‘सत्य की निरन्तर खोज का नाम है हिन्दुत्व’

punjabkesari.in Thursday, Jul 04, 2024 - 05:39 AM (IST)

भारतीय जनमानस सत्यमेव जयते के अटल विश्वास से विश्व गुरु के सिंहासन पर भारत माता को बैठाकर प्राचीन वैभव की तरफ निरंतर बढ़ रहा है। हमारे पूर्वजों के मानव जीवन और ब्रह्मांड के बारे में सत्य समझने के प्रयास में की तपस्या से प्राप्त ज्ञान के प्रकाश में इस पुण्य भूमि में समाज और जीवन प्रणाली का विकास हुआ जिसे हिन्दू संस्कृति कहते हैं। हिन्दुत्व का सृष्टि के संबंध में वैश्विक दृष्टिकोण गीता के दूसरे अध्याय में नारायण द्वारा अर्जुन को दिए सनातन ‘‘सर्व खलु इदं  ब्रह्म’’ से स्पष्ट होता है। इस वैज्ञानिक सत्य की अनुभूति और खोज हमारे पूर्वजों ने ही की है। सनातन सत्य ‘‘एक ही चेतना से इस विश्व ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है’’ से ही हमारी यह जीवन दृष्टि विकसित हुई है। ‘‘हिन्दू जीवन दृष्टि’’ को संक्षेप में परिभाषित करना हो तो यह एकात्म जीवन दृष्टि है। 

इसी कारण हिन्दू मानस की स्वाभाविक कामना ‘सरबत दा भला’, ‘‘सर्वे भवंतु सुखिन:’’, ‘‘भवतु मंगलम’’, ‘‘विश्व का कल्याण हो’’ इन शब्दों में व्यक्त होती है। वसुधैव कुटुम्बकम की भावना हिन्दू जीवन दृष्टि को और अधिक परिभाषित करती है। प्रकृति को माता के रूप में अर्थात ‘‘मातृत्व’’ का भाव स्वामित्व का नहीं हिन्दू जीवन दृष्टि की विशेषता है। इससे सभी में शोषण की जगह दोहन की दृष्टि विकसित होती है अर्थात मां का स्तनपान करने का अधिकार सभी को पर मां का रक्तपान करने का अधिकार किसी को नहीं है। जल, वायु, धरती, वनस्पति, फल-फूल आदि पर सभी का समान अधिकार है लेकिन जितना आवश्यक हो उतना ही उपयोग करना ताकि संयम, सादगी और त्यागपूर्वक उपभोग जीवन मूल्य बने। 

मानव के संबंध में हिन्दुत्व का वैश्विक दृष्टिकोण यही है कि मानव केवल भौतिक प्राणी नहीं अपितु ईश्वरीय अंश होने के कारण अमृत पुत्र है। चार तत्वों शरीर, मन, बुद्धि व आत्मा के समुच्य से व्यक्ति बनता है। इसी प्रकार व्यक्ति कभी भी अकेला नहीं है, वह ‘‘व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि व परमेष्टि’’ इन सब के समाधान में ही सच्चा सुख प्राप्त कर सकता है। आत्मा की अमरता और पुनर्जन्म हिन्दू जीवन प्रणाली का शाश्वत सत्य है। पश्चिमी जीवन प्रणाली की तरह पांच इंद्रियों से प्राप्त सुख हिन्दू जीवन प्रणाली का लक्ष्य नहीं है। हमारी सनातन जीवन प्रणाली में चिरंतन सुख (मोक्ष) की प्राप्ति ही मानव जीवन का लक्ष्य है। व्यक्ति के समग्र विकास के लिए 4 पुरुषार्थ ‘‘धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष’’ ही आधार हैं। मनुष्य यदि प्रयास करे तो शरीर, मन, बुद्धि से परे हो कर परम तत्व का साक्षात्कार कर सकता है। 

डॉ. हैडगेवार जी के शब्दों में ‘‘हमें नवीन कुछ नहीं करना है। हमारे पूर्वजों ने जिस प्रकार समाज और संस्कृति की सेवा की, जो ध्येय अपने सामने रखे और उनकी प्राप्ति के लिए दिन-रात प्रयत्न किए, उन्हीं ध्येयों को उसी भांति हमें भी सिद्ध करना है। उनका अधूरा रहा कार्य पूरा कर राष्ट्र सेवा करनी है।’’ महात्मा गांधी के शब्दों में  ‘‘सत्य की निरंतर खोज का नाम ही हिन्दुत्व है।’’ परम पूजनीय सर संघचालक मोहन भागवत जी के शब्दों में  ‘‘योजनापूर्वक भगवान ने हमें हिन्दू बनाया हिन्दुत्व की देखभाल करने के लिए परन्तु यह किसी का ठेका भी नहीं है।’’ 

हिन्दू धर्म ज्ञान,  विज्ञान, नित्यता, अनित्यता आदि समस्त भौतिक एवं अभौतिक बंधनों एवं सीमाओं से मुक्त है। यह एक जीवन शैली है जिसे धारण करने वाला विश्व बंधुत्व की भावना से ओत-प्रोत रहता है। राहुल गांधी ने सोमवार को लोकसभा में कहा, ‘‘जो लोग अपने आपको हिन्दू कहते हैं वे चौबीसों घंटे हिंसा, हिंसा, हिंसा, नफरत, नफरत, नफरत,  असत्य, असत्य, असत्य फैलाते हैं।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘भाजपा, नरेंद्र मोदी जी और आर.एस.एस. पूरा हिन्दू समाज नहीं है।’’ उन्हें हिन्दू धर्म के बारे में ज्ञान ही नहीं है। कभी भी एक व्यक्ति हिन्दू धर्म नहीं हो सकता। हिन्दुत्व एक जीवन शैली है जिसे धारण करने वाला विश्व बंधुत्व की भावना से ओत-प्रोत रहता है। 

हिन्दू धर्म सनातन है और समुद्र की तरह शांत है। हिन्दू अगर हिंसा करने वाला होता तो अमरनाथ यात्रा में हजारों की संख्या में सुरक्षा के लिए जवान न तैनात होते। उनके द्वारा भगवान शिव के चित्र भी सदन में लहराए गए। राहुल जी, भगवान शिव अभय दान ही नहीं देते अपितु रौद्र रूप धारण कर तांडव भी करते हैं। आधुनिक दुनिया की मानवीय मर्यादाओं की आधार भूमि हिन्दू धर्म से ही सृजित होती है। राहुल गांधी की बातों से साफ  लगता है कि उनकी जीवन शैली हिन्दू न होकर निश्चित ही पाश्चात्य जीवन शैली से प्रभावित है। 

राहुल गांधी की प्रारंभिक शिक्षा पश्चिमी प्रतिमान के एडमॉन्ड राइस द्वारा स्थापित सेंट कोलंबा स्कूल दिल्ली में हुई। उसके बाद 1981-1983 तक देहरादून में ब्रिटिश मॉडल स्कूल पर आधारित और बंगाल के वकील सतीश रंजन दास द्वारा 1935 में स्थापित स्कूल में हुई। दादी इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी सियासत में आए और सुरक्षा कारणों से उन्हें फ्लोरिडा विश्वविद्यालय से स्नातक होने तक  घर पर रहकर ही पढ़ाई करनी पड़ी। 

 उनके परिवार की हत्या के चलते उन्होंने बहुत कठिन परिस्थितियों में शिक्षा पूरी की होगी। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रूप से उनके विचारों से निश्चित ही भारतीय प्रतिमानों से ऐन जुड़ पाने की कमी साफ  झलकती है। एक बार उन्होंने विद्या भारती के स्कूलों से आतंकवादी पैदा होने संबंधी बयान भी दिया था। किसी भारतीय प्रतिमान के शिक्षण संस्थान से पढ़ाई का अनुभव न होने की वजह से उन्हें पाकिस्तान के मदरसे और विद्या भारती के विद्या मंदिरों का अंतर पता नहीं लगा होगा । फिर मंदिर में लड़की से  छेड़छाड़ करने संबंधी बयान भी अभी लोग भूले नहीं हैं कि हिन्दू धर्म संबंधी नया बयान सामने आया है। इस तरीके का व्यवहार उन्हें गैर-जिम्मेदार  राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित कर रहा है।-सुखदेव वशिष्ठ
 


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