खोखली नारेबाजी ‘देशभक्ति’ नहीं

Thursday, Mar 14, 2019 - 05:18 AM (IST)

2019 के लोकसभा चुनाव भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में विशेष महत्व रखते हैं। इन चुनावों ने तय करना है कि भविष्य में भारत का राजनीतिक तथा सामाजिक खाका कैसा होगा? क्या हम बहुधर्मी, बहुभाषी तथा रंग-बिरंगी संस्कृति वाले देश के वर्तमान स्वरूप को बरकरार रखते हुए इसके लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष तथा संघात्मक लक्षणों को ज्यादा गहरा व प्रभावशाली बना सकेंगे? या भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों को नकारात्मक दिशाओं में बदलने वाली राजनीतिक शक्तियों के हाथ सौंप कर इसे एक धर्म आधारित, गैर-लोकतांत्रिक, तानाशाह व मनुवादी गुलामी वाला देश बनाने का रास्ता खोल देंगे?

आने वाले दिनों में इन दो राजनीतिक ङ्क्षबदुओं पर केन्द्रित भारतीय राजनीति के चलने की संभावनाएं नजर आ रही हैं। बेशक बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, खेती संकट, सामाजिक अत्याचार आदि मुद्दे भी चुनाव प्रचार में खूब उछाले जाएंगे जिससे आम लोगों की चेतना और मजबूत होने की संभावनाएं बनेंगी। आम लोगों से संबंधित ये सवाल सत्ताधारी दलों  द्वारा शायद उतनी शिद्दत से न उठाए जाएं क्योंकि पिछले समय में उनकी सरकारों द्वारा अपनाई गई नवउदारवादी आॢथक नीतियों के परिणामस्वरूप ही आज लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन जो राजनीतिक शक्तियां देश के मेहनतकश लोगों को मौजूदा संकट से बाहर निकाल कर एक सम्मानजनक जिंदगी जीने के सक्षम बनाना चाहती हैं उनके लिए उपरोक्त दोनों ही नुक्ते बहुत महत्व रखते हैं। 

देश की सुरक्षा व राष्ट्रवाद
भाजपा ने अपने संघ द्वारा निर्धारित उद्देश्य को हासिल करने के लिए देश की सुरक्षा व राष्ट्रवाद को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने का निर्णय किया है। पिछले लोकसभा चुनाव में विदेशों से काला धन वापस लाने और लोगों के बैंक खातों में रुपए जमा करने, 2 करोड़ लोगों को नौकरियां देने, खेती संकट दूर करने, महंगाई को रोक कर तेज आॢथक विकास जैसे सभी वायदे रद्दी की टोकरी में फैंक दिए गए। यहां नोटबंदी, जी.एस.टी. लागू करने जैसे विशेष कदमों का जिक्र करना मोदी तथा उनकी पार्टी शायद भूल गए हैं। इसीलिए देश की सुरक्षा व राष्ट्रवाद (जिसे अंधराष्ट्रवाद  कहना ज्यादा ठीक होगा) जैसे दो नए जुमले भाजपा नेताओं द्वारा तैयार कर लिए गए हैं।

अजीब बात यह है कि देश की सुरक्षा व वास्तविक राष्ट्रवाद (जो संघ से बिल्कुल अलग है) के बारे में देश के सभी लोग व सभी राजनीतिक दल पूरी तरह एकजुट हैं लेकिन भाजपा नेताओं द्वारा अपनी देशभक्ति को चमकाने के लिए करीब 70 फीसदी भारतीयों को जबरदस्ती देश के दुश्मनों की लाइन में खड़ा कर दिया गया है। राष्ट्रवाद साम्प्रदायिक जुनूनी तत्वों को कुछ हिंसक गिरोहों द्वारा किसी अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित व्यक्ति, दलित तथा आगे की सोच वाले विद्वान को बेरहमी से पीटने तथा ‘भारत माता की जय’ कहने का नाम नहीं है बल्कि सभी धर्मों, जाति और समुदायों के लोगों को एकजुट करके उनकी मुश्किलें दूर करने के प्रयास करना तथा हर एक नागरिक को सौंपे गए काम को पूरी ईमानदारी से निभाना ही सच्ची देशभक्ति व राष्ट्रवाद है।

लोगों का जीवन स्तर बढ़ाने तथा उन्हें हर तरह से संतुष्ट करने के अलावा सिर्फ खोखली नारेबाजी से देशभक्ति का पाठ नहीं पढ़ाया जा सकता। कोई देश सिर्फ भौगोलिक दृष्टि से रक्षा सेनाओं के सहारे ही सुरक्षित नहीं रह सकता बल्कि करोड़ों लोगों को खुशहाल जीवन देकर ही देश की सुरक्षा के सिपहसालार बनाने से यह कार्य सम्पूर्ण हो सकता है। देश की सेनाओं तथा अन्य अद्र्ध सैन्य बलों द्वारा देश के दुश्मनों के खिलाफ की गई कार्रवाई को किसी व्यक्ति विशेष से जोडऩा (जैसे कि मोदी कर रहे हैं) भी एक तरह से देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है। 

रक्षा सेनाओं का राजनीतिकरण
एक तरह से इसे रक्षा सेनाओं का राजनीतिकरण कह सकते हैं जो लोकतंत्र के लिए घातक है। अच्छा हुआ कि चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार के दौरान किसी भी राजनीतिक दल को शहीद जवानों की तस्वीरों का इस्तेमाल न करने को कहा है लेकिन भाजपा नेताओं ने टेढ़े-मेढ़े तरीके से सुरक्षा व धार्मिक आस्था से जुड़े मुद्दों का इस्तेमाल करना ही है क्योंकि बाकी सभी मुद्दों पर भाजपा शासन का सच सामने आ चुका है।

आर.एस.एस. की मशीनरी इस कार्य को पूरा करने के लिए पहले ही तैयार बैठी है। देश की विश्वसनीय संस्था ने देश में बेरोजगारी को 2010 के बाद सबसे ऊपर वाले आंकड़े पर पहुंची बता कर मोदी सरकार द्वारा किए गए इस वायदे की हवा निकाल दी है कि देश में रोजगार बढ़ा है। आर्थिक विकास के बारे में भी सरकार की मनगढ़ंत रिपोर्टें लोगों की वास्तविक जीवन अवस्थाओं को नहीं बदल सकतीं और न ही बार-बार बोला जाने वाला झूठ ‘सच’ बन सकता है।

आने वाले दिनों में जब सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार में जुट जाना है तब लोगों की नजर इस बात पर होनी चाहिए कि कोई भी दल देश की सुरक्षा व राष्ट्रवाद के मुद्दों पर सत्ताधारियों के प्रचार से गुमराह न हो। लोगों को अपनी राय बनाते समय अपने जीवन से जुड़े मुद्दों तथा असलियतों को सामने रखना होगा और ऐसी पार्टियों/गठबंधन के हाथ देश की कमान देनी होगी जो गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा सुविधाएं, मजदूरों-किसानों के कर्जे, हर तरफ फैले भ्रष्टाचार जैसे सवालों का समाधान करने के सक्षम हों या कम से कम इस दिशा में कदम आगे बढ़ा सकें। धर्म आधारित देश (हिन्दू राष्ट्र) स्थापित करके देश को पुन: मध्य युग की ओर धकेलना, जहां जातिवाद, ऊंच-नीच, महिलाओं के प्रति तिरस्कार तथा अंधविश्वास का बोलबाला था, सब लोगों के लिए गंभीर खतरों का प्रतीक है।-मंगत राम पासला

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