हिन्दूवादी ममता ‘बैकफुट’ पर, चोटिल ममता ‘फ्रंटफुट’ पर

Tuesday, Mar 16, 2021 - 04:13 AM (IST)

बंगाल का चुनाव व्हीलचेयर पर आ गया है। यूं तो ममता बनर्जी चोट लगने के बाद व्हीलचेयर पर हैं लेकिन भाजपा समेत सभी विपक्षी दलों को भी सियासी व्हीलचेयर पर बिठा दिया गया है। ‘आंधी’ फिल्म आपको याद होगी। गुलजार साहब ने बनाई थी। तब कहा गया था कि फिल्म इंदिरा गांधी से प्रेरित है। फिल्म में सुचित्रा सेन नायिका थीं जो चुनाव लड़ रही हैं। एक जगह उन पर विरोधी पत्थर उछालते हैं। एक पत्थर सुचित्रा सेन के माथे पर लगता है। खून बहता है। पट्टी बांधे सुचित्रा पत्रकारों के सामने आती हैं। कहती हैं कि जाहिर है कि किसी ने तो पत्थर उठाए होंगे, किसी ने तो पत्थर उछाले होंगे। वह चुनाव जीत जाती हैं। 

सुचित्रा सेन भी बंगाल की अभिनेत्री थीं। मुनमुन सेन की मां। वही मुनमुन सेन जो ममता बनर्जी की पार्टी से जुड़ीं, राजनीति में सक्रिय रहीं। तो क्या बंगाल में ‘आंधी’ की कहानी दोहराई जा रही है। क्या इसका नतीजा भी आंधी की सुचित्रा की तरह ममता के ही पक्ष में जाएगा। कहना बहुत मुश्किल है लेकिन पैर की चोट ने पूरे चुनाव का नरेटिव बदलने की गुंजाइश पैदा जरूर कर दी है। 

वैसे ममता ने एक दूसरा नरेटिव भी बदलने की कोशिश की है। चोटिल होने से पहले मंच पर खुद को हिंदू कह कर, दुर्गा मंत्र का जाप करके, चंडी पाठ की बात कर, ममता ने ऐसा सोची-समझी रणनीति के तहत किया या वह भाजपा के हिंदूवादी कार्ड के जाल में फंस गई हैं। इसका पता तो 2 मई के नतीजों से ही चल पाएगा लेकिन भाजपा के नजरिए से समझने की कोशिश करें तो हिन्दूवादी ममता जहां बैकफुट पर है, वहीं चोटिल ममता फ्रंटफुट पर खेल रही हैं। खेला होबे, खूब होबे-विकास होबे या न होबे, पता नहीं। कुछ लोग कह रहे हैं कि ममता ने खुद को हिंदू बताकर भाजपा की मन की मुराद पूरी कर दी है लेकिन कुछ लोग इसे ममता का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं।

नंदीग्राम में ममता के मंदिर दर्शन इसलिए भी जरूरी हैं क्योंकि यहां दो लाख से ज्यादा हिंदू वोटर हैं जबकिमुस्लिम वोटरों की तादाद 65 हजार के आसपास ही है लेकिन क्या सिर्फ नंदीग्राम जीतने के लिए ममता हिंदुत्व के रंग में रंग गई हैं या भाजपा के ध्रुवीकरण का डर उन्हें सताने लगा है। ममता ने हाल ही में सनातन ब्राह्मण पुरोहितों को मानदेय देने की घोषणा की थी। दुर्गा पूजा के पंडालों को 25 हजार की जगह 50 हजार रुपए दिए थे। सवाल उठता है कि सवर्ण वोटों में बड़ी हिस्सेदारी के लिए ममता बनर्जी क्या ऐसा कर रही हैं। 

आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो पिछले दस सालों में सवर्ण जाति के  वोटरों पर ममता की पकड़ कमजोर हुई है और उनका भाजपा की तरफ झुकाव हुआ है। ममता को 2011 के विधानसभा चुनावों में 51 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे जो 2016 में घटकर 40 फीसदी रह गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो ममता को सिर्फ 29 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले। उधर भाजपा को 2011 और 2016 में 5 से 6 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे जो 2019 में बढ़कर 47 फीसदी हो गए। इसी तरह कायस्थ वोटों  की बात करें तो ममता को 2011 में 49 फीसदी, 2016 में 46 फीसदी और 2019 में 24 फीसदी कायस्थ वोट मिले। उसी दौरान भाजपा को 2011 में 6, 2016 में 8 फीसदी कायस्थ वोट मिले जो 2019 में उछाल मारते हुए 65 फीसदी हो गए। 

अगर ब्राह्मण वोटों का डर नहीं है तो सवाल उठता है कि क्या ओ.बी.सी., आदिवासी और दलित वोटों में सेंध लगने से ममता परेशान हैं। आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो यहां भी ममता की परेशानी साफ नजर आती है। पिछले दस सालों में ममता के दलित, आदिवासी और ओ.बी.सी. वोट बैंक में खासी कमी आई है। ममता को 2011 में 49 फीसदी ओ.बी.सी. वोट मिले जो 2016 में 45 फीसदी थे लेकिन 2019 में घटकर 27 फीसदी रह गए। इसी तरह ममता को 2011 में 38 फीसदी दलितों ने वोट दिया जो 2016 में बढ़कर 41 फीसदी हो गया लेकिन 2019 में सिर्फ 31 फीसदी ही रह गया। 

दरअसल ममता को मुस्लिम वोट बंटने का खतरा दिख रहा है जिसकी भरपाई वह दुर्गा मंत्र के जाप से करना चाहती हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में ममता को 70 फीसदी मुसलमानों ने वोट दिया  था। इस बार भी ममता को इतने फीसदी वोट मिल जाएं और साथ में 25 से 30 फीसदी गैर-मुस्लिम वोट झोली में गिर जाएं तो बेड़ा पार हो जाएगा लेकिन इस बार कांग्रेस, लैफ्ट और आई.एस.एफ. ने साथ मिलकर महाजोत बनाया है। इसके अलावा आई.एस.एफ. में शामिल अब्बास सिद्दीकी की फुरफुरा शरीफ की बड़ी धार्मिक-सामाजिक मान्यता है। ऐसे में ममता को लगता है कि मुस्लिम वोट पांच से दस फीसदी गिरा तो उसकी भरपाई के लिए पांच-दस फीसदी गैर-मुस्लिम वोट अतिरिक्त रूप से चाहिए होगा। 

इसके अलावा एम फैक्टर के सामने भाजपा का डी फैक्टर है जो ममता को मंदिर-मंदिर ले जा रहा है। बंगाल में अगर मुस्लिम वोट 30-32 फीसदी हैं तो दलित वोट भी 23 से 25 फीसदी के बीच हैं। इसमें मतुआ जैसे दलित भी हैं जो तीन दर्जन के करीब विधानसभा सीटों पर असर रखते हैं। जानकारों का कहना है कि भाजपा दलित वोटरों को साधने में लगी है। भाजपा का नया नरेटिव है कि दलित उत्थान का रास्ता हिदुत्व से होकर जाता है। 

ममता इसलिए  भी रिस्क नहीं उठा रहीं क्योंकि वह समझ रही हैं कि अगर पूरा एंटी ममता वोट भाजपा की झोली में चला गया तो भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है। यानी ममता एक तरफ चाहती हैं कि एंटी ममता वोट भाजपा और महाजोत के बीच बंटें लेकिन वह यह नहीं चाहतीं कि मुस्लिम वोट बंटें। अब ये दोनों काम कैसे एक साथ हो सकते हैं, ये समझना मुश्किल है। कुछ जानकारों का कहना है कि आखिरी वक्त में चुनाव पलटने की क्षमता भाजपा के पास है जिसका इस्तेमाल बंगाल में भी होगा। क्या ऐसा होगा। अगर ऐसा हुआ तो ऐसे में कुल मिलाकर चुनाव दिलचस्प हो जाएगा।-विजय विद्रोही
 

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