‘संविधान हत्या दिवस’ को कैसे देखें
punjabkesari.in Friday, Jul 19, 2024 - 05:43 AM (IST)
25 जून यानी आपातकाल लगाने की तिथि को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने की नरेंद्र मोदी सरकार की घोषणा पर आ रही प्रतिक्रियाओं में कुछ तो स्वाभाविक है किंतु कुछ आश्चर्य में भी डालने वाली हैं। कांग्रेस पार्टी का इसके विरुद्ध अलग-अलग प्रकार का तर्क समझ में आता है। लेकिन जिन नेताओं और पार्टियों ने आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष किया, जिनमें से कई की पहचान आपातकाल विरोधी संघर्ष से ही बनी वह भी खुलकर आपातकाल की आलोचना के लिए तैयार नहीं है।
ऐसा वातावरण बना है मानो आपातकाल के विरुद्ध केवल भाजपा हो और शेष पार्टियों ने उसे सही मान लिया हो। आपातकाल अगर सही है और उस दिवस को याद नहीं किया जाए तो आज अनेक नेता और पाॢटयां, जो वहीं से उभर कर सत्ता में आए और आज भी हैं, उन सबकी पूरी राजनीति अवैध और अनैतिक हो जाएगी। चूंकि गृह मंत्रालय ने सरकारी गजट में इसे शामिल कर दिया है, इसलिए जब तक कोई सरकार इसको निरस्त नहीं करती यह अब सरकारी कार्यक्रमों का अंग बन चुका है।
स्वयं गृहमंत्री अमित शाह ने इसके बारे में एक्स पर पोस्ट डाला एवं एक पृष्ठ का वक्तव्य भी जारी किया। साफ है कि सरकार के अंदर कई दिनों से इस पर मंथन चल रहा था। ऐसा नहीं हो सकता कि सुबह विचार किया गया हो और शाम को गजट जारी हो जाए। सामान्य तौर पर यह निष्कर्ष निकालना गलत नहीं है कि मोदी सरकार ने कांग्रेस एवं विपक्ष को जैसे को तैसे की भाषा में जवाब देने के लिए संविधान हत्या दिवस की घोषणा की है। जब कांग्रेस सहित ज्यादातर विपक्ष भाजपा संविधान खत्म कर देगी तथा संविधान बचाओ को राजनीति और चुनाव का बड़ा मुद्दा बनाते हैं तो भाजपा के लिए इसका प्रभावी प्रत्युत्तर देना स्वाभाविक है। सब जानते हैं कि इस देश के वर्तमान ढांचे में संविधान को खत्म कर देना या उसका गला घोंट देना और पूरे राजनीतिक, प्रशासनिक ढांचे को आमूल रूप से बदल देना संभव नहीं है। यह झूठ चुनाव में मुद्दा बना तथा एक बड़े वर्ग तक पहुंचा। संविधान खत्म होने के साथ ही आरक्षण खत्म करने की भी बात थी और दोनों एक-दूसरे से सन्नद्ध थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति अटैक इज द बैस्ट डिफैंस यानी आक्रमण सबसे बड़ा बचाव की रही है। इस बार के चुनाव में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा को रक्षात्मक या बचाव की मुद्रा में ज्यादातर समय रहना पड़ा। भाजपा मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को समझाने में सफल नहीं रही कि विपक्ष गलत मुद्दा बना रहा है। चुनाव परिणाम के बाद निश्चय ही इस पर विचार हुआ है। ध्यान रखिए कि 25 जून को सरकारी कार्यक्रम भले आज घोषित किया गया हो किंतु हर वर्ष देश भर में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो आपातकाल के काले अध्याय को याद करते हुए कार्यक्रम रखते हैं। अनेक पार्टियों के नेता उसमें शामिल होते रहे हैं और आज भी होते हैं। आज सपा इस मामले पर खामोश है या प्रश्न उठा रही है किंतु स्वयं मुलायम सिंह यादव आपातकाल विरोधी कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री रहते हुए भी शामिल होते रहे। 5 जून को जयप्रकाश जी का संपूर्ण क्रांति दिवस भी अलग-अलग स्थानों में हर वर्ष मनाया जाता है।
निश्चित रूप से इस मामले में भाजपा की रणनीति यही है कि देश के आम लोग समझ लें कि संविधान को खत्म करने की कोशिश किसने की। इस देश में अगर किसी काल में संविधान व्यवहार में खत्म था तो वह आपातकाल का दौर ही था। यद्यपि 25 जून ,1975 को आपातकाल भी संविधान की धारा 352 के तहत ही लगा था। आपातकाल लगने के बाद व्यवहार में सारी शक्तियां एक व्यक्ति यानी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी में निहित हो गई थीं। सरकारी टैलीविजन दूरदर्शन तथा आकाशवाणी के बारे में कुछ बताने की आवश्यकता नहीं। प्रधानमंत्री कार्यालय संजय गांधी के निवास या फिर सूचना प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल के आवास एवं कार्यालय से ही उसका संचालन होता था। समाचार पत्र छापने से पहले सैंसरशिप अधिकारी को भेजा जाता था जो बताता था कि किस समाचार में क्या बदलना है, कितना छाप सकते हैं और तभी वह प्रैस में छपने जाता था।
वैसे जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता में आने के बाद आंतरिक आपातकाल लगाने का प्रावधान संविधान से लगभग खत्म कर दिया। यह प्रचार भी झूठ है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा एक व्यक्ति के शासन की स्थिति संविधान में परिवर्तन कर ला सकती है। एक बार आपातकाल लगाने का परिणाम देश भुगत चुका है और स्वयं कांग्रेस पार्टी भी चुनाव में बुरी तरह पराजित हुई। इतने वर्षों बाद संविधान हत्या दिवस मनाने की प्रासंगिकता और उपयोगिता पर भी प्रश्न उठाए जा रहे हैं। नि:संदेह, आपातकाल के बाद सत्ता में आई जनता पार्टी की सरकार या उसके बाद जो भी गैर-कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई उसने ऐसा निर्णय नहीं किया। किसी ने नहीं किया इसलिए आगे वैसा नहीं किया जाए इस तर्क को भी स्वीकार नहीं किया जा सकता।
जब आप संविधान खत्म करने का आरोप लगाते हैं तो इस पर पूरी बहस होनी चाहिए और संविधान से छेड़छाड़ या संविधान के साथ के दुरुपयोग के जितने अवसर हैं वह सब देश के सामने आने ही चाहिएं। 50 वर्ष वह अवसर होता है जब हम उस घटना को लेकर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विचार करते हैं, उससे सीख लेते हैं, प्रेरणा देते हैं और उनसे जुड़े व्यक्तियों को उनकी भूमिका के अनुरूप याद करते हैं।-अवधेश कुमार