कोरोना की नई लहर से कितना डर

punjabkesari.in Monday, Dec 26, 2022 - 05:56 AM (IST)

पिछले कुछ दिनों से चीन में कोरोना की नई लहर को लेकर काफी भयावह दृश्य सामने आए हैं। कोरोना के नए वेरिएंट ने चीन में अपना आतंक दिखाना शुरू कर दिया है। चीन के अलावा कई और देशों में भी इस नए वेरिएंट के मरीज पाए गए हैं। दुनिया भर में डर का माहौल बना हुआ है। भारत समेत कई देशों ने कोरोना के इस नए जिन्न से निपटने के लिए सभी सावधानियां बरतनी शुरू कर दी हैं। भारत के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जनता से सावधान रहने की अपील कर रहे हैं। सबके मन में प्रश्न है कि हमें इस नए वेरिएंट से कितना डरना चाहिए? सोशल मीडिया पर चीन में आई कोरोना की नई लहर से ऐसे आंकड़े सुनने को मिल रहे हैं कि इस लहर में दस लाख से अधिक लोगों की मौत हो सकती है। चीन की 60 प्रतिशत

आबादी इसकी चपेट में आ जाएगी। यह भी कि दुनिया भर की 10 प्रतिशत आबादी इस नई लहर का शिकार हो जाएगी। ये सब दावे कितने सच्चे हैं इस पर कोई भी आधिकारिक बयान किसी सरकार द्वारा अभी तक नहीं दिया गया है। चीन ने तो अब आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिया है। 

1995 से अमरीका के पेंसिलवेनिया में डाक्टरी कर रहे आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञ डा. रवींद्र गोडसे के अनुसार भारत को इस नई लहर से घबराने की कोई जरूरत नहीं है। देश भर के कई टी.वी. चैनलों की चर्चाओं में डा. गोडसे ने इस बात पर जोर देते हुए कहा है कि न तो भारत में यह नई लहर आएगी और न ही यहां इसका कोई भारी असर पड़ेगा। वे कहते हैं कि चीन ने अपने यहां पनपे इस खतरनाक वायरस से निपटने के लिए अत्यधिक सावधानी बरती, परंतु इस घातक वायरस से छुटकारा नहीं पा सका।

उदाहरण के तौर पर चीन में तीन साल तक लॉकडाऊन रहा। 21 बार टैसिं्टग की गई। बावन दिनों का क्वारंटाइन किया गया। लेकिन इस सब से क्या हुआ? फिर भी वहां नई लहर आ ही गई। डा. गोडसे अपनी बात दोहराते हुए यह भी कहते हैं कि जैसा दावा उन्होंने कोविड के ओमिक्रोन वेरिएंट को लेकर किया था, जो सच साबित हुआ, ठीक उसी तरह वे इस नए वेरिएंट को लेकर भी आश्वस्त हैं कि भारत पर इसका कोई बहुत बड़ा असर नहीं दिखाई देगा। अब इस वेरिएंट को रोकना किसी के लिए भी संभव नहीं है। 

डा. गोडसे मानते हैं कि कोविड का ओमिक्रोन वेरिएंट भारत में एक वरदान साबित हुआ क्योंकि उससे देश भर में हर्ड इम्युनिटी हुई। जिसने कोविड के खिलाफ ही एक वैक्सीन जैसा काम किया है। वे कहते हैं कि देश में जो भी लोग कोविड के प्रति ‘हाई रिस्क’ की श्रेणी में आते हैं उन्हें संभल कर रहने की जरूरत है। वे सभी सावधानियां बरतें और सुरक्षित रहें। एक शोध से पता चला है कि ओमिक्रोन मॉडीफाइड वैक्सीन लेने से बचाव हो सकता है। भारत में कोरोना की मैसेंजर राइबोज न्यूक्लिक एसिड (रूक्रहृ्र) वैक्सीन को 15 दिसम्बर 2021 तक आना था। परंतु उसका अभी तक कुछ पता नहीं। इस वैक्सीन को पुणे की जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स ने बनाया है।

डा. गोडसे पूछते हैं कि जब यह बात शोध से सिद्ध हो चुकी है कि कोरोना अपने रूप बदल कर हमला कर रहा है तो वैक्सीन में भी बदलाव क्यों नहीं किए जा रहे? जैसे ही चीन में लंबे लॉकडाऊन के बाद जनता को बाहर आने दिया गया तभी से वहां कोरोना की नई लहर आई। इसका मतलब यह हुआ कि लॉकडाऊन से कोरोना पर लगाम नहीं लगाई जा सकी। इसके साथ ही यह बात भी कही जा रही है कि जिन लोगों के शरीर में रोग से लडऩे की क्षमता कम है या जो लोग ‘हाई रिस्क’ के दायरे में आते हैं पहले उन पर सावधानी बरती जाए। न कि सभी को लॉकडाऊन और मास्क जैसे नियम की बेडिय़ों में जकड़ा जाए। सामान्य तौर पर स्वस्थ व्यक्ति को मास्क लगा लेने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। 

डा. गोडसे कहते हैं कि मास्क से कोविड की रोकथाम होती है, ऐसा कोई भी शोध उपलब्ध नहीं है। मास्क केवल डॉक्टर व अस्पताल में काम कर रहे अन्य लोगों को विभिन्न प्रकार के रोगियों के सम्पर्क में आने से होने वाले इन्फैक्शन से बचाता है। इसके साथ ही डा. गोडसे इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि कोविड के इस नए प्रारूप से पहले की तरह न तो तेज बुखार आता है और न ही ये हमारे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने देता है। केवल गले में खराश होती है और दो-तीन दिन में मरीज ठीक हो जाता है। उनके अनुसार इसलिए कोविड के इस नए अवतार से ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है। केवल वे लोग जिन्हें पहले से ही कोई गंभीर बीमारी है वे जरूर पूरी सावधानी बरतें। हमें सचेत रहने की जरूरत है घबराने की नहीं। 

चीन में कोविड की नई लहर आने के पीछे वहां के बुरे प्रबंधन और वैक्सीन की गुणवत्ता है। यदि समय रहते चीन ने इस महामारी का सही से प्रबंधन किया होता तो यह प्रकोप दुनिया भर में नहीं फैलता। भारत जैसी आबादी वाले देश में यदि कोविड पर नियंत्रण पाया गया है तो उसके पीछे यहां की आम जनता की प्रकृति से जुड़ी पारंपरिक दिनचर्या, वैज्ञानिकों की मेहनत और कुछ हद तक सरकार का सही प्रबंधन भी है। चीन में लंबे लॉकडाऊन लगने से यह बात साबित हो चुकी है कि इस महामारी से घर में कैद होकर नहीं बचा जा सकता है। इसके लिए दवा और सावधानी दोनों का प्रयोग करना ही बेहतर होगा। 

डा. गोडसे के अनुसार कोविड के वायरस से ज्यादा हमें सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे भ्रमित करने वाले मैसेज रूपी वायरस से बचने की जरूरत है। मिसाल के तौर पर सोशल मीडिया में ऐसा संदेश घूम रहा है कि कोविड का नया वायरस हवा से फैलता है। लेकिन आपके शरीर में कान, नाक और मुंह से प्रवेश नहीं करता, सीधा आपके फेफड़ों में घुसकर आपको निमोनिया कर देता है। 

डा. गोडसे पूछते हैं कि यदि ये वायरस नाक और मुंह के रास्ते शरीर में प्रवेश नहीं करता तो फेफड़ों तक कैसे पहुंच सकता है? इसके साथ ही इस संदेश में यह भी कहा जा रहा है कि यह वायरस टैस्टिंग में नेगेटिव आता है परंतु आपके शरीर में रहता है। इस पर डा. गोडसे सवाल उठाते हुए पूछते हैं कि जो वायरस जांच में पकड़ा नहीं जा सकता, वह कोविड का नया वायरस है ये कैसे पता चलता है? डा. गोडसे के अनुसार ऐसे वायरस केवल सोशल मीडिया के माध्यम से ही फैलते हैं। इसलिए सचेत रहने के साथ-साथ ऐसे संदेशों से भी दूरी बनाए रखें और वायरस को फैलने से रोकें।-विनीत नारायण
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News