‘बेजुबान’ लोगों को कैसे ‘जुबान’ दी जाए

Saturday, Mar 13, 2021 - 03:01 AM (IST)

एक वेल्श अमरीकी पत्रकार और लेखक जॉन रॉनसन ने एक बार कहा था कि, ‘‘सोशल मीडिया के बारे में बहुत अच्छी बात यह थी कि मैंने बेजुबान लोगों को कैसे आवाज दी।’’ हालांकि समस्या तब उत्पन्न होती है जब बेजुबानों द्वारा महत्वपूर्ण उच्चारण  उठता है और उसे शासकों द्वारा पसंद नहीं किया जाता। आज के तेजी से बढ़ रहे ध्रुवीकृत वातावरण में जो हम चारों ओर देखते हैं उसके लिए भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी (आई.टी.) ने एक जवाबदेही का चक्र उसके इर्द-गिर्द लगा दिया है। उन्होंने राजनीतिक नियंत्रण बढ़ा दिया है। कानून एवं न्याय तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कुछ नए नियमों का पालन किया और उन्हें एक कोमल स्पर्श वाले निरीक्षण तंत्र के रूप में पेश किया। 

नए नियमों को प्रगतिशील और उदार के रूप में बुलाया गया। सरकार के डिजिटल मीडिया दिशा-निर्देशों का सम्पूर्ण उद्देश्य है कि सोशल मीडिया पर गाली देना बंद किया जाए और इसका पालन ऑनलाइन न्यूज और मीडिया प्लेटफार्म द्वारा भी किया जाए। नए नियम सामग्री के 10 वर्गों के बारे में बताते हैं जिनकी सोशल मीडिया प्लेटफार्म से मेजबानी करने की उम्मीद है। इनमें वह सामग्री शामिल है जिससे एकता, अखंडता, रक्षा, सुरक्षा या सम्प्रभुता को खतरा है। नए नियम किसी भी अपमानजनक अश्लील सामग्री को भी रोकते हैं।

लिंग के आधार पर अपमान करना या परेशान करना भी शामिल है। इसके अलावा परिवाद, नस्लीय या नैतिक रूप से आपत्तिजनक धनशोधन या उससे संबंधित प्रोत्साहन भी शामिल है। जबकि आई.टी. अधिनियम के तहत दस्तावेजों, कम्प्यूटर सिस्टम में हैकिंग,ऑनलाइन गलत बयानी, धोखाधड़ी के लिए सामग्री का प्रकाशन अपराध है। इन मामलों में दंड के प्रावधान भिन्न हैं जिसमें 3 वर्षों से लेकर ज्यादा से ज्यादा 7 वर्षों की कैद के साथ जुर्माना भी शामिल है जो जुर्माना 2 लाख से शुरू होता है।

यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि अधिनियम का मतलब सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर जवाबदेही लाना है। इससे कोई असहमत नहीं होगा कि गलत सूचनाओं, फेक न्यूज तथा ऑनलाइन प्रचार की जांच के लिए कुछ आचार संहिता या नियम आवश्यक हैं। मूल सामग्री के प्रकाशक कुछ गंभीर प्रश्र उठाते हैं। विशेष रूप से केवल उचित प्रतिबंधों पर काम करना आवश्यक है। वकील के रूप में मालविका राघवन कहती हैंं कि, ‘‘अधिक ऑनलाइन शिष्टाचार के लिए हमें गहन जुड़ाव और सावधान कानून की आवश्यकता है।’’ 

सोशल मीडिया के दुरुपयोग के मामले में रविशंकर प्रसाद बहुत ही स्पष्टवादी हैं। एक साक्षात्कार में वह कहते हैं कि दिशा-निर्देशों का सोशल मीडिया से लेना-देना नहीं है कि इसका उपयोग कैसे किया जाना चाहिए या नहीं। इसे सोशल मीडिया के दुरुपयोग और अपशब्द की जांच करना है। उन्होंने दृढ़ता से कहा कि सरकार अब इंटरनैट साम्राज्यवाद को स्वीकार नहीं करेगी। विश्व की कुछ चुङ्क्षनदा तकनीकी कम्पनियां यह यकीनी बनाएं कि वे स्थानीय विचारों, संस्कृति, परम्परा और भावनाओं का सम्मान करेंगी। इसलिए वह पूछते हैं कि सोशल मीडिया के 130 करोड़ से अधिक उपयोगकत्र्ताओं की शिकायतों का निवारण नहीं होना चाहिए? उन्होंने स्पष्ट किया कि इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी। इन शिकायतों के निपटारे के लिए प्लेटफार्म है। 

इस मुद्दे पर आई.टी. मंत्री विवादित नहीं हो सकते। ऑनलाइन समाचार मीडिया और वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म को निश्चित रूप से विनियमित करना वांछनीय नहीं है। यहां जरूरत विश्व स्तर पर पहरा देने की है जिसे ऑनलाइन निगरानी और सैंसरशिप का चीनी माडल कहते हैं। वास्तव में हमें निरंकुश दृष्टिकोण के खिलाफ रक्षा करने की आवश्यकता है। भारत में इंटरनैट यूजर्स को बिगटैक की जवाबदेही को यकीनी बनाने में कोई आपत्ति नहीं है। मगर यह सब राजनीतिक नियंत्रण की कीमत पर नहीं होना चाहिए। निश्चित तौर पर भारतीय लोकतंत्र जीवंत है। आज के दौर में बदलते हुए मीडिया के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म यहां तक कि जमीनी स्तर पर मतभेद के विचारों के लिए स्थान उपलब्ध करवाता है। 

उन्होंने दबी हुई आवाजों को फैलाया है और इस प्रक्रिया में समुदायों को और सशक्त किया है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि इन प्लेटफार्मों का बिग टैक द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। यहां यह कहना भी लाजिमी है कि बिग टैक को और ज्यादा जवाबदेह होने की जरूरत है। केंद्र के आई.टी. नियम निश्चित तौर पर डिजिटल मीडिया और ओ.टी.टी. (ओवर द टॉप) और ज्यादा जवाब देने योग्य बनाएंगे। ऑन लाइन आवाजें तथा अवांछित राजनीतिक नियंत्रण के मध्य में चुनौतियां बरकरार हैं।-हरि जयसिंह
    

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