काश..! सूरज बन जाता मेरा बिजली घर
punjabkesari.in Saturday, Jan 22, 2022 - 06:34 AM (IST)
दुनिया में तरक्की के अलग-अलग पैमाने हैं। कहीं बड़ी इमारतों और विलासिता भरे जीवन को तो कहीं सादगी और भरपेट भोजन और हमारे यहां तो रोटी, कपड़ा और मकान को ही जीवन के तीन निशान मान लिए गए हैं। लेकिन अब वक्त बदल गया है। भारत की नई तस्वीर सारी दुनिया में बेहद अलग बनती जा रही है।
इसी के साथ समृद्धि के नए आयाम भी दिखने लगे हैं। कुछ और चीजों की उपलब्धता तरक्की के साथ जीवन के लिए बेहद जरूरी हो गई है। समय के साथ यह कहना गलत नहीं होगा कि मानव अस्तित्व और प्रगति के लिए, अब भारत ही नहीं समूची दुनिया को रोटी, कपड़ा और मकान के साथ बिजली, पानी और साफ पर्यावरण को जोडऩा ही होगा। अब समृद्ध दुनिया की पहचान रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली, पानी और साफ-सुथरा आसमान ही है।
इसमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और दूसरी बड़ी आबादी वाले देश की तीसरी सबसे बड़ी हैसियत ने मु त और साफ-सुथरी बिजली की दिशा में दुनिया को नया और आसान रास्ता दिखाया है। भारत की यह बड़ी और महत्वपूर्ण उपलब्धि है जो आगे और भी बड़ी होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन भी मिला जिससे दुनिया को वाकई में भविष्य की सौर ऊर्जा का बेहतर विकल्प मिलना तय है। इस प्रेरक प्रसंग की पृष्ठभूमि को भी थोड़ा जानना जरूरी है।
सचमुच भारत ने दुनिया को सौर ऊर्जा की ताकत का अहसास तो कराया है लेकिन एक हकीकत यह है कि खुद भारत में लोगों की इसमें उतनी दिलचस्पी नहीं दिख रही है जो दिखनी चाहिए। बावजूद इसके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादन के क्षेत्र में भारत की सुधरती ग्रेडिंग अच्छे संकेत हैं। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की अद्भुत क्षमता है।
औसतन देश को सालाना 300 दिन सूर्य की भरपूर रौशनी मिलती है जिसमें 748 गीगावॉट सोलर एनर्जी पैदा करने की क्षमता है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत नैशनल सोलर मिशन भी चला रहा है जिसकी प्रगति की विश्व बैंक ने 2017 की अपनी रिपोर्ट में प्रशंसा की है। लेकिन भारतीय धरातल पर तस्वीर अलग है। दुनिया में सौर ऊर्जा उत्पादन की सफलता का अंदाज इसी से समझ आता है कि एक दशक में सौर बिजली की कीमत 82 प्रतिशत पर आ गई है और अनुमान है कि 2040 तक इसकी कीमत 66 प्रतिशत से भी नीचे आ जाएगी। यह तब है जब देश में इसके उपयोग का बहुत ही कम चलन है।
देश में 2030 तक 4,50,000 मैगावाट नवीनीकरणीय ऊर्जा जिसमें सौर ऊर्जा के अलावा भू-तापीय, पवन, ज्वार, जल और बायोमास से भी उत्पादन कर 2050 तक जरूरत की आधी बिजली सोलर पैनल से पैदा करने की क्षमता विकसित करना शामिल है। भारत इसी बदौलत 2070 तक शून्य ग्रीन हाऊस गैसें उत्सर्जन वाला देश बनने का लक्ष्य हासिल कर पाएगा।इसके लिए अपनी सौर ऊर्जा क्षमता को बढ़ाकर 5630 गीगावॉट करनी होगी जिसके लिए अभी से न केवल तैयारियां बल्कि सुलभ योजनाएं, पब्लिक फ्रैंडली काम करने वाली ऐसी एजैंसियां बनें, जो मेक, मेड, फिटिंग, क्वालिटी के पेंच में लोगों को उलझाकर अपने मुताबिक माहौल बना अतिरिक्त लाभ कमाने की जुगत की बजाय हर भारतीय छत के लिए तय औसत मॉडल पर काम करे।
कहीं फिटिंग में कुछ ज्यादा एक्सैसरीज तो कहीं कम से संतुलन का फॉर्मूला बने जिसका साल में ऑडिट कर कांट्रैक्ट एजैंसी के घट-बढ़ की पूॢत की जाए। जब एक आवेदन पर सारा कुछ क्षेत्र की विभागीय एजैंसी, कांट्रैक्टर को ही करना होगा तो इससे पेचीदगियां घटेंगी और जनसाधारण की जबरदस्त रुचि बढ़ेगी। निश्चित रूप से घर-घर सोलर रूफ टॉप होंगे जिससे अपनी जरूरत से ज्यादा बिजली बनेगी जो देश की तरक्की के साथ ज्यादा होने पर फिलहाल स्थानीय ग्रिड तो भविष्य में ‘वन सन, वन वल्र्ड, वन ग्रिड’ जाकर घर-घर की अतिरिक्त कमाई का जरिया भी बनेगी जो खुशहाली और समृद्धि का कारण भी होगी।
यदि घरों की अतिरिक्त सोलर बिजली का लेखा-जोखा बैंकों की तर्ज पर क्रैडिट-डेबिट फॉर्मूला से होने लग जाता और बिजली दे, वापस बिजली ले के साथ ही महंगी बिजली बेचना और सस्ती खरीदना वाली विसंगति भी खत्म हो जाती तो सोलर पैनल योजना और लोकलुभावन हो जाती। कई राज्य कुछ यूनिट मुफ्त तो कुछ सस्ती बिजली दे रहे हैं। राजनीतिज्ञों के लिए बड़ी रेवड़ी भी बन रही है मुफ्त की बिजली। लेकिन यदि एक बार के निवेश से भविष्य में घर-घर अपने उपयोग की स्वत: बिजली बनने लग जाती तो देश को, दुनिया में विकास का नया पंख लग जाता। प्रदूषण रहित स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन से ईंधन, रुपए दोनों की भारी बचत के साथ पर्यावरण की भी रक्षा हो पाती।
भविष्य का ऑटोमोबाइल सैक्टर भी बिजली आधारित होना है। इसलिए जरूरत है कि ऐसा कुछ किया जाए ताकि सोलर बिजली में सबकी जबरदस्त रुचि जागती और भारत दुनिया का सुपर पॉवर बनने के साथ सबसे बड़ा पॉवर सैक्टर भी बन पाता। कितना अच्छा होता कि काश मेरी छत का सूरज बन पाता मेरे घर का बिजलीघर और दुनिया को भी रौशन करने में मदद करता।-ऋतुपर्ण दवे