देश को कातिल नेताओं या उनके बेटों से कैसे मिलेगी मुक्ति

Wednesday, Sep 28, 2022 - 04:10 AM (IST)

प्लेटो ने कहा था कि लोकतांत्रिक जीवन में न तो कानून है और न ही व्यवस्था और उन्होंने बिल्कुल सही कहा था। आज के भारत में जहां जिसकी लाठी, उसकी भैंस है और बुलडोजर राजनीति का बोलबाला है, वहीं दशकों से देशवासी राजनीतिक दुराचरण के प्रहार से कराह रहे हैं। हमारे नेता सांसद, विधायक अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट में कानून द्वारा शासन करते हैं और यदि कोई उनके व्यवहार पर प्रश्न उठाता है तो उसे उनका कोपभाजन बनने के लिए तैयार रहना चाहिए।

मैं वी.आई.पी. हूं, तुम कौन? किंतु गत कुछ समय से राजनीतिक पिताओं की यह शक्ति उनके बच्चों में हस्तांतरित होने लगी है। हरियाणा के पूर्व कांग्रेसी मंत्री विनोद शर्मा के बेटे मनु, जिसने जैसिका लाल को सिर्फ इसलिए गोली मार दी थी कि उसने उसे शराब देने से मना कर दिया था क्योंकि बार बंद हो गया था।

लखीमपुर खीरी में एक कुख्यात मामले में भाजपा के केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष द्वारा 8 किसानों को अपनी गाड़ी से रौंदने से लेकर उत्तराखंड के पूर्व भाजपा मंत्री विनोद आर्य के आंखों के तारे पुलकित द्वारा उनके ऋषिकेश के रिसोर्ट में रिसैप्शनिस्ट के रूप में कार्य कर रही 19 वर्षीय अंकिता भंडारी की हत्या, क्योंकि उसने मेहमानों के साथ यौन संबंध बनाने से इंकार कर दिया था। इससे पूर्व हाल ही में राजस्थान में कांग्रेसी मंत्री के पुत्र पर जयपुर में 23 वर्षीय महिला का बलात्कार करने और पी.डी.पी. के पूर्व मंत्री के बेटे पर जम्मू में एक अल्पवयस्क लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप लगा है।

साथ ही ओवैसी की ए.आई.एम.आई.एम. के विधायक के बेेटे द्वारा एक 17 वर्षीय किशोरी के साथ बलात्कार की घटनाएं ऐसे वातावरण को रेखांकित करती हैं, जहां हमारे नेता और उनके बेटे अक्सर बाहुबली की तरह व्यवहार करते हैं और राज्य उनके कुकृत्यों पर मौन रहता है। ये लोग बिल्कुल निर्भय होकर कार्य करते हैं और इस तरह व्यवहार करते हैं कि ‘सीजर’ कोई गलत कार्य नहीं कर सकता और अक्सर कहते हैं यदि उन्होंने कोई गलती की होती तो जनता उनके पिता को नहीं जिताती और इसके द्वारा वे न्यायालय को प्रभावित करने का प्रयास भी करते हैं।

फलत: जनता की शक्ति के नाम पर वे तब तक दुराचार करते रहते हैं जब तक पकड़े न जाएं और उसके बाद कानून घोंघे की गति से अपना कार्य करता है और इसी के चलते अधिकतर निर्वाचन क्षेत्रों और अनेक राज्यों में वे कानून की अवमानना करते हैं। जानबूझ कर किए गए ऐसे दुराचार का उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है, साथ ही वे ‘साड्डा हक’ की धौंस में भी रहते हैं और सत्ता का दुरुपयोग करते हैं। किंतु अब इस अहंकार का विरोध होने लगा है और इसका प्रमाण उत्तराखंड की घटना पर आम आदमी द्वारा किया जा रहा विरोध प्रदर्शन है।

उत्तराखंड की घटना के कारण वहां पर जनांदोलन हो रहा है, हिंसा हो रही है, राष्ट्रीय राजमार्ग और सड़कें बाधित कर दी गई हैं। उस रिसोर्ट का एक हिस्सा जला दिया गया है और हत्यारों को फांसी की सजा देने की मांग की जा रही है।तथापि इससे एक बुनियादी प्रश्न उठता है, जो भारत में महिलाओं की सुरक्षा के बारे में है। कल झारखंड में एक 22 वर्षीय युवती का उसके पति के सामने 6 लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार किया गया और रविवार को उत्तर प्रदेश के बलिया में एक मूक-बधिर लड़की के साथ बलात्कार किया गया।

देश के किसी न किसी भाग में हम प्रतिदिन निर्भया, कठुआ, उन्नाव, मुजफ्फरनगर, सूरत, एटा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, हाथरस जैसी घटनाएं होती देखते हैं। आज हमारे समाज में प्रत्येक 77वें मिनट में एक महिला की हत्या होती है, प्रत्येक मिनट में बलात्कार के 5 मामले सामने आते हैं, महिलाओं को दहेज के लिए जलाया जाता है, बालिका भ्रूण हत्या की जाती है और इस सबका कारण यह है कि वे लड़कियां हैं। इस संबंध में उपचारात्मक कदमों की स्थिति और दयनीय है।

शिकायतकर्ता प्रथम सूचना रिपोर्ट कराने जाता है तो थानेदार उन्हें घंटों तक प्रतीक्षा कराता है, उनके साथ अनुचित व्यवहार करता है। यदि शिकायत किसी शक्तिशाली नेता या उसके बेटे के विरुद्ध होती है तो शिकायत दर्ज करने से मना किया जाता है या पैसे की मांग की जाती है अथवा उसे भगा दिया जाता है। महिला शिकायतकर्ता के साथ छेड़छाड़ की जाती है, बलात्कार किया जाता है और अनेक राज्यों, विशेषकर कुख्यात उत्तर प्रदेश और बिहार में ऐसा देखने को मिला।

बलात्कार के विरुद्ध कानून को कठोर बनाने के बावजूद यौन दुराचार बढ़ता जा रहा है। बलात्कार, महिलाओं के साथ छेडख़ानी, हमले, हत्या, पुलिस द्वारा उत्पीडऩ या परिवार द्वारा चुप कराने की घटनाएं हमेशा समाचार पत्रों की सुॢखयों में रहती हैं और ऐसी घटनाओं पर देश सामूहिक मातम मनाता है। राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के अनुसार प्रत्येक वर्ष यौन हमलों के 39,000 मामले दर्ज होते हैं और प्रत्येक घंटे में एक महिला की हत्या की जाती है।

संयुक्त राष्ट्र के एक सर्वेक्षण में महिलाओं के लिए असुरक्षित देशों की श्रेणी में 121 देशों में से भारत का स्थान 85वां है और हैरानी की बात यह है कि देश में प्रत्येक 10,000 महिलाओं में से 6.26 महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। उत्तर प्रदेश लगातार वर्षों से महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मामले में शीर्ष स्थान पर रहा है। पिछले वर्ष वहां महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के 59,853 मामले और 2018 में 59,445 मामले दर्ज किए गए।

ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो की अद्यतन रिपोर्ट से प्राप्त हुए हैं। बलात्कार के मामले में यह राजस्थान के बाद दूसरे स्थान पर है। राजस्थान में बलात्कार के 5,997 और उत्तर प्रदेश में 3,065 मामले दर्ज किए गए। हत्या और बलात्कार के मामलों में यह तीसरे स्थान पर है। देश में 278 ऐसे मामलों में से 34 उत्तर प्रदेश में हुए हैं। पुरातनपंथी समाज व दूषित पुरुषवादी सोच महिलाओं के साथ ऐसे जघन्य अपराधों को उचित बताती है।

हमारे पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं और युवतियां एक असुरक्षित वातावरण में रह रही हैं, जहां पर उन्हें सैक्स, पुरुष वासना को शांत करने की वस्तु माना जाता है। उन्हें प्रत्येक कदम पर समझौता करना पड़ता है। यही नहीं, निर्भया प्रकरण के बाद महिलाओं को सुरक्षा देने वाले कानून का कार्यान्वयन भी ठोस नहीं रहा। वर्ष 2016 में बलात्कार के 35,000 मामले दर्ज किए गए, किंतु केवल 7,000 मामलों में सजा हुई। यौन उत्पीडऩ के संबंध में कोई कानून नहीं है।

केवल लिंग प्रवेश को ही बलात्कार माना जाता है और हैरानी की बात यह भी है कि महिलाओं के साथ बलात्कार की पुष्टि करने के लिए चिकित्सीय परीक्षण में आज भी राजस्थान के एक अस्पताल में टू फिंगर टैस्ट होता है, जबकि 2013 में इस पर प्रतिबंध लगाया जा चुका था। गृह मंत्रालय ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए उपाय करने और उनमें सुरक्षा की भावना भरने के लिए वर्ष 2018 में महिला सुरक्षा डिविजन का गठन किया ताकि उन्हें सुरक्षित वातावरण में त्वरित और प्रभावी न्याय मिले, तथापि महिलाओं के साथ ङ्क्षहसा और भेदभाव जारी है।

स्पष्ट है कि जब राज्य निष्पक्षता से कार्य करने की अपनी प्रतिबद्धता लागू करता है तो शक्तिशाली लोग कानून का उल्लंघन करने से बचते हैं और कानून का सम्मान करते हैं। समय आ गया है कि केन्द्र और राज्य सरकारें महिला सुरक्षा की समीक्षा करें और अपने-अपने पुलिस बलों की जवाबदेही तय करें। जब तक कानून के रखवालों को कानून के प्रति जवाबदेह नहीं बनाया जाता, तब तक अपराधी निर्भय रहेंगे। पुलिस को बलात्कार के मामले दर्ज करने होंगे और न्यायपालिका ऐसे मामलों में तुरंत सुनवाई करे, न कि उन्हें वर्षों तक लटकाया जाए।

भारत को ऐसे कातिल नेताओं से कैसे मुक्ति मिल सकती है? आज देश के नागरिक नेताओं से जवाबदेही की मांग कर रहे हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम अपनी प्राथमिकताओं को सही करें। समय आ गया है कि देश में उच्च पदासीन और प्रभावशाली लोग इस खतरे को समझें। उन्हें इस बात को समझना होगा कि जब सिर पर आन पड़ती है तो विकल्प आसान नहीं होते। समय है कि नए कदम उठाए जाएं और महिलाओं को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराया जाए, अन्यथा देश में बंदूक का राज होगा।- पूनम आई. कौशिश

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