‘कर्ज के बोझ’ तले दबी हिमाचल सरकार

Saturday, Feb 29, 2020 - 03:24 AM (IST)

लंबे समय से हिमाचल प्रदेश की सत्ता पर कांग्रेस-भाजपा दोनों दलों की सरकारें ही काबिज रही हैं लेकिन किसी भी दल ने राज्य की दिनों-दिन खराब होती जा रही आर्थिक सेहत में सुधार की कोई कोशिश आज तक नहीं की है। केवल राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विकास के नाम पर आए दिन नए संस्थान खोलकर राज्य पर और आर्थिक भार डाला जा रहा है जबकि पहले से चल रहे सरकारी संस्थानों की हालत सुधारने और उन्हें ठीक से क्रियाशील करने की कोशिश नहीं हो रही है। 

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के बिजली व पानी मुफ्त देने के बाद वहां शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुए कार्यों की चर्चा इन दिनों हिमाचल प्रदेश में भी चल रही है। इस चर्चा के साथ ही मुफ्त बिजली और पानी उपलब्ध करवाने की मांग भी उठनी शुरू हो गई है लेकिन क्या लगभग 54445 करोड़ के कर्ज के नीचे दबी हिमाचल सरकार के लिए यह संभव हो पाएगा। क्योंकि पिछले कुछ सालों से हिमाचल सरकार को कर्ज की किस्तें चुकाने के लिए और कर्ज उठाने पड़ रहे हैं। पिछले दो माह में राज्य सरकार को 1800 करोड़ के नए कर्ज उठाने पड़े हैं जिसमें से 1000 करोड़ रुपए के कर्ज केवल पुराने कर्जों की किस्त चुकाने के लिए लेने पड़े हैं। हालात दिनों-दिन खराब होते जा रहे हैं, वह दिन दूर नहीं जब राज्य के कर्मचारियों को वेतन देने तक में सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। 

पिछली वीरभद्र सिंह सरकार तकरीबन 47000 करोड़ का कर्ज विरासत में जयराम ठाकुर की सरकार के लिए छोड़ गई थी। हालांकि मुख्यमंत्री बनते ही जयराम ठाकुर ने सबसे पहले प्रदेश सरकार की खराब आर्थिक सेहत को सुधारने की कोशिश शुरू की थी, जिसके लिए राज्य के वित्त विभाग की ओर से भाजपा विधायकों के लिए एक विशेष बैठक का आयोजन कर राज्य के वित्तीय हालातों की जानकारी उनको दी गई थी ताकि विधायक विकास के मामलों में जनता से उतने ही वायदे करें जिन्हें सीमित संसाधनों में पूरा किया जा सके। परंतु राजनीतिक आधार पर विकास की जरूरतों के आगे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का यह प्रयास सफल नहीं हो सका। जिस गति से पिछली कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह नए संस्थान आदि खोलने की घोषणा करते थे, उसी तर्ज पर जयराम ठाकुर भी अपने विधायकों की मांग को अब तक पूरा करते आ रहे हैं। जाहिर है कि कर्ज में डूबे प्रदेश को ऐसी घोषणाओं की पूर्ति के लिए और नए कर्ज उठाने ही पड़ेंगे। 

वित्तीय घाटे को कम करने को बने ठोस योजना
वित्त वर्ष 2019-20 में वित्तीय घाटा करीब 7352 करोड़ आंका गया था। जाहिर है कि आने वाले वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में वित्तीय घाटा दर्शाया जाएगा। सरकार हर बार निजी सहभागिता और राज्य में मौजूद संसाधनों का दोहन कर अपनी आर्थिकी को मजबूत करने का जिक्र बजट में करती है लेकिन अनेकों वर्षों में इस पर किसी भी सरकार ने गंभीरता से अमल नहीं किया है। राज्य के बोर्ड और निगमों का घाटा 3600 करोड़ से ऊपर चला गया है लेकिन घाटे में चल रहे ऐसे बोर्डों और निगमों में न तो कोई सुधार हो रहा है और न ही सरकार इन्हें बंद करने की कोई योजना अभी तक बना सकी है। राज्य के बजट में से 10.25 प्रतिशत राशि कर्जों का ब्याज चुकाने तथा 7.35 प्रतिशत राशि कर्ज अदायगी करने में खर्च हो रही है। जिस प्रकार से कर्ज बढ़ते जा रहे हैं उससे बजट में इस हिस्से की भी बढ़ौतरी होगी जिससे आने वाले समय में राज्य के विकास कार्य प्रभावित होंगे। बेहतर होगा कि समय रहते सरकार कर्ज के बढ़ रहे इस मर्ज का स्थायी इलाज ढूंढे। 

बजट से उम्मीदें
हिमाचल प्रदेश में हर साल सभी सरकारें कर मुक्त बजट देती आ रही हैं। इस बार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर वित्त वर्ष 2020-21 का बजट 6 मार्च को विधानसभा में पेश करने जा रहे हैं जिसमें प्रदेश के हर वर्ग को राहत देने की उनकी कोशिश रहेगी। हिमाचल को निवेश मित्र राज्य बनाने हेतु वह उद्योग जगत के लिए नई रियायतों की घोषणा भी कर सकते हैं क्योंकि उनकी सरकार ने एक साल मेहनत कर 96000 करोड़ के एम.ओ.यू. निजी निवेशकों के साथ किए हैं। वहीं पड़ोसी राज्य पंजाब और जम्मू-कश्मीर में भी बड़े पैमाने पर इंवैस्टमैंट मीट का आयोजन किया गया है। 

उद्योग जगत की जो हस्तियां हिमाचल पहुंची थीं वही पहले पंजाब पहुंचीं और अब जम्मू-कश्मीर की तरफ रुख कर रही हैं। पंजाब में बेहतर लैंड बैंक और कनैक्टिविटी की सुविधा उपलब्ध है। जम्मू-कश्मीर भी 6000 एकड़ के लैंड बैंक के साथ अनेकों रियायतें लेकर उद्योग जगत को आकर्षित करने में जुट गया है। ऐसे में 96000 करोड़ के एम.ओ.यू. को जमीन पर लाना हिमाचल सरकार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि राज्य में लैंड बैंक के नाम पर कुछ खास नहीं है इसलिए निवेशकों के लिए जयराम ठाकुर वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में खास रियायतों की घोषणा कर सकते हैं। अगर रियायतों का बोझ ज्यादा हुआ तो अगले वित्त वर्ष में भी राज्य को नए कर्जों का सहारा लेना पड़ सकता है।- डा.राजीव पत्थरिया

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