‘हिन्दू रघुवंशी’ थे मोहम्मद अली जिन्ना के पूर्वज
punjabkesari.in Friday, Jun 01, 2018 - 04:19 AM (IST)

मौत के 70 वर्ष बाद भी मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर भारत में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (ए.एम.यू.), बाम्बे हाईकोर्ट तथा साबरमती आश्रम जैसे स्थानों का शृंगार बनी हुई है। उधर कराची चैम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री की इमारत में आज भी यह दर्ज है कि इसका शिलान्यास 1934 में महात्मा गांधी ने किया था। स्पष्ट है कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के पूर्वजों को भुलाया नहीं है।
हाल ही में भाजपा सांसद सतीश गौतम ने ए.एम.यू. में से जिन्ना की तस्वीर हटाए जाने का आग्रह किया था। यह मांग बहुत विडम्बनापूर्ण थी क्योंकि जिन्ना को बुरा-भला कहने की बजाय मोदी सरकार को तो वास्तव में चाहिए था कि कायदे आजम को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करती। आखिर जिन्ना की बदौलत ही तो भारत हिन्दू बहुल देश बना था, जबकि इस्लाम परस्तों को उपमहाद्वीप के एक कोने में धकेल दिया गया था। इसी कारण विश्व प्रसिद्ध देवबंद मदरसे ने जिन्ना का विरोध किया था।
जरा इस तथ्य पर गौर करें: यदि भारत का विभाजन न हुआ होता तो आज इसकी मुस्लिम आबादी लगभग 60 करोड़ होती जबकि हिन्दूवादी 100 करोड़। क्या इतने बड़े ‘अल्पसंख्यक’ समुदाय के साथ हिन्दू शांतिपूर्वक ढंग से रह पाते? अथवा यदि विंस्टन चर्चिल की भविष्यवाणी को सही सिद्ध करते हुए भारत अनेक टुकड़ों में बंट गया होता, तो क्या होता। उस स्थिति में भारत दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश बन गया होता।
पत्रकार व लेखक वीरेन्द्र पंडित ने 2017 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘रिटर्न ऑफ द इन्फाइडल’ (काफिर की घर वापसी) में बिल्कुल यही दलीलें दी हैं। उनका दावा है कि जिन्ना कोई श्रद्धावान व परहेजगार मुसलमान नहीं थे। उनके लिए पाकिस्तान का सृजन अपने जातिगत प्रतिद्वंद्वी महात्मा गांधी से हिसाब चुकता करना था न कि मुस्लिम उम्मीदों और उमंगों को साकार करना। भारतीय जाति व्यवस्था की कार्य पद्धति को समझने से हमें विभाजन के रहस्य की उलझनें हल करने में सहायता मिलेगी। दिलचस्प बात है कि गांधी और जिन्ना दोनों के परिवार गुजरात के सौराष्ट्र इलाके के एक-दूसरे से सटे जिलों के रहने वाले थे। गांधी पोरबंदर जिले से संबंधित थे जबकि जिन्ना राजकोट जिले की उपलेटा तहसील के गांव मोटी परेली के रहने वाले थे।
इस पुस्तक में हमारे दौर की राजनीति तथा इसकी प्रमुख हस्तियों के बारे में बहुत गहन और दिलचस्प दिग्दर्शन करवाए गए हैं, जो वर्तमान को प्रतिबिम्बित करने के साथ-साथ भविष्य की झांकी भी दिखाते हैं। वीरेन्द्र पंडित का दावा है कि गांधी ने वास्तविक अर्थों में जिन्ना को अपनी चालों में फंसा कर पाकिस्तान की मांग करने की ओर धकेला तथा इस तरह बंगाल विभाजन का 1905 का सफल आंदोलन 1947 में भारत विभाजन के रूप में बहुत सूक्ष्म ढंग से युक्तियों के माध्यम से अपनी तार्किक परिणिति तक पहुंचा। इस तरह ‘बेचारा’ जिन्ना गांधी के तैयार किए रास्ते पर आगे बढ़ता रहा।
महात्मा गांधी मौध वणियां/बनिया जाति से संबंधित थे जबकि जिन्ना ने अपने दादा के इस्लाम में धर्मांतरण के बावजूद उनकी लोहाणा-ठक्कर जाति की जिद्दी आदतें विरासत में हासिल कीं। ये दोनों जातियां परम्परागत रूप में एक-दूसरे की प्रतिद्वंद्वी हैं और दोनों को ही उनके व्यवसाय कौशल तथा नवोन्मेषी मानसिकता के लिए जाना जाता है। इन जातियों के लोग बहुत बड़ी उपलब्धियां करने वाले माने जाते हैं। धीरूभाई अंबानी और नरेन्द्र मोदी भी व्यापक मौध जाति से ही संबंधित हैं।
जिन्ना अपने सात भाई-बहनों में से ज्येष्ठ थे। देश विभाजन के बाद उनमें से कोई भी पाकिस्तान में नहीं गया था। अपने सपनों के पाकिस्तान की तरह जिन्ना स्वयं भी तत्व रूप में ‘आधा तीतर आधा बटेर’ थे। यहां तक कि उनकी इकलौती बेटी दीना वाडिया (88) ने मुम्बई स्थित उनकी सम्पत्ति जिन्ना हाऊस पर 2008 में हिन्दू विरासत कानूनों के अंतर्गत ही दावा ठोंका था। ‘पाकिस्तान के राष्ट्रपिता’ ने स्वयं अपनी वसीयत में अपनी सम्पत्तियों का आबंटन हिन्दू कानूनों के अनुसार किया था! पंडित ने लिखा है : ‘‘सौराष्ट्र इलाके की लोहाना-ठक्कर हिन्दू जाति में से बहिष्कृत किए जाने के बाद जिन्ना परिवार तीन पुश्तों तक अपनी इस्लामी पहचान प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता रहा। इस जाति के बारे में ऐसी मान्यता है कि वह भगवान राम के पूर्वज रघु के नाम पर चल रहे रघुवंश खानदान से संबंधित है। वैसे कुछ लोगों का मानना है कि वे भाटिया राजपूत थे। इस मुस्लिम बहुल टापू पर बसे बहुत से ठक्कर नए और पुराने दोनों तरह के संसार में अपनी जड़ें जमाए रखने के लिए अपने खानदानों में हर पीढ़ी में बदल-बदल कर हिन्दू और मुस्लिम नाम रखते आ रहे हैं।’’
जिन्ना के दादा एक धर्मपरायण हिन्दू प्रेमजी भाई मेघ जी ठक्कर थे। 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में प्रेमजी मछली पकडऩे के व्यवसाय में शामिल हो गए और फलस्वरूप उनकी घोर परम्परागत वैष्णव जाति ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया। इसके बाद उन्होंने मजबूरीवश इस्लाम धर्म धारण कर लिया। इससे वह अपनी जाति से और भी दूर हो गए। परिवार के कुछ लोगों ने उन्हें फिर से समझा-बुझा कर हिन्दू धर्म में लाने की कोशिश की लेकिन पोंगापंथी पुजारियों ने उनकी पेश नहीं चलने दी। आखिर प्रेमजी को बाहरी रूप में मुस्लिम होने की कवायद करनी पड़ी। उन्होंने अपने बेटे का नाम झिनियाभाई रखा था क्योंकि उसका शरीर बिल्कुल हड्डियों के पिंजर जैसा था। यह पूरा कुनबा अपने सम्पूर्ण जीवन में केवल बाहरी दिखावे के रूप में ही मुस्लिम था। मोहम्मद अली जिन्ना को अपना कमजोर-सा शारीरिक ढांचा अपने पिता झिनिया से विरासत में मिला था। आज तक गुजरात में कमजोर और सूखे-सड़े शरीर वाले लोगों को झिनिया कहा जाता है।
दिलचस्प बात यह है कि प्रेमजी भाई इस्लाम अपनाने के बावजूद मुख्यधारा के शिया या सुन्नी मतों में से किसी में भी शामिल नहीं हुए थे। इसकी बजाय उन्होंने इन दोनों समुदायों द्वारा काफिर माने जाते खोजा-इस्माइली पंथ में शामिल होना बेहतर समझा। इसके दो कारण थे, पहला आगा खान के अनुयायी इन धनाढ्य लोगों ने उसकी काफी वित्तीय सहायता की थी और दूसरा वह अपने उन हिन्दू आलोचकों को सबक सिखाना चाहते थे जिन्होंने शुद्ध वैष्णव खान-पान पद्धति के उल्लंघन का आरोप लगाकर उन्हें सामाजिक रूप में बहिष्कृत किया था।
धर्मांतरण के बावजूद प्रेमजी भाई ने अपने कुल देवता श्रीनाथ जी के अलावा ठाकुर जी तथा तुलसी की पूजा-अर्चना जारी रखी। श्रीनाथ जी को भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है। हालांकि बाहरी रूप में वह मस्जिद में भी जाया करते थे। खोजा इस्माइली समुदाय में प्रेमजी भाई का प्रवेश उनके दोस्त, मार्गदर्शक और धर्मोपदेशक आदमजी खोजा की बदौलत हुआ था और यही व्यक्ति उन्हें मछली व्यवसाय में और फिर आगा खान की संगत में लाया था। प्रेमजी भाई के तीन बेटे थे-गंगजी, नत्थु एवं पूंजा (झिनिया), तीनों को ही अपनी जाति में से कोई रिश्ता नहीं मिल रहा था और इस कारण उन्होंने धर्मांतरित परिवारों में शादियां करवाईं। बाद में वे अपने परम्परावादी गांव को छोड़ कर अन्य जगहों पर जा बसे। झिनिया कराची में बस गया।
जिन्ना के पिता का पूरा नाम झिनिया उर्फ पूंजाभाई प्रेमजी भाई ठक्कर था। नव धर्मांतरित परिवारों की परम्परा का पूरी तरह अनुपालन करते हुए वह भी अपनी धार्मिक पहचान को छिपाना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र का नाम मोहम्मद की बजाय ‘मामद’ रखा। जिन्ना का पूरा नाम मामद भाई झिनिया भाई ठक्कर अथवा एम.जे. ठक्कर था, जब जिन्ना कराची की लारैंस रोड पर स्थित क्रिश्चियन मिशनरी सोसाइटी हाई स्कूल में पढ़ा करते थे तो उन्हीं दिनों उनके भावी प्रतिद्वंद्वी एम.के. गांधी भी राजकोट स्थित एक क्रिश्चियन शिक्षण संस्था एलफ्रैड हाई स्कूल के विद्यार्थी थे। जनवरी 1893 में जब मामद इंगलैंड गए तो उन्होंनेे नए-नए नाम आजमा कर देखे। सर्वप्रथम तो उन्होंने ‘मामदभाई झिनियाभाई ऑफ कराची’ के रूप में अपनी पहचान बनाने का प्रयास किया और फिर ‘मोहम्मद जे. ठक्कर’ प्रयोग करना शुरू कर दिया जिसमें झिनिया की जगह ‘जीना’ प्रयुक्त किया गया था। लेकिन अंततोगत्वा उन्होंने ‘मोहम्मद अली जिन्ना’ या एम.ए. जिन्ना को स्थायी नाम के रूप में अपना लिया।-आर.के. मिश्रा