न्याय की आशा और टिहरी बांध विरोधी सत्याग्रह

punjabkesari.in Tuesday, Dec 28, 2021 - 06:28 AM (IST)

महामारी  का प्रकोप वायरस के वेरिएंट्स के कारण एक बार फिर व्यापक हो रहा है। साल के आरंभ में कोरोना की दूसरी लहर ने कहर बरपाया था। इसकी चपेट में आकर टिहरी बांध विरोधी सत्याग्रह के महानायक सुंदरलाल बहुगुणा भी नहीं रहे। मीडिया में इस खबर के साथ शोक संदेशों का सिलसिला चला। 

टिहरी के निवासियों ने लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए आन्दोलन में हिंसा फैलाने की तमाम कोशिशों को धत्ता बता दिया था। अहिंसा की नीति को जमीन पर उतारने के उनके काम की तुलना गांधीजी हिमालय से करते थे।पंजाब में पिंगलवाड़ा सोसायटी की प्रधान डा. इंदरजीत कौर ने इसका जिक्र किया था। तिब्बत की निर्वासित सरकार के पहले प्रधानमंत्री प्रो. समधोंग रिनपोचे इसका उल्लेख करते हैं। 

20 मार्च, 1992 की हृदयविदारक घटना : बांध विरोधी सत्याग्रह चिपको आंदोलन के बाद शुरू हो गया था। टिहरी में बहुगुणाजी का समर्थन करने के लिए एक बस में 40 लोगों के साथ डा. वाचस्पति मैठाणी पहुंचे थे। लौटते समय पिलखी बौंर के  निकट चालक ने बस खाई में गिराने के लिए स्वयं छलांग लगा दी। बस हादसे के तौर पर इस हत्याकांड की चर्चा आज टिहरी बांध का खुला रहस्य माना जाता है।  इन दोनों घटनाओं की पड़ताल से भारत में गांधीवादी सत्याग्रह के प्रति टिहरी रियासत ही नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक कॉर्पोरेट स्टेट की नीतियों की समानता भी उजागर होती है। सरकार और टिहरी बांध के ठेकेदार ने मिल कर कई सत्याग्रहियों को ठिकाने लगाने का काम किया। इसका प्रतिकार करने वाले राजसत्ता और पूंजीवादी शक्तियों के सामने ताश के पत्तों की तरह बिखर कर रह गए। 

विकास की इस गति के सापेक्ष ही विनाश की लीला भी हिमालय में जारी है। तिब्बत की दशा का विस्तार सम्पूर्ण हिमालय को गिरफ्त में लेने के लिए मचल रहा है। इस मामले की सच्चाई से मुंह फेरने का नतीजा यही हो सकता है। टिहरी बांध के निर्माण से पहले सुंदरलाल बहुगुणा करीब 20 सालों तक सत्याग्रह में लगे रहे। प्रधानमंत्री के आश्वासनों और घोषणाओं के बावजूद यह परियोजना बन कर तैयार हो गई। अशोक सिंघल के साथ  विश्व ङ्क्षहदू परिषद और संघ परिवार ने भी टिहरी बांध के विरुद्ध मोर्चा खोला। परंतु इन सत्याग्रहियों को न्याय नहीं मिला। इस बीच दिल्ली विधानसभा में बहुगुणाजी के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किया गया। 

मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने केंद्र सरकार से उनके लिए भारत रत्न की मांग भी की है। इन सभी बातों पर विमर्श के लिए गांधी पीस फाऊंडेशन में चर्चा हुई थी। उपहार सिनेमा अग्निकांड को हत्याकांड मानकर सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय के बाद दोषियों को सजा सुनाई है। इसके अलावा यूरोप में गैलीलियो को 300 साल बाद मिले न्याय का जिक्र होता है। गांधी मार्ग के प्रबंधक संपादक मनोज कुमार झा ने उत्तराखण्ड पुलिस के महानिदेशक अशोक कुमार को पत्र लिख कर इस केस की फिर से जांच करने का आग्रह किया है। गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए सक्रियता देश और समाज की ही सेवा है। हालांकि इसके लिए सरकारी एजैंसियां भी सक्रिय हैं। मगर प्रदूषण नियंत्रण में असफल होने पर इनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती। 

इसका नतीजा भी सामने है। हादसे का शिकार हुए परिवार के अनाथ बच्चों की परवरिश हेतु लंबे समय तक बहुगुणाजी सहयोग के लिए अभियान चलाते रहे। इसके बावजूद इन सत्याग्रहियों को न तो न्याय मिला और न सम्मान। उन्होंने इन सहयोगियों की स्मृति में स्मारक बनाने का भी सपना देखा था, जो पूरा नहीं हो सका। उनकी अगली पीढ़ी के लिए यह जिम्मेदारी सामने है। हिमालय में पर्यावरण संरक्षण की जरूरत लगातार बढ़ रही है। यह सत्याग्रह और आंदोलन का सिलसिला तेज होने की भी वजह है। उपभोक्तावाद के युग में प्रोफैसर जी.डी. अग्रवाल हिमालय में बांध विरोधी सत्याग्रह को बुलंद करने का प्रयास करते हैं। उनका बलिदान भुलाया नहीं जाएगा। इन सभी मामलों को नजरअंदाज करने से तिब्बत की स्थिति ही दोहराने वाली है। साथ ही 1959 की भूल को सुधारने की दिशा में आगे बढऩे के लिए इन मामलों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत होगी।-कौशल किशोर
 


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