लद्दाख के विशेष दर्जे की मांग कैसे पूरी होगी

punjabkesari.in Tuesday, Mar 12, 2024 - 05:14 AM (IST)

लोकसभा चुनावों की पूर्वबेला पर प्रधानमंत्री मोदी ने नए कश्मीर के निर्माण का आह्वान किया है। दूसरी तरफ गृहमंत्री अमित शाह ने लद्दाख के लोगों से मिलकर विशेष दर्जा देने की मांग पर विचार किया है। लोकसभा के आम चुनावों में लद्दाख की एक लोकसभा सीट पर मतदान होगा, लेकिन वहां पर लोकसभा की 2 सीटें बनाने की मांग हो रही है। लोकसभा की सीट बढ़ाने के लिए 2026 में परिसीमन का प्रावधान है लेकिन उसके लिए जनगणना का काम पहले करना होगा, जिसकी साल 2021 से गाड़ी अटकी हुई है। 

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के साथ राज्य का दो हिस्सों में विभाजन के बाद अक्तूबर 2019 में लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश की मान्यता मिली। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 की समाप्ति पर मोहर लगाते हुए जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के लिए सितम्बर तक चुनाव कराने के आदेश दिए थे, लेकिन लद्दाख राज्य में विधानसभा के गठन के लिए संसद ने कानून में प्रावधान नहीं किए। 

अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद नेतागिरी की वजह से कश्मीर और लद्दाख के लोगों को डर है कि बाहरी लोगों के आने से उनकी नौकरी, जमीन और संस्कृति खतरे में आ सकती हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार लद्दाख की आबादी दिल्ली की ढाई फीसदी से भी कम है। दूसरी तरफ क्षेत्रफल के लिहाज से यह दिल्ली से 40 गुना बड़ा है। लेकिन लद्दाख के आधिकारिक क्षेत्रफल 1.66 लाख वर्ग कि.मी. में सिर्फ 59146 वर्ग कि.मी. ही भारत के नियन्त्रण में है। शेष इलाके पर पाकिस्तान और चीन का अवैध कब्जा है, जहां की सीमाएं गिलगित, बाल्टिस्तान और अक्साई चिन से मिलती हैं। लद्दाख के पूर्व में तिब्बत पर भी चीन ने अवैध कब्जा किया हुआ है। इसलिए सीमावर्ती लद्दाख में स्वायत्तता के लिए हो रहे बड़े विरोध प्रदर्शनों को गम्भीरता से लेने की जरूरत है। 

देश में डबल इंजन सरकार की चर्चा जोरों से होती है लेकिन निचले हिस्से तक विकास के लिए पंचायतों यानी तीसरे इंजन का सशक्तीकरण भी जरूरी है। इसके लिए साल 1993 में संविधान में 73वां और 74वां संविधान संशोधन किया गया था। जम्मू-कश्मीर में साल 2018 में पंचायतों के चुनाव हुए थे। कानून में बदलाव करके सितम्बर 2018 में पंचायतों को 29 मामलों में अधिकार दिए गए थे। उनमें प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक स्कूल और आंगनबाड़ी आदि प्रमुख थे। पंचायतों का 5 साल का कार्यकाल 2023 में खत्म हो गया और उसके बाद नए चुनाव नहीं हुए। केन्द्र सरकार के अनुसार सीटों के पुनर्गठन के बाद पंचायतों का चुनाव होगा। लोकसभा ने जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज के बारे में तीन बिलों को मंजूरी दी है लेकिन लद्दाख में विधानसभा के गठन के लिए कोई व्यवस्था नहीं होने से उलझनें बढ़ रही हैं। लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने अनुच्छेद 371 लागू करने का सुझाव दिया है। 

अनुच्छेद 371 की व्यवस्था : लद्दाख में दो प्रमुख मांगें हैं। पहली, जनता द्वारा चुनी गई सरकार और स्थानीय प्रशासन, जिसके पास अनेक अधिकार हों। दूसरी, भूमि और संस्कृति की रक्षा के साथ सरकारी नौकरी में आरक्षण। दिसम्बर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर मुहर लगाते हुए कहा था कि यह प्रावधान संविधान के अस्थायी और संक्रमणकालीन अध्याय-21 का हिस्सा है। उसी तरह से अनुच्छेद 371 भी 21वें अध्याय का हिस्सा है, जिसमें अस्थायी प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 371 की संवैधानिक व्यवस्था के माध्यम से धार्मिक या सामाजिक समुदाय को भौगोलिक क्षेत्र में स्वायत्तता के विशेष अधिकार हासिल होते हैं। अनेक संविधान संशोधनों से अनुच्छेद 371 के दायरे में कई राज्यों को शामिल किया गया, जिनमें महाराष्ट्र, गुजरात, नागालैंड, असम, मणिपुर, आन्ध्र प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा और कर्नाटक प्रमुख हैं। इसके दायरे में लद्दाख को लाने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत हो सकती है। यह प्रावधान लागू होने पर लद्दाख में स्थानीय संस्कृति के संरक्षण के साथ बाहरी लोगों को सम्पत्ति की बिक्री पर रोक लग सकती है। 

छठी अनुसूची का विकल्प: संविधान की छठी अनुसूची में किसी राज्य के जनजातीय इलाकों को विशेष संरक्षण देने का प्रावधान है। इसके लिए लद्दाख केन्द्र शासित प्रदेश के कानून में संसद से बदलाव किए जा सकते हैं। छठी अनुसूची लागू होने पर लद्दाख में स्वायत्त जिला परिषद या स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद की स्थापना हो सकेगी। उस परिषद में चुने हुए सदस्यों को जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के अधिकार होंगे। परिषद को ग्रामीण प्रशासन, कृषि, वन, शादी, तलाक, उत्तराधिकार जैसे विषयों पर कानून बनाने और उन्हें लागू करने का अधिकार हासिल होगा। सिविल और क्रिमिनल मामलों के लिए परिषद के तहत स्थानीय अदालतों के गठन के लिए भी राज्यपाल मंजूरी दे सकते हैं। प्रशासन चलाने के लिए टैक्स, भूमि-राजस्व, खनिज में रॉयल्टी और व्यापार में कर वसूली का अधिकार भी परिषद को मिल सकता है। स्थानीय स्तर पर टैक्स वसूली के पैसों से परिषद सड़क, अस्पताल, बाजार और स्कूलों का निर्माण करवा सकेगी। 

अनुच्छेद 371 और छठी अनुसूची के प्रावधानों में खासा फर्क है। अनुच्छेद 371 अस्थायी और संक्रमणकालीन प्रावधान है, जबकि छठी अनुसूची के प्रावधान स्थायी प्रकृति के हैं। अनुच्छेद 371 के तहत सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था के संरक्षण पर ज्यादा जोर है। दूसरी ओर छठी अनुसूची के अनुसार विशिष्ट क्षेत्र को मिनी राज्य का दर्जा और अधिकार मिल जाता है, जिसके तहत उन्हें कानून बनाने, टैक्स वसूलने, न्यायालय और विकास कार्य करने के अनेक अधिकार हासिल होते हैं। 

छठी अनुसूची अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) से संचालित है, जिनमें जनजातीय क्षेत्रों के विकास और ग्रांट के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। इसलिए अनुच्छेद 371 की बजाय छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को ज्यादा अधिकार हासिल होंगे। इसके लिए सरकार को संविधान में संशोधन भी नहीं करना होगा। लेकिन लद्दाख के लिए विशेष व्यवस्था को मंजूरी देने के बाद अन्य राज्यों में भी ऐसी मांग बढऩे से राष्ट्रीय एकता के लिहाज से मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद मुख्यधारा में लाने के बाद भारत के मुकुट लद्दाख में जनापेक्षाओं को पूरा करने के लिए ठोस और संतुलित कदम उठाने की जरूरत है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


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