‘अवैध खनन’ से छलनी हो रही हिमाचल की धरती

Friday, Jul 12, 2019 - 04:02 AM (IST)

यूं तो पर्यावरण के प्रति हिमाचल प्रदेश की अब तक की सारी सरकारों का रवैया काफी सकारात्मक रहा है। इसी कड़ी में हिमाचल प्रदेश की पहली बार बागडोर संभाल रहे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी इस दिशा में आगे बढ़ते हुए थर्मोकोल से बने उत्पाद बंद किए हैं लेकिन लगता है कि प्रदेश के कुछ जिलों में पिछले लंबे समय से तेजी से हो रहे अवैध खनन के प्रति सरकार ने अपनी आंखें बंद कर रखी हैं, जिससे हिमाचल प्रदेश की धरती को खनन माफिया बेखौफ होकर बड़ी-बड़ी मशीनों से छलनी कर चांदी कूट रहा है। प्रदेश की सभी नदियों और छोटे-बड़े नालों में अवैध खनन करते हुए जे.सी.बी. मशीनें आम देखी जा सकती हैं, परन्तु सरकारी तंत्र खनन माफिया पर हाथ डालने से बच रहा है जिसके कई मायने निकाले जाने लगे हैं। 

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2017 में शिमला रिज पर अपनी रैली के दौरान जिन पांच दानवों से हिमाचल प्रदेश को मुक्ति दिलाने के लिए तब यहां की तत्कालीन कांग्रेस सरकार को बदलने की बात कही थी, उनमें एक दानव खनन माफिया भी था। परन्तु डेढ़ वर्ष पहले राज्य में स्थापित हुई भाजपा की सरकार के इस कार्यकाल में अवैध खनन कम होने की बजाय तेजी से बढ़ा है। आज कई स्थानों पर तो प्रदेश के बुद्धिजीवी लोग खुद आगे बढ़ कर इस अवैध खनन को बंद करने की मांग सरकार से कर रहे हैं लेकिन उनकी मांगों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है, जिससे स्पष्ट होता है कि खनन माफिया की पहुंच काफी दूर तक है।

मंजूरी से ज्यादा हो रहा खनन
राज्य में पिछले कुछ सालों से निर्माण गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं, जिस कारण उनके लिए रेत, बजरी और पत्थर उपलब्ध करवाना राज्य में स्थापित 160 स्टोन क्रैशरों के लिए मुश्किल है। यही कारण है कि राज्य में बड़ी नदियों सहित छोटे-बड़े नालों से अवैध रूप से रेत,बजरी और पत्थर निकालने का काम जारी है। सबसे ज्यादा समस्या पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड से सटे जिलों में है। अकेले ब्यास नदी से रोजाना हजारों टन माल निकाला जा रहा है। वहीं ऊना जिला में स्वां नदी के किनारे जे.सी.बी. से अवैध खनन के कार्य को माफिया अंजाम दे रहा है, जिससे इन स्थानों पर 10 से 15 फुट गहरे खड्डे देखे जा सकते हैं। 

ऊना जिला से पड़ोसी राज्य पंजाब में रोजाना कई ट्रक रेत और बजरी के भेजे जा रहे हैं। हालांकि इस संदर्भ में बार-बार मीडिया में रिपोर्ट्स प्रकाशित हो रही हैं और जागरूक लोग इस अवैध खनन को रोकने की मांग सरकार से कर रहे हैं। परन्तु अवैध खनन पर अंकुश लगाने में सरकार ने अभी तक किसी भी प्रकार की गंभीरता नहीं दिखाई है। इतना जरूर है कि खानापूर्ति के लिए कुछेक चालान कर दिए जाते हैं। परन्तु पिछले डेढ़ साल से जिस तेजी से खनन माफिया ने बेखौफ होकर अवैध खनन को पूरे प्रदेश में अंजाम दिया है उससे आने वाले वक्त में राज्य की नदियां और नाले प्राकृतिक आपदा का कहर जरूर बरसाएंगे। 

सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाने का कार्य भी अधूरा 
माननीय न्यायालय के आदेशों के तहत राज्य सरकार ने अवैध खनन को रोकने के लिए चिन्हित क्षेत्रों में सी.सी.टी.वी. कैमरे से निगरानी करने की योजना भी बनाई थी। कुछेक जगह कैमरे लगे भी लेकिन खनन माफिया ने इन कैमरों को नुक्सान पहुंचाया था। इसके बाद सरकार ने ड्रोन कैमरों से अवैध खनन पर निगरानी रखने के प्रयास शुरू किए लेकिन ये अभी तक सिरे नहीं चढ़ पाए हैं। वहीं पिछले डेढ़ साल में उद्योग मंत्री की ओर से भी अवैध खनन को रोकने के संदर्भ में संबंधित विभागों के साथ कोई विशेष बैठक नहीं की गई है, जबकि अवैध खनन को रोकने के लिए खनन विभाग के अलावा एस.डी.एम., पुलिस, वन, लोक निर्माण, सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य और राजस्व विभाग को भी शक्तियां दी गई हैं। 

उद्योग मंत्री विक्रम ठाकुर के अपने विधानसभा क्षेत्र की रक्कड़ तहसील में ब्यास नदी के किनारे भारी मात्रा में अवैध खनन होने के समाचार बीते दिनों सामने आए हैं। इसी प्रकार से कांगड़ा जिला के डमटाल, जयसिंहपुर, पालमपुर व देहरा, हमीरपुर जिला के जाहू व नादौन तथा ऊना जिला के हरोली, ऊना, गगरेट और कुटलैहड़ में अवैध खनन की गतिविधियां तेजी से चल रही हैं। सिरमौर, सोलन और कुल्लू जिलों में अवैध खनन को बढ़ावा मिल रहा है लेकिन सभी सरकारी एजैंसियां पिछले लंबे समय से चुप्पी साधे बैठी हैं। 

रायल्टी में भी आ रही कमी
प्रदेश में जिस तेजी से अवैध खनन हो रहा है उससे सरकारी खजाने को भी चपत लग रही है। पिछले वर्षों की तुलना में राज्य को मिलने वाली रायल्टी भी अब आधी रह गई है। यही नहीं, राज्य में वर्तमान में कई क्रैशर बंद पड़े हुए थे, वे भी अब अवैध रूप से चलाए जा रहे हैं। सूचना यह भी है कि जिन क्रैशरों के लिए स्वीकृत माइनिंग लीज में डिपोजिट खत्म हो गया है, वे भी इधर-उधर से अवैध रूप से लाया जा रहा पत्थर पीस रहे हैं। 

हालांकि अवैध खनन की इस समस्या का एक कारण समय से पर्यावरण अनुमतियां न मिलना भी माना जा रहा है, क्योंकि राज्य सरकार ने अब तक 156 खनन पट्टों की नीलामी कर रखी है लेकिन उनकी पर्यावरण अनुमतियां अभी तक प्राप्त नहीं हुई हैं। वहीं 100 और स्थान चिन्हित किए गए हैं लेकिन उद्योग मंत्री सहित विभाग से उच्चाधिकारियों की ग्लोबल इंवैस्टर मीट में पिछले लंबे समय से व्यस्तता के चलते इनकी नीलामी की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है। अगर समय रहते राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर हो रही अवैध खनन की इन गतिविधियों को एक अभियान के तहत नहीं रोका तो इसका नुक्सान आने वाले वक्त में देखने को मिलेगा।-डा. राजीव पत्थरिया
 

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