हिन्दी कैसे बने वैश्विक भाषा
punjabkesari.in Wednesday, Jan 10, 2024 - 07:03 AM (IST)
भारत की राजभाषा हिन्दी विश्व की प्राचीन, समृद्ध एवं सरल भाषा है, जो आज न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनिया के कई देशों में बोली जाती है। विश्वभर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए वातावरण बनाने, हिन्दी के प्रति अनुराग उत्पन्न करने तथा अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी को प्रस्तुत करने के उद्देश्य से पिछले कई वर्षों से 10 जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की महानता के प्रचार-प्रसार का एक सशक्त माध्यम है।
नागपुर में 10 जनवरी, 1975 को पहली बार विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा किया गया था। उस सम्मेलन में 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। उसके बाद भारत के अलावा मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम, त्रिनिदाद, अमरीका आदि में भी विश्व हिन्दी सम्मेलनों का आयोजन किया गया। भले ही आधुनिकता की ओर तेजी से अग्रसर कुछ भारतीय ही आज अंग्रेजी बोलने में अपनी आन, बान और शान समझते हों, परन्तु सच यही है कि हिन्दी ऐसी भाषा है, जो हर भारतीय को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाती है। विश्वभर की भाषाओं का इतिहास रखने वाली संस्था ‘एथ्नोलॉग’ द्वारा जब हिन्दी को दुनियाभर में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा बताया जाता है तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
अगर हिन्दी बोलने वाले लोगों की संख्या की बात की जाए तो विश्वभर में 75 करोड़ से भी ज्यादा लोग हिन्दी बोलते हैं। यही नहीं, इंटरनैट पर भी हिन्दी का चलन दिनों-दिन तेजी से बढ़ रहा है और दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल द्वारा कुछ वर्ष पूर्व तक जहां अंग्रेजी सामग्री को ही महत्व दिया जाता था, वहीं अब गूगल द्वारा भारत में हिन्दी तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाओं की सामग्री को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। माना जा रहा है कि बहुत जल्द हिन्दी में इंटरनैट उपयोग करने वालों की संख्या अंग्रेजी में इसका उपयोग करने वालों से ज्यादा हो जाएगी। गूगल का मानना है कि हिन्दी में इंटरनैट पर सामग्री पढऩे वाले प्रतिवर्ष 94 फीसदी बढ़ रहे हैं, जबकि अंग्रेजी में यह दर हर साल 17 फीसदी घट रही है। गूगल के अनुसार आने वाले दिनों में इंटरनैट पर 20 करोड़ से भी ज्यादा लोग हिन्दी का इस्तेमाल करने लगेंगे।
2016 में डिजिटल माध्यम में हिन्दी समाचार पढऩे वालों की संख्या करीब 5.5 करोड़ थी, जो अब बढ़कर 14 करोड़ से भी ज्यादा हो जाने का अनुमान है। इंटरनैट पर हिन्दी का जो दायरा कुछ समय पहले तक कुछ ब्लॉगों और हिन्दी की चंद वैबसाइटों तक ही सीमित था, अब हिन्दी अखबारों की वैबसाइटों ने करोड़ों नए हिन्दी पाठकों को अपने साथ जोड़कर हिन्दी को और समृद्ध तथा जन-जन की भाषा बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह हमारी राष्ट्रभाषा की ताकत ही कही जाएगी कि इसके इतने ज्यादा उपयोगकत्र्ताओं के कारण ही अब भारत में बहुत सारी विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हिन्दी का भी इस्तेमाल करने लगी हैं।
हिन्दी की बढ़ती ताकत को महसूस करते हुए अब भारत में ई-कॉमर्स साइटें भी ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए हिन्दी में ही अपनी ‘एप’ लेकर आ रही हैं। हिन्दी इस समय देश की सबसे तेजी से बढ़ती भाषा है। अगर 2011 की जनगणना के आंकड़े देखें तो 2001 से 2011 के बीच हिन्दी बोलने वालों की संख्या में देश में करीब 10 करोड़ लोगों की बढ़ौतरी हुई। वर्ष 2001 में जहां 41.03 फीसदी लोगों ने हिन्दी को अपनी मातृभाषा बताया था, वहीं 2011 में ऐसे लोगों की संख्या करीब 42 करोड़ के साथ 43.63 फीसदी दर्ज की गई और जिस प्रकार हिन्दी का चलन लगातार बढ़ रहा है, माना जाना चाहिए कि 2011 की जनगणना के बाद के इस एक दशक में हिन्दी बोलने वालों की संख्या में कई करोड़ लोगों की और बढ़ौतरी अवश्य हुई होगी।
आश्चर्य की बात है कि जिस अंग्रेजी भाषा के समक्ष हिन्दी को हमारे ही देश में कुछ लोग हेय मानते हैं, 2011 की जनगणना में गैर सूचीबद्ध भाषाओं में अंग्रेजी को सिर्फ 2.6 लाख लोगों ने ही अपनी मातृभाषा बताया था, जिनमें सर्वाधिक 1.06 लाख लोग महाराष्ट्र से, उसके बाद तमिलनाडु तथा कर्नाटक से थे। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में अंग्रेजी को जानने वाले केवल 2 प्रतिशत लोग हैं। कुछ गांवों के स्कूलों में एक सर्वे के दौरान तो यह तथ्य भी सामने आया था कि कई गांवों में अध्यापक जहां बहुत अच्छी तरह से लिख, बोल और पढ़ा लेते हैं, वहीं उनमें से कइयों को तो अंग्रेजी के साधारण शब्दों के स्पैलिंग तक नहीं आते। ऐसे में हिन्दी को कमजोर मानने वाले लोगों को समझ लेना चाहिए कि यह भारत में बहुसंख्यक वर्ग की आम बोलचाल की भाषा है। तकनीकी रूप से हिन्दी को और ज्यादा उन्नत, समृद्ध तथा आसान बनाने के लिए अब कई सॉफ्टवेयर भी हिन्दी के लिए बन रहे हैं।
हालांकि कुछ लोगों का तर्क है कि भारत सरकार योग को तो 177 देशों का समर्थन दिलाने में सफल हो गई लेकिन हिन्दी के लिए 129 देशों का समर्थन नहीं जुटा सकी और इसे अब तक संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने में सफलता नहीं मिली। इस प्रकार की नकारात्मक बातों से न हिन्दी का कुछ भला होने वाला है और न ही इसका कुछ बिगडऩे वाला है। ऐसे व्यक्ति हिन्दी की बढ़ती ताकत का यह सकारात्मक पक्ष क्यों नहीं देखते कि आज विश्वभर में करोड़ों लोग हिन्दी बोलते हैं। नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान, मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, युगांडा, गुयाना, साऊथ अफ्रीका इत्यादि अनेक देश ऐसे हैं, जहां हिन्दी भी बोली जाती है।
दुनिया के 150 से अधिक देशों में ऐसे विश्वविद्यालय भी हैं, जहां हिन्दी पढ़ाई जाती है और यह वहां अध्ययन, अध्यापन तथा अनुसंधान की भाषा भी बन चुकी है। दक्षिण प्रशान्त महासागर के मेलानेशिया में फिजी नामक द्वीप में तो हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला हुआ है। अमरीका की ‘ग्लोबल लैंग्वेज मॉनीटर’ नामक संस्था ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि हिन्दी के सैंकड़ों ऐसे शब्द हैं, जो अंग्रेजी शब्दकोष का हिस्सा बन गए हैं। हिन्दी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यही है कि बड़ा युवा वर्ग अंग्रेजी की ओर जा रहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि अंग्रेजी में ही रोजगार के अवसर हैं और इसलिए वही इस समय की भाषा बन गई है। संख्याबल के आधार पर हिन्दी अवश्य विश्वभाषा बन सकती है, किन्तु हमें यह याद रखना होगा कि कोई भी भाषा बिना साहित्य, विचार, आर्थिकी के ऐसा दर्जा हासिल नहीं कर सकती और हिन्दी में इस तरह की तमाम आवाजाही बीते वर्षों में लगातार घटती गई है।
देखा जाए तो हिन्दी का करीब 1.2 लाख शब्दों का इतना समृद्ध भाषा कोष होने के बावजूद अधिकांश लोग हिन्दी लिखते और बोलते समय अंग्रेजी भाषा के शब्दों का भी इस्तेमाल करते हैं। भारतीय समाज में बहुत से लोगों की मानसिकता ऐसी हो गई है कि हिन्दी बोलने वालों को वे पिछड़ा और अंग्रेजी में अपनी बात कहने वालों को आधुनिक का दर्जा देते हैं। ऐसे में प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़ा इत्यादि मनाने का उद्देश्य यही है कि इनके माध्यम से लोगों को हिन्दी भाषा के विकास, हिन्दी के उपयोग के लाभ तथा उपयोग न करने पर हानि के बारे में समझाया जा सके।
लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाए कि हिन्दी उनकी राजभाषा है, जिसका सम्मान और प्रचार-प्रसार करना उनका कत्र्तव्य है और जब तक सभी लोग इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे, इस भाषा का विकास नहीं होगा। वास्तव में हिन्दी जितनी रोचक, सुमधुर और प्यारी भाषा शायद ही दुनिया में कोई और हो। भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली जनमानस और सम्पर्क की यह ऐसी भाषा है, जो राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की भी प्रतीक है।-योगेश कुमार गोयल