‘तीन मूर्ति’ भवन के नाम का इतिहास
punjabkesari.in Friday, Apr 14, 2017 - 01:10 AM (IST)

दिल्ली में मेरे निवास के निकट तीन मूर्ति भवन स्थित है जो कभी पं. नेहरू का सरकारी आवास था, जो आज नेहरू स्मारक संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। उसके समक्ष गोल चक्कर पर 3 मूर्तियां हैं, उनका भारत और इसराईल के इतिहास से बहुत ही गहरा संबंध है।
प्रथम विश्वयुद्ध के समय, भारत की 3 रियासतों मैसूर, जोधपुर और हैदराबाद के सैनिकों को अंग्रेजों की ओर से युद्ध के लिए तुर्की भेजा गया। हैदराबाद रियासत के सैनिक मुस्लिम थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुर्की के खलीफा के विरुद्ध युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया और केवल जोधपुर व मैसूर के रणबांकुरों को युद्ध लडऩे का आदेश दिया।
अंग्रेज सेनापति को सूचना मिली कि शत्रु अत्याधुनिक हथियारों से लैस हैं जबकि रियासती सैनिक भाला-तलवार लिए घोड़े पर सवार तो उसने हमला रोकने का आदेश दिया किन्तु स्वाभिमानी सैनिकों ने भारतीय परम्परा का हवाला देते हुए आदेश को नहीं माना और कहा, ‘‘बढ़ते हुए कदम को रोकने पर वे भारत लौटकर अपने महाराजा और देशवासियों को क्या मुंह दिखाएंगे?’’ भारतीय रणबांकुरे बिजली की तेजी से शत्रुओं पर टूट पड़े। इधर तलवार-भाले और उधर गोलियों की बौछार, किन्तु भारतीय सैनिक हताहत होने की चिंता किए बिना आगे बढ़ते गए और लगभग 900 सैनिकों के बलिदान के बाद विजय प्राप्त की।
यह युद्ध 22-23 सितम्बर 1918 को लड़ा गया था, जो इतिहास में हाइफा (Haifa) युद्ध के नाम से विख्यात है। हाइफा इसराईल का पहला स्वतंत्र हिस्सा है और यह भारतीय सैनिकों के शौर्य व बलिदान का प्रतीक है। भारतीय हमले का नेतृत्व करने वाले जोधपुर के मेजर दलपत सिंह शेखावत को हाइफा के नायक के रूप में जाना जाता है, किन्तु संकीर्ण राजनीति के कारण भारत में इस ऐतिहासिक युद्ध का कहीं उल्लेख नहीं है। इसके विपरीत हर वर्ष हाइफा (इसराईल) में 23 सितम्बर को इन शूरवीरों के शौर्य को स्मरण किया जाता है। वहां के पाठ्यक्रमों में भी इसका उल्लेख है।
अंग्रेजों ने भी इन सूरमाओं की वीरता को सहर्ष स्वीकारा और नई दिल्ली में अपने प्रधान सेनापति के बंगले के बाहर इनकी मूर्तियां स्थापित कीं, जिसे आज हम तीन मूर्ति भवन के नाम से जानते हैं। भारत अपने इस गौरवशाली इतिहास के पन्ने को कब प्रकाश में लाएगा? पाठक गूगल पर Haifa सर्च कर और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।