कितने असुरक्षित हैं मुसलमान, इस पर विचार हो

Tuesday, Aug 22, 2017 - 11:44 PM (IST)

एक विदाई संदेश में पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि मुसलमान देश में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। आत्ममंथन के बदले आर.एस.एस. तथा भाजपा ने उनकी निंदा की है। कुछ ने तो यहां तक कह दिया है कि वे उस देश में जा सकते हैं जहां वे सुरक्षित महसूस करें।

सबसे निर्दयी चोट प्रधानमंत्री की ओर से हुई कि अंसारी अब अपना एजैंडा जारी रख सकते हैं। ऊंचे ओहदे पर बैठे दूसरे कई लोगों ने भी कमोबेश ऐसी ही टिप्पणियां कीं। हिन्दू नेताओं की ओर से रत्ती भर परीक्षण नहीं किया गया और इसलिए मुसलमानों को उनके भय से मुक्ति दिलाने का एक बड़ा मौका गंवा दिया गया।

सच है उपराष्ट्रपति ऐसी टिप्पणी पहले कर सकते थे और पद पर रहते हुए अपना इस्तीफा दे देते लेकिन इससे एक अलग तरह का संकट पैदा हो जाता जिससे निपटना संविधान विशेषज्ञों के लिए कठिन होता। उस तरह देश शक और संदेह की कड़ाही में फैंक दिया जाता।

बहुसंख्यक समुदाय को यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि क्यों हर मुस्लिम नेता जब भी मौका पाता है, अपने समुदाय के कल्याण के बारे में संदेह व्यक्त करता है, खासकर ठीक उसके पहले जब वह पद छोड़ रहा होता है। अंसारी अपनी पसंद के देश जा सकते हैं, वाली टिप्पणी से उन सवालों का जवाब नहीं मिलता है जो उन्होंने उठाए हैं। अंसारी यह नहीं कह रहे थे कि वह व्यक्तिगत तौर पर सुरक्षित हैं या नहीं।

पूर्व  उपराष्ट्रपति सिर्फ मुसलमानों के भय की जानकारी दे रहे थे।अंसारी पर व्यक्तिगत हमले से काम नहीं चलेगा। सरकार के नेताओं को इस पर विचार करना चाहिए कि पूर्व उपराष्ट्रपति ने क्या कहा है और हालत सुधारने के लिए बहुसंख्यक समुदाय को क्या करना चाहिए लेकिन संदेश को उस भावना से नहीं लिया गया जैसे लेना चाहिए था।

रिपोर्ट के मुताबिक आर.एस.एस. प्रमुख ने इस विचार को स्वीकृति दे दी है कि अंसारी खुश नहीं महसूस कर रहे हैं, इसलिए वह कहीं और जा सकते हैं। हिन्दुओं के संगठन के प्रमुख होने के कारण भागवत की टिप्पणी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली टिप्पणी का स्वरूप ले लेती है। दुर्भाग्य से, यह पूरे मामले को हिन्दू बनाम मुस्लिम वाली बहस में बदल देता है।

अंसारी की टिप्पणी सार्वजनिक संपत्ति है और यह देश के उपराष्ट्रपति की ओर से आई है, इसलिए इस पर संसद समेत हर जिम्मेदार मंच पर बहस होनी चाहिए। यह जानने के लिए कि मुसलमान कैसा महसूस कर रहे हैं, केन्द्र सरकार ने अतीत में एक आयोग बनाया था। जस्टिस राजिन्दर स‘चर, जिन्होंने आयोग की अध्यक्षता की थी, ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मुसलमानों के साथ दलितों से भी खराब बर्ताव हो रहा है। उन्होंने पाया कि पश्चिम बंगाल, जहां तीस दशक तक साम्यवादियों ने शासन किया, में सिर्फ 2.5 प्रतिशत शिक्षित मुसलमान थे। समय आ गया है कि यह जानने के लिए एक और आयोग बनाया जाए कि जस्टिस स‘चर की रिपोर्ट से कोई अंतर आया या नहीं।

दुर्भाग्य से अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी अतीत में इसी तरह की टिप्पणियां की हैं। वास्तव में, कुछ हस्तियां भी इसे दोहराने में शामिल हुई हैं। उदाहरण के तौर पर फिल्म अभिनेता आमिर खान की वह टिप्पणी ली जा सकती है जो उन्होंने कुछ वर्ष पहले की थी जब उन्होंने भारत में बढ़ती असहिष्णुता को लेकर अपनी पत्नी किरण राव की ओर से जाहिर किए गए भय के बारे में चर्चा करते समय नेताओं को आड़े हाथों लिया था।

‘‘मैं जब किरण (अपनी पत्नी) से घर पर चर्चा करता हूं तो वह कहती है कि क्या हमें भारत से बाहर चले जाना चाहिए? किरण की ओर से आने वाली टिप्पणी बहुत बड़ी और विनाशकारी है। वह अपने ब‘चों को लेकर भयभीत होती है। उसे डर लगता है कि उसके चारों ओर कैसा माहौल होगा। वह रोज अखबारों को खोलने से डरती है। इससे यही संकेत मिलता है कि बढ़ती बेचैनी की भावना है। यह चेतावनी के अलावा बढ़ती निराशा भी है। आपको लगता है ऐसा क्यों हो रहा है। आप उदास महसूस करते हैं। यह भावना मेरे में भी मौजूद है,’’आमिर ने कहा।

एक पुरस्कार  समारोह में बोलते समय आमिर ने सृजनशील लोगों की ओर से पुरस्कार लौटाए जाने का भी यह कहकर समर्थन किया कि यह असंतोष या निराशा जाहिर करने का उनका तरीका है। ‘‘जो लोग हमारे चुने हुए प्रतिनिधि हैं, जिन्हें हमने 5 वर्ष तक अपनी देखभाल के लिए चुना है, राज्य या केन्द्र में... जब लोग कानून हाथ में लेते हैं तो हम उनकी ओर देखते हैं कि वे कड़ा कदम उठाएंगे, कड़ा बयान देंगे, कानूनी प्रकिया को तेज करेंगे। जब हम ऐसा देखते हैं तो हमें सुरक्षा की भावना होती है लेकिन हम ऐसा नहीें होता देखते तो हमें असुरक्षा की भावना होती है,’’ प्रसिद्ध अभिनेता ने कहा।

स्वाभाविक है, भाजपा ने इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया दी और आमिर की टिप्पणी को पूरी तरह खारिज कर दिया। ‘‘वह भयभीत नही हैं, वह लोगों को डरा रहे हैं। भारत ने उन्हें हर तरह का सम्मान दिलाया। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने उन्हें स्टार बनाया,’’ भाजपा के प्रवक्ता शाहनवाज खान ने कहा। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने मजबूती से अभिनेता का बचाव किया और कहा कि वे लोग क्यों परेशान महसूस कर रहे हैं, यह जानने के लिए सरकार को उनके पास पहुंचना चाहिए।

राहुल ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘सरकार और मोदी जी से प्रश्न करने वालों को देशद्रोही, राष्ट्रविरोधी और प्रेरित बताने के बदले सरकार के लिए यही करना बेहतर होगा कि वह यह जानने के लिए कि उन्हें क्या परेशान कर रहा है, उन तक पहुंचे’’ लेकिन भाजपा के प्रवक्ताओं ने हमेशा की तरह राहुल के बयान की निंदा यह कह कर की कि राष्ट्र को बदनाम करने के लिए साजिश हो रही है।

वास्तविक समस्या मजहब के आधार पर रैडक्लिफ की ओर से खींची गई रेखा है। विभाजन के बाद हुई ङ्क्षहसा के बारे में उसने जरूर अफसोस जाहिर किया लेकिन इससे रेखा नहीं बदली। रेखा के उस पार जो हैं वे पाकिस्तान के लोग हैं और धीरे-धीरे इस्लामिक दुनिया का हिस्सा बनते जा रहे हैं। कट्टरपंथ ने अपनी मजबूत पकड़ बना ली है।

वास्तव में सीमा के उस पार हिन्दू या सिख नहीं हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों में बहुमत ईसाइयों का है। उनकी शिकायत है कि चर्चों को तोड़ दिया गया है और जबरन धर्मांतरण होते हैं। लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री जितना कर सकते हैं, उतना करते हैं।

अंसारी के शब्दों की काफी प्रासंगिकता है क्योंकि एक नरम किस्म का हिन्दुत्व भारत में फैल रहा है। देश चलाने वाले लोग विभाजन को बढ़ा रहे हैं क्योंकि हिन्दू और मुसलमान के आधार पर लड़े गए चुनाव में हिन्दुओं को फायदा मिलना तय होता है। सैकुलर भारत के ताने-बाने को एक-एक कर तोड़ा जा रहा है। यह अफसोस की बात है कि पिछले 70 वर्षों से पालन किया जा रहा सैकुलरि’म भारी खतरे में है।

Advertising