10 मिनट की फूड डिलीवरी कितनी सार्थक?
punjabkesari.in Friday, Apr 11, 2025 - 05:49 AM (IST)

आज की तेज-रफ्तार दुनिया में, 10 मिनट फूड डिलीवरी सेवाएं एक क्रांति की तरह उभरी हैं। लोग अपने व्यस्त जीवन में समय बचाने के लिए इन सेवाओं पर निर्भर हो रहे हैं। स्विगी, जोमैटो और अन्य स्टार्टअप्स ने ‘हाइपरलोकल डिलीवरी’ के नाम पर भोजन को रिकॉर्ड समय में ग्राहकों तक पहुंचाने का वादा किया है। लेकिन क्या यह सुविधा वाकई इतनी लाभकारी है, जितनी दिखाई देती है? दस मिनट फूड डिलीवरी कितनी सार्थक है? विज्ञापन की चकाचौंध भरी दुनिया में इस सेवा के ऐसे कौन से बिंदू हैं जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। जब भी कभी किसी रैस्टोरैंट पर दस मिनट की डिलीवरी का ऑर्डर आता है तो उन पर इतना अधिक दबाव होता है कि वे अक्सर खाने की गुणवत्ता पर ध्यान देने की बजाय जल्दबाजी में ऑर्डर तैयार करते हैं। ताजा सामग्री का उपयोग, स्वच्छता और स्वाद को भी नजरअंदाज कर दिया जाता है।
उदाहरण के लिए, एक बर्गर जो सामान्य रूप से 20 मिनट में तैयार होता है, उसे 10 मिनट में बनाने के लिए पहले से तैयार पैटीज या कम गुणवत्ता वाली सामग्री का सहारा लिया जाता है। इससे न केवल स्वाद प्रभावित होता है, बल्कि पोषण मूल्य भी कम हो जाता है। कई बार, जल्दबाजी में तैयार भोजन में स्वच्छता के मानकों की भी अनदेखी हो जाती है, जिससे खाद्य जनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। दस मिनट डिलीवरी का सबसे बड़ा नुकसान डिलीवरी कर्मचारियों के कंधों पर भी पड़ता है। इन कर्मचारियों को असंभव समय सीमा के भीतर ऑर्डर पहुंचाने के लिए दबाव झेलना पड़ता है। सड़कों पर तेज रफ्तार से गाड़ी चलाने के कारण दुर्घटनाओं का जोखिम बढ़ जाता है। एक अध्ययन के अनुसार पिछले 5 वर्षों में भारत में डिलीवरी कर्मचारियों की दुर्घटनाएं 30 प्रतिशत तक बढ़ी हैं और इसका एक बड़ा कारण ‘हाइपर-फास्ट डिलीवरी’ मॉडल है। इसके अलावा, ये कर्मचारी अक्सर कम वेतन, बिना किसी स्वास्थ्य/दुर्घटना बीमा के और अनिश्चित नौकरी की स्थिति में काम करते हैं। उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है।
तेज डिलीवरी का पर्यावरण पर भी गंभीर असर पड़ता है। डिलीवरी वाहनों की संख्या में वृद्धि से कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है। इसके अलावा, दस मिनट डिलीवरी के लिए छोटे-छोटे ऑर्डर अलग-अलग वाहनों से पहुंचाए जाते हैं, जिससे ईंधन की बर्बादी होती है। पैकेजिंग में उपयोग होने वाला प्लास्टिक और डिस्पोजेबल कंटेनर भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, भारत में फूड डिलीवरी उद्योग हर साल लाखों टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है, जिसका बड़ा हिस्सा रिसाइकिल नहीं हो पाता। दस मिनट डिलीवरी मॉडल इस समस्या को और बढ़ाता है, क्योंकि जल्दबाजी में पर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग पर ध्यान नहीं दिया जाता। दस मिनट डिलीवरी मॉडल बड़े डिलीवरी प्लेटफॉम्र्स द्वारा संचालित होता है, जो रेस्तरांओं से भारी कमीशन वसूलते हैं। छोटे और स्थानीय रेस्तरां, जो पहले से ही कम मार्जिन पर काम करते हैं, इस दबाव को झेल नहीं पाते। कई बार उन्हें अपनी कीमतें बढ़ानी पड़ती हैं या गुणवत्ता से समझौता करना पड़ता है।
इसके परिणामस्वरूप, कई छोटे रेस्तरां बंद हो रहे हैं, और बाजार पर कुछ बड़े खिलाडिय़ों का दबदबा बढ़ रहा है। यह न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है, बल्कि ग्राहकों के लिए विकल्पों की विविधता को भी कम करता है।10 मिनट डिलीवरी ने लोगों की खाने की आदतों को भी बदल दिया है। अब लोग घर पर खाना बनाने या बाहर खाने की बजाय तुरंत डिलीवरी का विकल्प चुनते हैं। इससे न केवल पारंपरिक खाना पकाने की कला खतरे में पड़ रही है, बल्कि लोग अस्वास्थ्यकर खाने की ओर भी बढ़ रहे हैं। फास्ट फूड और प्रोसैस्ड भोजन, जो जल्दी तैयार हो जाता है, इस माडल में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। इसका दीर्घकालिक प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है, जिसमें मोटापा, मधुमेह और हृदय रोग जैसी समस्याएं शामिल हैं। दस मिनट डिलीवरी पूरी तरह से तकनीक पर निर्भर है। ग्राहकों को बार-बार ऐप का उपयोग करना पड़ता है, जिससे उनकी निजी जानकारी जैसे पता, फोन नंबर और भुगतान विवरण इन प्लेटफाम्र्स के पास जमा हो जाती है। डेटा उल्लंघन की घटनाएं पहले भी सामने आ चुकी हैं, और यह जोखिम बना रहता है।-रजनीश कपूर