जल्द ही बंगलादेश से खत्म हो सकते हैं हिंदू

punjabkesari.in Thursday, Nov 04, 2021 - 04:25 AM (IST)

हाल ही में बंगलादेश के हिंदुओं को निशाना बना कर की गई हिंसा उस देश में हिंदू अल्पसंख्यकों की दुखद दुर्दशा की याद दिलाती है। संविधान के अनुसार एक माध्यमिक धर्म से संबंधित के रूप में वर्गीकृत हिंदू कट्टरपंथियों के लिए आसान शिकार हैं, जो उन्हें बिना किसी दंड के परेशान करना जारी रखे हैं। 

अत्याचारों का मौजूदा दौर 13 अक्तूबर को कोमिला में एक फर्जी सोशल मीडिया पोस्ट के बाद शुरू हुआ, जिसमें दावा किया गया था कि हिंदुओं ने इस्लाम का अपमान किया है; अंतत: पता चला कि यह इकबाल हुसैन नाम के एक 35 वर्षीय मुस्लिम की करतूत है। फिर भी, बिना किसी पुष्टि के, मुस्लिम भीड़ ने देश के विभिन्न हिस्सों में भगदड़ मचा दी, हिंदुओं को मार डाला और घायल कर दिया, उनकी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाया तथा हिंदू मंदिरों और दुर्गा पूजा पंडालों को अपवित्र किया। 

नोआखली में 500 लोगों की भीड़ ने इस्कॉन मंदिर में तोडफ़ोड़ की और एक भक्त की हत्या कर दी। वहीं रंगपुर जिले के एक गांव में हिंदुओं के 66 घरों को नुक्सान पहुंचाया और 20 घरों को जला दिया गया। बंगलादेश में हिंदू विरोधी हिंसा कोई नई घटना नहीं है, यह नियमित अंतराल पर होती रहती है। वास्तव में नोआखली विभाजन के दौरान 5,000 से अधिक हिंदुओं के भीषण नरसंहार का गवाह है। बंगलादेश (जिसे निर्वासित बंगलादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने ‘जिहादिस्तान’ का नाम दिया है) में इस तेजी से खराब होते माहौल के परिणामस्वरूप वहां से हिंदुओं का एक अविश्वसनीय पलायन हुआ है। 1940 में हिंदुओं की आबादी 28 प्रतिशत थी। आज वे बमुश्किल 8.5 प्रतिशत बनते हैं, जो 2011 की बंगलादेश की जनगणना के अनुसार 149.7 मिलियन की कुल आबादी में से 12.73 मिलियन हैं। 1971 में बंगलादेश के गठन ने इस बाहरी प्रवास को धीमा नहीं किया। हाल की रिपोर्टें और भी अधिक निराशाजनक हैं; 2016 में हिंदू आबादी को 7 प्रतिशत पर टैग किया गया था। 

ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफैसर अबुल बरकत ने अपनी पुस्तक ‘बंगलादेश में कृषि-भूमि-जल निकायों में सुधार की राजनीतिक अर्थव्यवस्था’ में कहा है कि धार्मिक भेदभाव के कारण 1964 से 2013 तक लगभग 11.3 मिलियन ङ्क्षहदू बंगलादेश से भाग गए थे। दूसरे शब्दों में, औसतन 632 हिंदू हर दिन 2,30,612 की वार्षिक पलायन दर के साथ देश छोड़ते हैं। ऐसा लगता है कि सरकार ने मौजूदा हिंसा को रोकने के लिए कार्रवाई की है (क्या तुरंत, सवाल यह भी है)। सुरक्षाकर्मी प्रभावित इलाकों में चले गए हैं और बॉर्डर गार्ड बंगलादेश के जवानों को 22 जिलों में तैनात किया गया है। सरकार ने 71 प्राथमिकियां दर्ज की हैं और 450 संदिग्धों को गिरफ्तार किया है। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हिंदू समुदाय से संपर्क किया और उन्हें आश्वासन दिया कि न्याय किया जाएगा। 

इन वादों के बावजूद हिंदू समुदाय संशय में है और चिंतित है क्योंकि पिछले अनुभव से पता चलता है कि अनुवर्ती कार्रवाई धीमी रही है। इसके अलावा ऐसे संकेत हैं कि सत्तारूढ़ अवामी लीग के कुछ सदस्य हिंदुओं पर हमलों में शामिल रहे हैं। हालांकि, इस भयावह परिदृश्य में एक उम्मीद की किरण नजर आ रही है। पहली बार हिंदुओं ने प्रतिरोध दिखाया है, अपनी आंतरिक निष्क्रियता को दूर किया है, बंगलादेश के नागरिक के रूप में अपने अधिकारों के बारे में मुखर हो गए हैं और स्पष्ट रूप से अपना रोष व्यक्त किया है। 

बंगलादेश हिंदू, बौद्ध, ईसाई एकता परिषद के महासचिव राणा दासगुप्ता ने सरकार पर तीखा हमला किया, जिसमें सभी बंगलादेशीयों को मुक्ति युद्ध में अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा किए गए बलिदानों की दो टूक याद दिलाई गई। उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि हमने अल्पसंख्यक के रूप में जीवित रहने के लिए मुक्ति की लड़ाई नहीं लड़ी। हमारी पहली और सबसे महत्वपूर्ण पहचान यह है कि हम बंगलादेश के नागरिक हैं। तभी हमारे धर्म की पहचान होती है। हमने स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में मुक्ति संग्राम लड़ा था। बंगलादेश के धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों का अब किसी भी राजनीतिक नेतृत्व और आश्वासन में विश्वास नहीं है।’’ सरकार पर दबाव बनाए रखते हुए, हिंदुओं ने 23 अक्तूबर को सामूहिक भूख हड़ताल और धरना भी आयोजित किया। लेकिन हिंदुओं को अपने हितों की रक्षा के लिए और अधिक ठोस व स्थायी उपाय करने की जरूरत है। 

बंगलादेश के हिंदुओं को अपनी संख्या, जो किसी भी तरह से महत्वहीन नहीं है, का लाभ उठाने के लिए एक हिंदू पार्टी बनाने की संभावना तलाशनी चाहिए। 8 प्रशासनिक प्रभागों में से कम से कम 3-सिलहट (14.5), रंगपुर (13.21) और खुलना (12.94) में हिंदुओं की आबादी 10 प्रतिशत से अधिक है और गोपालगंज, खुलना, मौलवी बाजार व ठाकुरगांव जिलों में कुल आबादी का 20 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। 300 संसदीय सीटों में से 60 में ङ्क्षहदू वोट परिणाम के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं। कुछ बातचीत के साथ हिंदू अपने लाभ के लिए राष्ट्रीय शासन में काफी प्रभाव डाल सकते हैं। 

यह भी महत्वपूर्ण है कि दीर्घकाल में बंगलादेश के हिंदू भारत की ओर देखे बिना अपना भाग्य खुद लिखें; भारत का उतार-चढ़ाव वाला राजनीतिक माहौल भविष्य में भारत में शरण लेने वाले हिंदुओं का स्वागत नहीं कर सकता। सी.ए.ए. विरोधी प्रदर्शन इसका स्पष्ट सबूत थे। और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में, जहां अधिकांश बंगलादेशी हिंदुओं की ओर झुकाव की संभावना है, ममता बनर्जी की चुनावी जीत के बाद बड़ी संख्या में हिंदुओं के मारे जाने के साथ माहौल निश्चित रूप से हिंदू विरोधी हो गया है।

जहां स्थिति को शांत करने की कोशिश के लिए शेख हसीना की सराहना की जानी चाहिए, वहीं हिंदू समुदाय में विश्वास जगाने के लिए उन्हें और अधिक करने की जरूरत है। हिंदुओं को अपने आप को चुनावी रूप से बेहतर ढंग से संगठित करना जारी रखें और अपने जीवन की रक्षा के लिए आवश्यक उपाय तथा अपनी संपत्ति की रक्षा करनी चाहिए ताकि पूर्ण विनाश से बचा जा सके। यदि नहीं तो प्रो. अबुल बरकत की दूरदर्शिता सच साबित हो सकती है कि, ‘‘तीन दशकों में बंगलादेश में कोई हिंदू नहीं बचेगा।’’-विवेक गुमस्ते


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