड़ तो एक बार बिकती है ये नेता कई बार  बार-बार बिकते हैं। ऐसे नेताओं को देख कर जैसा भारत बन सकता था वैसा बन गया है। देश की सभी समस्याओं का मूल कारण भ्रष्टाचार की राजनीति है और इसका मूल कारण नीलामी पर बिकने वाले ये राजनेता हैं। 

आज नेता शब्द सम्मानजनक नहीं रहा। नेता शब्द का पहला प्रयोग सुभाष चंद्र बोस के लिए किया गया था। कहां वे देश के लिए सब बलिदान करने वाले और कहां आज के ये नेता केवल कुर्सी के लिए करोड़ों में बिकने वाले, आज नेता शब्द गाली बन गया। जार्ज बर्नार्ड शॉ ने शायद ऐसे लोगों के लिए ही एक बहुमूल्य बात कही थी, ‘‘कुछ लोग मरने से पहले मर जाते हैं, दफनाए बाद में जाते हैं।’’ जो झुक जाते हैं बिक जाते हैं वे मरने से पहले ही मर जाते हैं। बस उनकी लाशें चलती रहती हैं। इसी अवमूल्यन की स्थिति को देख कर कविवर नीरज ने अपनी व्यथा इन शब्दों में व्यक्त की थी :- 

नेताओं ने गांधी की कसम तक बेची
कवियों ने निराला की कलम तक बेची
मत पूछ कि इस दौर में क्या-क्या न बिका
इंसानों ने आंखों की शर्म तक बेची 

क्या इस तथ्य को देश के बुद्धिजीवी नहीं जानते-क्या मीडिया इस कठोर सत्य से परिचित नहीं है। मैं यह सोच कर हैरान भी हूं और परेशान भी हूं।  कई महीने तक राजस्थान में लोकतंत्र का इस प्रकार जनाजा निकलता रहा। मेरी तरह कुछ लोग आंसू बहाते रहे परन्तु बुद्धिजीवियों में और मीडिया में कोई बड़ी हलचल नहीं हुई। राजस्थान के बुद्धिजीवी इकट्ठे होते। इसके विरुद्ध आवाज उठाते, कुछ तो करते। कुछ प्रबुद्ध मतदाता कहते कि यह सब करने के लिए उन्होंने इन नेताओं को नहीं चुना है। एक विद्वान ने कहा है कि कोई भी देश बुरा करने वाले दुष्टों के कारण बर्बाद नहीं होता। उस देश में अच्छे लोग जब चुप रहने लगते हैं तो देश बर्बाद होते हैं। कुरुक्षेत्र काव्य में दिनकर जी की ये पंक्तियां याद आ रही हैं :-  समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराधतटस्थ रहने वालो संभलो-जागो नहीं तो भविष्य आप के अपराध पर आपको अवश्य कोसेगा।-शांता कुमार (पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. और पूर्व केन्द्रीय मंत्री)

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