आखिर कब तक होता रहेगा सेना के जवानों के साथ ऐसा बर्ताव

punjabkesari.in Thursday, Jan 19, 2017 - 11:33 PM (IST)

गत सप्ताह सैनिकों ने अपने वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए हैं। उन्हें दुनिया भर से हर तरह के लोगों से विभिन्न प्रतिक्रियाएं मिली हैं। ये जवान, जो हफ्ते के सातों दिन 24 घंटे हमारी सुरक्षा के लिए सीमाओं पर खड़े रहते हैं, के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जा रहा है।

उन्हें जो भोजन परोसा जा रहा है, वह घरों में हमारे कुत्तों को खिलाए जाने वाले भोजन से भी खराब है। उनके वस्त्र उन तापमानों के अनुकूल नहीं होते, जहां वे अपनी सेवा दे रहे हैं। उनके रहने की स्थितियां बहुत खराब हैं और यदिकोई साहसी जवान इन परेशानियों से तंग आकर बोलनेकी हिम्मत करता है तो निश्चित तौर पर उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। सेना में इसे अनुशासनहीनता कहा जाता है।

यहां यही सिखाया जाता है कि चुपचाप यातनाएं सहते रहो। किसी जवान द्वारा अपनी समस्या उठाए जाने के बाद अन्य, जो इस बाबत बात करने बारे सोचते भी हैं, उनसे पहले ही निपट लिया जाना चाहिए। यह बहुत ही अफसोसनाक है। इस देश में लोगों को बोलने की स्वतंत्रता की आशा की जाती है।

अब वह कहां गायब हो गई है? इस युग में किसी भी क्षेत्र में ऐसी स्वतंत्रता नहीं है। वे अधिकारी आपको सजा देते हैं, जिनसे आप खुश नहीं हैं, फिर उसके बाद कार्यस्थल पर समस्याएं उठ खड़ी होती हैं। आपके भीतर डर पैदा कर दिया जाता है कि अपना मुंह बंद रखो और कोई ऐसी बात न कहो, जो सरकार को पसंद नहीं या उसके अनुकूल न हो। उनके भीतर परमात्मा का डर भर दिया जाता है और निरंतर यही कहा जाता है कि  यह उनका काम है और उन्हें स्थितियों के अनुसार खुद को ढालना है।

फिर भी कई जवान अपने वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उनसे करवाए जाने वाले घरेलू कार्यों बारे खुलकर बोलने लगे हैं। यहां तक कि उनसे सफाई आदि का कार्य तथा जूते भी पालिश करवाए जाते हैं। कितनी बेहूदा बात है। मगर प्यारे मित्रो, ऐसा सभी सेवाओं में होता है।

नौकरशाहों के लिए काम करने वाले अर्दलियों को अधिकारियों की पत्नियों के लिए उनके घरों में पसीना बहाते देखा जा सकता है। कैसे उनमें से कुछ के अशिष्ट बच्चे इन गरीबों के साथ व्यवहार करते हैं। केवल इतना ही नहीं इन अर्दलियों की पत्नियोंतथा बच्चों को भी इन अधिकारियों के निजी घरों में काम करना पड़ता है। वे बोलने की हिम्मत नहीं करते क्योंकि उनकी सी.आर. रिपोटर््स खतरे में पड़ सकती है।

बड़े दुख की बात है कि सेनाध्यक्ष मीडिया के सामने आए हैं और आदेश दिया है कि कोई भी जवान अथवा अधिकारी अपनी समस्याओं को उठाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर सकता। वह क्या सोचते हैं कि इन जवानों को कहां तथा किसके पास जाना चाहिए? वे किससे शिकायत करें?

अपने कुशलक्षेम के संबंध में अपनी चिन्ताएं उठाने के लिए उनके पास कोई स्थान अवश्य होना चाहिए। आखिर वे सर्वाधिक कठिन परिस्थितियों में रहते हैं। इसका परिणाम हताशा के रूप में निकल सकता है और हम जवानों द्वारा विभिन्न जगहों पर आत्महत्याओं तथा खीझपूर्ण व्यवहार के बारे में सुनते रहते हैं। कठिनतम मौसम तथा परिस्थितियां वे तो किसी भी तरह की विलासिता के बारे में सोच भी नहीं सकते।

वे हमारी सुरक्षा का ध्यान रखते हुए जीवित रहते हैं। हमें उनको तथा उनके सारे परिवार के साथ विशेष व्यवहार करना तथा सुविधाएं देनी चाहिएं। इसकी बजाय वे अपना जीवन इस तरह से जीते हैं, जैसे हम उन पर कोई अहसान कर रहे हों।

किसी समय हमारे फौजियों को उनके गांव में जाने पर सैल्यूट किया जाता था। यहां तक कि आज भी एक सामान्य नागरिक किसी जवान अथवा उसके परिवार के संकट में होने पर खुशी-खुशी अपनी जमा पूंजी का कुछ हिस्सा उसे दे देगा। यदि हमें सुरक्षा बलों में कहीं भी भ्रष्टाचार बारे सुनाई देता है तो भारत माता के नागरिक होने के तौर पर हमें शर्म महसूस होती है। चाहे वह सेना हो, नौसेना, वायुसेना अथवा पुलिस।

हम खुद को ठगा हुआ तथा आहत महसूस करते हैं। हमारे सम्माननीय सुरक्षा बलों में इन गड़बड़ों के लिए हम राजनीतिक वर्ग को जिम्मेदार मानते हैं। क्यों नहीं वह सुरक्षा बलों के शीर्ष अधिकारियों को खींचते और यह सुनिश्चित करते कि हमारे जवानों तथा उनके परिवारों को बेहतरीन सुविधाएं मिलें। यदि उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाए तो जनरल को उन्हें सोशल मीडिया का इस्तेमाल न करने की चेतावनी नहीं देनी पड़ेगी। आखिरकार वे अपनी इच्छा से हमारे लिए अपनी जान दे देते हैं।

हमारी सेना को सभी आपातकाल के दौरान तथा आवश्यकतानुसार बुलाया जाता है। जिस पल जनता को पता चलता है कि स्थिति को संभालने के लिए सेना को बुला लिया गया है, स्थानीय लोग सुरक्षित महसूस करते हैं। उन्होंने कभी भी हमें निराश नहीं किया और अपने जीवन तथा परिवारों की परवाह किए बिना लड़े हैं। चाहे वह कोई अग्निकांड हो, किसी कुएं में कूदना हो अथवा भीड़ को नियंत्रित करना हो, सेना सर्वश्रेष्ठ है।

कारगिल युद्ध के दौरान हमारे शहीदों के परिवारों के साथ पैट्रोल पम्पों तथा कई अन्य सुविधाओं का वायदा किया गया था। हाल ही में हमने इस पवित्र व्यवसाय में भी भ्रष्टाचार की कहानियां सुनी हैं।  ‘सैन्य विधवा’ के अधिकार किसी अन्य को दे दिए गए। आदर्श हाऊसिंग घोटाला तथा ताबूत घोटाला इसके कुछ उदाहरण हैं। 

हमारे नायकों की विधवाओं को वह नहीं मिलता, जो उनका अधिकार है। ‘एक रैंक एक पैंशन’ का ड्रामा भी अनावश्यक था। सरकार को गौरवपूर्ण ढंग से यह देना चाहिए था। यह शर्म की बात है। 21वीं शताब्दी में सोशल मीडिया के युग में जनरल आर्मी वालों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल न करने की चेतावनी देता है।

यह व्यवहार एक आम आदमी की समझ से परे है। मगर मैं आशा करती हूं कि कुछ और बहादुर सैनिक अपनी समस्याओं को सांझा करेंगे ताकि प्रधानमंत्री तथा आम आदमी उनके लिए लड़ सके। 


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